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वायु प्रदूषण की चपेट में दिल्ली, AQI 400 के पार, जानें देश के किन शहरों का क्या है हाल

हवा में घुलते विषैले पदार्थों के कारण दिल्ली की स्थिति दमघोंटू हो गयी है. इस महीने की तीन तारीख को यहां वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 के पार पहुंच गया. कई स्थानों पर तो यह 500 के नजदीक मापा गया

दिल्ली समेत देश के कई हिस्से इन दिनों वायु प्रदूषण की चपेट में हैं. राजधानी और इसके आसपास की हवा दमघोंटू हो चली है. इस कारण लोगों को अनेक स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं. प्रदूषण पर काबू पाने के तमाम उपाय नाकाफी साबित हो रहे हैं, जो बेहद चिंता की बात है. देश में प्रदूषण की स्थिति और इससे जुड़े विभिन्न तथ्यों के बारे में जानते हैं इन दिनों में…

दिल्ली में अभी सर्दियों की शुरुआती होनी बाकी है, उससे पहले ही शहर को धुंध (स्मॉग) अपनी चपेट में ले चुका है. यहां हर गुजरते दिन के साथ वायु प्रदूषण विकराल रूप धारण करता जा रहा है. हवा में घुलते विषैले पदार्थों के कारण दिल्ली की स्थिति दमघोंटू हो गयी है. इस महीने की तीन तारीख को यहां वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 के पार पहुंच गया. कई स्थानों पर तो यह 500 के नजदीक मापा गया. तीन नवंबर को राजधानी का एक्यूआई 468, चार नवंबर को 415, तो पांच नवंबर को 454 रहा.

पीएम 2.5 की बात करें, तो दो नवंबर को कई जगहों पर पीएम 2.5 की सांद्रता 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की सुरक्षित सीमा से सात से गुना अधिक हो गयी. कुछ ऐसी ही स्थिति दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों की भी रही. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दो नवंबर, 2023 को जारी आंकड़ों के अनुसार फतेहाबाद, ग्रेटर नोएडा, हनुमानगढ़, हिसार और जींद में भी प्रदूषण आपात स्थिति में पहुंच गया और वहां भी एक्यूआई 400 के पार रहा. इस कारण यहां के लोगों के लिए सांस लेना तक मुश्किल हो गया है. लोगों को सांस फूलने के साथ-साथ, सूखी खांसी, गले में संक्रमण जैसी कई अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. हवा के जहरीले होने से मरीजों, बुजुर्गों और बच्चों के लिए स्थिति बेहद गंभीर हो गयी है.

बीते पांच वर्षों में सबसे अधिक प्रदूषित रही दिल्ली की हवा

केवल इस महीने ही दिल्ली में प्रदूषण गंभीर स्थिति में नहीं पहुंचा है, बल्कि अक्तूबर के दौरान भी यहां प्रदूषण का स्तर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानकों से कई गुणा अधिक रहा. क्लाइमेट-टेक स्टार्टअप रेस्पिरर लिविंग साइंसेज के आंकड़े बताते हैं कि बीते पांच वर्षों में इस बार अक्तूबर के महीने में दिल्ली में पीएम 2.5 का स्तर देश में सबसे अधिक था. बीते वर्ष अक्तूबर से इस वर्ष अक्तूबर की तुलना करें, तो इस वर्ष प्रदूषण 4.4 प्रतिशत अधिक रहा. अक्तूबर 2022 में दिल्ली में पीएम 2.5 का औसत स्तर जहां 109.1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया था, वह इस वर्ष अक्तूबर में बढ़कर 113.9 माइक्रोग्राम घन मीटर पर पहुंच गया. आंकड़ों पर ध्यान देने से पता चलता है कि अक्तूबर 2023 में जहां राजधानी में प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों से साढ़े सात गुणा अधिक रहा, वहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित ‘सुरक्षित’ सीमा से भी 3.7 गुणा अधिक रहा.

