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बिहार: दिवाली में पटाखों के कारण अगलगी, आग से निपटने के लिए बनेंगे 44 फायर पोस्ट, जानिए क्यों होती है आतिशबाजी

Diwali 2023: दिवाली में आतिशबाजी की जाती है. पटाखों के कारण अगलगी की कई घटनाएं होती है. इससे निपटने के लिए 44 फायर पोस्ट बनाए जाएंगे. साथ ही कर्मियों की तैनाती की जाएगी. इनकी छुट्टियों को भी रद्द किया गया है.

Diwali 2023: दिवाली में आतिशबाजी की जाती है. पटाखों के कारण अगलगी की कई घटनाएं होती है. इससे निपटने के लिए बिहार की राजधानी पटना में 44 फायर पोस्ट बनाए जाएंगे. दिवाली में अगलगी की घटनाएं रोकने के लिए कई तरह के कदम उठाएं जाते है. इसी कड़ी में 44 फायर पोस्ट का निर्माण किया जा रहा है. यहां दलकल की गाड़ियों सहित कर्मियों की भी तैनाती की जाएगी. आग लगने के बाद यह तुरंत घटनास्थल पर पहुंच जाएगी. दमकल में पानी भरने के लिए हाईड्रेंट को भी चिन्हित किया गया है. त्योहार के मौके पर दमकल के 500 से अधिक कर्मियों और अधिकारियों की टीम को लगाया जाएगा. नौ अक्टूबर से ही टीम की तैनाती कर दी जाएगी. दिवाली के मौके पर दमकल की 98 गाड़ियों को भी लगाया जाएगा.


कर्मियों की छुट्टियां हुई रद्द

विभाग के अधिकारियों और कर्मियों की विशेष परिस्थिति को छोड़कर सभी परिस्थिति में छुट्टियों को भी रद्द कर दिया गया है. बताया जाता है कि आग लगने की सूचना पर तुरंत दमकल की गाड़ियों को रवाना कर दिया जाएगा. विभाग की ओर से राजधानी पटना में पाटलिपुत्र गोलंबर, बोरिंग रोड चौराहा , दीघा हाट, अशोक राजपथ, डाकबंग्ला चौराहा सहित 44 स्थानों को चिन्हित किया गया है. इन जगहों पर दमकल की एक गाड़ी के साथ चार कर्मियों की नियुक्ति की जाएगी. वहीं, दिवाली के दौरान अगलगी की घटनाओं से बचने के लिए कई तरह की सावधानी बरतने की जरुरत है.

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बहुत पुराना नहीं है पटाखों का इतिहास

बता दें कि दिवाली एक बड़ा त्योहार है. भगवान राम का 14 साल के वनवास के बाद अयेध्या आगमन हुआ था. इसके बाद दीपों से उनका स्वागत किया गया था. इसी करण ही इस त्योहार को मनाते है. दीया जलाने के अलावा साफ- सफाई भी की जाती है. घरों को सजाया जाता है, लोग नए कपड़े पहनते है. इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है. इसके अलावा पटाखे फोड़ना भी एक परंपरा बन चुकी है. सालों से ऐसा होते चला आ रहा है. लेकिन, भारत में पटाखों का इतिहास बहुत पुराना नहीं है. दरअसल, खुशी का इजहार करने के लिए लोग आतिशबाजी करते है. जानकारी के अनुसार 16वीं सदी से बारूद का मिलिट्री में ऊपयोग शुरू हुआ था. वहीं, भारत में हथियार के तौर पर बारुद का उपयोग सबसे पहले मुगल बादशाह बाबर ने किया था.

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प्रदूषण के स्तर में हुई बढ़ोतरी

पर्यावरण के लिहाज से पटाखा फोड़ना अच्छा नहीं होता है. यह प्रदूषण का कारण भी बनता है. फिलहाल, प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ भी चुका है. इसलिए कई इलाकों में पटाखों पर प्रतिबंध भी लगाया जाता है. अगली की घटना से बचने के लिए घर के अंदर पटाखे नहीं जलाना चाहिए. इसके अलावा भीड़-भाड़ वाले इलाकों में रॉकेट या फिर अन्य पटाखे नहीं जलाने चाहिए. पटाखे जलाने के दौरान अपने पास एक बोतल पानी, बोरी में भरकर बालू रेत आदि भी रखें. ताकि आग लगने पर बुझाया जा सकें. छोटे बच्चों को पटाखों से दूर रखना चाहिए. इनके पास भी पटाखा नहीं जलाना चाहिए. फुलझड़ी जलाने के बाद उसे सिर के ऊपर नहीं घुमाना चाहिए. आंखों में किसी तरह की चिंगारी चले जाने की स्थिति को आंखों को ठंडे पानी से धो लेना चाहिए. पटाखे प्रदूषण का कारण बनते है. पटाखों का धुआं और हानिकारक केमिकल हवा में घुल जाते हैं. ऐसे में त्वचा का हवा के साथ सीधा संपर्क रोकने के लिए त्वचा की नमी बनाए रखना बहुत जरूरी है. कहा जाता है कि शरीर के खुले हिस्से पर क्रीम या तेल लगाकर अपना बचाव किया जा सकता है. पटाखों में कई तरह के केमिकल पाए जाते है. इसी कारण से इसका इस्तमाल करने के बाद अपने हाथों को साबून से धो लेना चाहिए.

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