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कुर्सी नहीं हक के लिए 31वीं बार मैदान में तीतर सिंह, पंच से लेकर लोकसभा तक हर चुनाव लड़ा

दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले तीतर सिंह लगभग बीस चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन हर बार संख्या बल से हारते रहे हैं. हार तय है तो चुनाव क्यों लड़ते हैं? यह पूछने पर तीतर सिंह ने बुलंद आवाज में कहा,‘‘क्यों न लड़ें. सरकार जमीन दे, सहूलियतें दें... साडी हक दी लड़ाई है ये चुनाव.’’

Rajasthan Election : करणपुर विधानसभा क्षेत्र के एक छोटे से गांव में रहने वाले और ‘मनरेगा’ में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले बुजुर्ग तीतर सिंह की चुनाव लड़ते लड़ते उम्र बीतने को है . पंच, सरपंच से लेकर लोकसभा तक उन्होंने हर चुनाव लड़ा है लेकिन ये अलग बात है कि जिन हकों की लड़ाई के लिए वह सत्तर के दशक में चुनाव मैदान में उतरे थे, वह उन्हें आज तक नहीं मिले. दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले तीतर सिंह लगभग बीस चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन हर बार संख्या बल से हारते रहे हैं. हार तय है तो चुनाव क्यों लड़ते हैं? यह पूछने पर तीतर सिंह ने बुलंद आवाज में कहा,‘‘क्यों न लड़ें. सरकार जमीन दे, सहूलियतें दें… साडी हक दी लड़ाई है ये चुनाव.’’

कब से लड़ रहे है चुनाव?

यह बुजुर्ग एक बार फिर उसी जज्बे, जोश और मिशन के साथ विधानसभा चुनाव के लिए तैयार है. चुनाव लड़ना तीतर सिंह के लिए लोकप्रियता हासिल करने या रिकॉर्ड बनाने का जरिया नहीं है, बल्कि अपने हकों को हासिल करने का एक हथियार है जिसकी धार समय और उम्र बीतने के बावजूद कुंद नहीं पड़ी है. राजस्थान के करणपुर विधानसभा क्षेत्र के एक छोटे से गांव ‘25 एफ’ में रहने वाले तीतर सिंह पर चुनाव लड़ने का जुनून सत्तर के दशक में तब सवार हुआ, जब वह जवान थे और उन जैसे अनेक लोग नहरी इलाकों में जमीन आवंटन से वंचित रह गए थे.

भूमिहीन और गरीब मजदूरों को जमीन आवंटित करे!

उनकी मांग रही कि सरकार भूमिहीन और गरीब मजदूरों को जमीन आवंटित करे. इसी मांग और मंशा के साथ उन्होंने चुनाव लड़ना शुरू किया और फिर तो मानों उन्हें इसकी आदत हो गयी. एक के बाद, एक चुनाव लड़े. हालांकि व्यक्तिगत स्तर पर जमीन आवंटित करवाने की उनकी मांग अब भी पूरी नहीं हुई है और उनके बेटे भी दिहाड़ी मजदूरी करते हैं. तीतर सिंह ने बताया कि वह अब तक लोकसभा के दस, विधानसभा के दस, जिला परिषद डायरेक्टर के चार, सरपंची के चार व वार्ड मेंबरी के चार चुनाव लड़ चुके हैं. नामांकन पत्र के साथ दाखिल हलफनामे के अनुसार, इस समय उनकी उम्र 78 साल है.

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जमा पूंजी के नाम पर 2500 रुपए की नकदी

तीतर सिंह ने फोन पर पीटीआई- भाषा को बताया कि उनकी तीन बेटियां व दो बेटे हैं. दोहते पोतों तक की शादी हो चुकी है. उनके पास जमा पूंजी के नाम पर 2500 रुपए की नकदी है. बाकी न कोई जमीन, न जायदाद, न गाड़ी- घोड़े. उन्होंने बताया कि इस उम्र में भी वह आम दिनों में सरकार की रोजगार गारंटी योजना ‘मनरेगा’(महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) में दिहाड़ी मजदूरी करते हैं या जमींदारों के यहां काश्तकारी . लेकिन चुनाव आते ही उनकी भूमिका बदल जाती है. वह उम्मीदवार होते हैं, प्रचार करते हैं, वोट मांगते हैं और बदलाव का वादा करते हैं. पिछले कई दशकों से ऐसा ही हो रहा है.

हर बार होती रही जमानत जब्त

हालांकि, चुनावी आंकड़े कभी इस मजदूर के पक्ष में नहीं रहे और हर बार उनकी जमानत जब्त होती रही. निर्वाचन विभाग के अनुसार तीतर सिंह को 2008 के विधानसभा चुनाव में 938, 2013 के विधानसभा चुनाव में 427, 2018 के विधानसभा चुनाव में 653 वोट मिले. उनका गांव श्रीगंगानगर जिले की करणपुर तहसील में है जहां से वह निर्दलीय उम्मीदवार हैं. टूटी फूटी हिंदी और मिली जुली पंजाबी बोलने वाले तीतर सिंह ने बताया कि उनको व उनकी पत्नी गुलाब कौर को सरकार से वृद्धावस्था पेंशन मिलती है जिससे उनका गुजारा हो जाता है. बाकी चुनाव में वह कोई खर्च करते नहीं हैं.

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सामाजिक विरोध का सामना नहीं करना पड़ा

चुनाव लड़ने को लेकर कभी किसी प्रकार के सामाजिक विरोध का सामना नहीं करना पड़ा, इस सवाल पर तीतर सिंह ने कहा, ‘‘ एहो जई ते कोई गल्ल नई . लोक्की उल्टे माड़ी भोत मदद जरूर कर देंदे सी. (ऐसी तो कोई बात नहीं . लोग उल्टे थोड़ी बहुत मदद ही कर देते हैं.’’ रोचक बात यह है कि यह बुजुर्ग किसी सोशल मीडिया मंच पर नहीं है लेकिन अपनी पत्नी के साथ नामांकन दाखिल करने के लिए जाते हुए उनका वीडियो सोमवार को वायरल हो गया.

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