राजधानी में लगी पाबंदी

प्रदूषण के कारण स्थिति इतनी गंभीर हो गयी है कि दिल्ली में प्राथमिक स्कूलों को बंद करना पड़ गया है. हवा की गुणवत्ता में थोड़ा सुधार हो, इसके लिए यहां कई प्रतिबंध भी लगाये गये हैं, जिनमें दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में गैर-जरूरी निर्माण गतिविधियों समेत बीएस-3 पेट्रोल और बीएस-4 डीजल कारों के चलने पर रोक शामिल है. अन्य प्रतिबंधित गतिविधियों में तोड़-फोड़ के कार्य, परियोजना स्थलों के भीतर या बाहर कहीं भी निर्माण सामग्री की लोडिंग और अनलोडिंग, कच्चे माल को स्थानांतरित करना, कच्ची सड़कों पर वाहनों की आवाजाही, जल निकासी कार्य और विद्युत केबल बिछाने, टाइल्स, पत्थरों व अन्य फर्श सामग्री को काटने और ठीक करने, वॉटरप्रूफिंग कार्य, पेंटिंग, पॉलिशिंग और वार्निशिंग कार्य, सड़क निर्माण/ मरम्मत कार्य सहित फुटपाथ/ रास्ते आदि को पक्का करना आदि शामिल हैं.

दिल्ली व उसके आसपास के क्षेत्र में धुंध के कारण

बीते कुछ वर्षों में दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्र आमतौर पर सर्दियों के मौसम में धुंध की चादर में लिपटे रहे हैं. किसानों द्वारा फसलों के अवशेष जलाने व वाहनों से निकलने वाले धुएं और कारखानों से होने वाले उत्सर्जन मिलकर सर्दी के मौसम में दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्र को धुंध से ढक देते हैं. पर इस बार अभी ही (सर्दी आने के पहले ही) ऐसी स्थिति बन गयी है. असल में, सर्दी के फसलों की रोपाई के इस मौसम में दिल्ली के पड़ोसी राज्यों- हरियाणा और पंजाब- में किसानों द्वारा खेतों में फसलों के अवशेष (पुआल या पराली) जलाने की घटना में बीते 10-15 दिनों में तेज वृद्धि देखने को मिली है. इनसे निकलने वाले प्रदूषकों के हवा के साथ दिल्ली पहुंचने और तापमान में गिरावट के कारण राजधानी की हवा अत्यंत प्रदूषित हो गयी है. शहर में प्रदूषण के लिए जो अन्य कारण जिम्मेदार हैं उनमें कार से होने वाला उत्सर्जन, निर्माण गतिविधियां, अपशिष्ट संयंत्रों में कूड़ा जलाना और प्रतिकूल मौसम संबंधी स्थितियां शामिल हैं.

इन शहरों में पीएम 2.5 के स्तर में हुई वृद्धि

रेस्पिरर लिविंग साइंसेज के विश्लेषण से पता चलता है कि दिल्ली के अतिरिक्त देश के इन तीन प्रमुख शहरों- मुंबई, हैदराबाद और कोलकाता- में भी अक्तूबर 2022 की तुलना में 2023 की समान अवधि में प्रदूषण (पीएम 2.5) का स्तर बढ़ा है.

देश के सबसे प्रदूषित शहर (छह नवंबर, 4.30 बजे)

शहर एक्यूआई

हिसार 378

नयी दिल्ली 331

पानीपत 325

भिवाड़ी 324

फरीदाबाद 323

सिरसा 322

रोहतक 316

गुड़गांव 307

स्रोत : एक्यूआई डॉट इन

विश्व के सबसे प्रदूषित शहर (दिल्ली को छोड़कर) (छह नवंबर, 4.15 बजे)

शहर  एक्यूआई

लाहौर, पाकिस्तान 238

कराची, पाकिस्तान 181

कोलकाता, भारत 162

मुंबई, भारत 156

ढाका, बांग्लादेश 156

ताशकंद, उज्बेकिस्तान 152

स्रोत : एक्यूएयर डॉट कॉम

42.1 प्रतिशत अधिक दर्ज किया गया मुंबई में इस अक्तूबर प्रदूषण का स्तर, बीते वर्ष की समान अवधि की तुलना में.

40.2 प्रतिशत की वृद्धि देखी गयी कोलकाता में प्रदूषण के स्तर में.

18.6 प्रतिशत अधिक की बढ़ोतरी हुई हैदराबाद में प्रदूषण के स्तर में.

भारत में वायु प्रदूषण के आर्थिक प्रभाव

17 लाख मौतें 2019 में वायु प्रदूषण के कारण हुई थीं, जो देश में कुल मौतों का 18 प्रतिशत थीं. इससे 38 लाख श्रम दिवसों का नुकसान हुआ.

64 फीसदी कमी आयी घरेलू वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 1990 और 2019 के बीच, जबकि बाहरी प्रदूषण से होने वाली मौतों की संख्या में इस अवधि में 115 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

36.8 अरब डॉलर, यानी 1.4 प्रतिशत का नुकसान जीडीपी को हुआ 2019 में प्रदूषण से होने वाली मौतों और बीमारियों से.

उत्तर भारत एवं मध्य भारत के राज्यों की जीडीपी को सर्वाधिक नुकसान हुआ. सबसे ज्यादा घाटा उत्तर प्रदेश (2.2 प्रतिशत) और बिहार (2.0 प्रतिशत) को हुआ था.

स्रोत: दिसंबर, 2020 में प्रकाशित लांसेट प्लेनेटरी हेल्थ रिपोर्ट

क्या है पार्टिकुलेट मैटर

पार्टिकुलेट मैटर, जिसे पार्टिकल पॉल्यूशन भी कहते हैं, हवा में पाये जाने वाले बेहद छोटे-छोटे कण व तरल बूंदों का सम्मिश्रण होते हैं. नाइट्रेट व सल्फेट जैसे एसिड, कार्बनिक रसायन, धातु, धूल कण, पराग कण आदि मिलकर इन कणों का निर्माण करते हैं. ये कण हमारे बाल से 30 गुणा तक महीन होते हैं और इन्हें माइक्रोस्कोप के माध्यम से ही देखा जा सकता है. इनकी हवा में जरूरत से ज्यादा उपस्थिति का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है. दस माइक्रोमीटर व्यास या उससे छोटे आकार के पार्टिकुलेट मैटर गले व नाक के जरिये सीधे हमारे रक्त प्रवाह में पहुंच जाते हैं और हृदय व फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं. पार्टिकुलेट मैटर को मुख्य तौर पर दो भागों में बांटा गया है. पीएम 10 या इनहेलेबल पार्टिकल्स और पीएम 2.5 या फाइन पार्टिकल्स.

पीएम 10 : ये पार्टिकल 2.5 माइक्रोमीटर से बड़े व 10 माइक्रोमीटर से छोटे व्यास के होते हैं. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, पीएम 10 का सामान्य स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर होता है.

पीएम 2.5: ये पार्टिकल 2.5 माइक्रोमीटर व उससे छोटे व्यास के होते हैं. पीएम 2.5 का सामान्य स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर होता है, सीपीसीबी के अनुसार.

क्या है वायु गुणवत्ता सूचकांक

वायु गुणवत्ता सूचकांक, यानी एक्यूआई दैनिक आधार पर वायु गुणवत्ता को मापने वाला एक सूचकांक है. यह इस बात का माप है कि वायु प्रदूषण एक छोटी अवधि के भीतर किसी के स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है. इस सूचकांक का मान जितना अधिक होगा, वायु प्रदूषण का स्तर उतना ही अधिक होगा और स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं भी उतनी ही अधिक होंगी.

वायु गुणवत्ता सूचकांक श्रेणी

वायु की गुणवत्ता मापने के लिए छह श्रेणियां बनायी गयी हैं, जिसके आधार पर पता चलता है कि स्थान विशेष की हवा सुरक्षित है या असुरक्षित.

अच्छा (0-50) : न्यूनतम प्रभाव

संतोषजनक (51-100) : संवेदनशील लोगों में सांस लेने में मामूली कठिनाई हो सकती है.

मध्यम प्रदूषित (101-200) : अस्थमा से पीड़ित रोगी को सांस लेने में कठिनाई हो सकती है. ऐसी हवा में हृदय रोगी, बच्चों और वयस्कों को भी सांस लेने में असुविधा हो सकती है.

खराब (201-300) : हवा के लंबे समय तक संपर्क में रहने पर लोगों को सांस लेने में कठिनाई हो सकती है और हृदय रोगियों को असुविधा हो सकती है.

बहुत खराब (301-400) : लंबे समय तक हवा के संपर्क में रहने पर लोगों में श्वसन संबंधी रोग के होने की संभावना रहती है. फेफड़े और हृदय रोगियों की समस्या काफी बढ़ सकती है.

गंभीर (401-500) : ऐसी स्थिति में स्वस्थ लोगों में भी श्वसन संबंधी समस्याएं और फेफड़े/ हृदय रोगियों में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.

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