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चारों युगों में यश-कीर्ति देने वाले हैं श्रीचित्रगुप्त

युग-युगांतर से देवी-देवताओं के बीच कलम के देवता, आदि लेख्यकार, अक्षरजीवी, लेखक कुलश्रेष्ठ, लेखा अक्षरदायक, आदि लेखक व लेखनी के श्रीपति के रूप में उल्लेख किया गया है.

डॉ राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’

प्रकारांतर से धर्ममय रहे भारतीय संस्कृति और समाज में देवी देवताओं का स्थान अप्रतिम रहा है. जीवन के हरेक अवसर पर मंगलमय होने की कामना से यहां विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा विविध रूपों में की जाती है. ऐसे ही पूजित देवताओं में एक हैं भगवान श्रीचित्रगुप्त, जिनकी वार्षिक पूजा-आराधना हर वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन की जाती है.

युग-युगांतर से देवी-देवताओं के बीच कलम के देवता, आदि लेख्यकार, अक्षरजीवी, लेखक कुलश्रेष्ठ, लेखा अक्षरदायक, आदि लेखक व लेखनी के श्रीपति के रूप में उल्लेख किया गया है. विभिन्न पुराणों, धार्मिक साहित्यों और प्राचीन अभिलेखों में हमें देव श्रीचित्रगुप्त का विवरण प्राप्त होता है. श्री चित्रगुप्त जी को धर्मराज, धर्महरि, कलमजीवी, ब्रह्मांड स्वरूप और युगपिता ब्रह्मा के मानस पुत्र के रूप में अभिहित किया गया है. कई अर्थों में चित्रगुप्त हमारे अचेतन मन के स्वामी हैं, जिन्होंने महाभारत काल में भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया था.

हरेक वर्ष पवित्र कार्तिक महीने के 17वें दिन मनाये जाने वाले श्रीचित्रगुप्त उत्सव को आत्मचिंतन का अवसर के रूप में भी प्रस्तुत किया जाता है और यह भी जानकारी योग्य तथ्य है कि श्रीचित्रगुप्त ब्रह्मा जी के 17वें मानस पुत्र हैं. चित्रगुप्त जी की आध्यात्मिक महत्ता से जुड़े हुए तथ्य का विशेष वर्णन कठोपनिषद् में है. ऐसे मार्कंडेय पुराण, ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण, याज्ञवल्क्य स्मृति और यम स्मृति में चित्रगुप्त कथा का विस्तार से वर्णन किया गया है.

पद्म पुराण के उत्तराखंड में पुलसत्य मुनि कहते हैं कि एक बार परमपिता ब्रह्मा ने दस हजार दस सौ वर्षो तक समाधि लगायी. उन ब्रह्मा के शरीर से बड़ी-बड़ी भुजाओं वाले श्याम वर्ण कमलवत् नेत्र युक्त शंख-उल्प गर्दन, चंद्रवत् मुख, तेजस्वी, हाथ में कलम और दवात लिये एक पुरुष उत्पन्न हुए. ब्रह्मा जी ने निज शरीरज पुरुष से उत्पन्न होने के कारण उस महापुरुष का नाम कायस्थ रखा और कहा कि पृथ्वी पर तुम चित्रगुप्त के नाम से विख्यात होगे. यमलोक में धर्माधर्म के निर्णय के लिए तुम निश्चल निवास करोगे.

धर्मज्ञों की राय में सभी के हृदय में गुप्त रूप से वास करने वाले श्री चित्रगुप्त जी त्रिविध ताप से मुक्त करने वाले और चारों युगों में यश-कीर्ति देने वाले हैं. श्री चित्रगुप्त के लेखा-जोखा के अनुरूप समस्त प्राणियों के स्वर्ग-नरक की प्राप्ति के निर्णय की जाती है. विवरण है जगतोद्धार के बाद देव श्रीचित्रगुप्त अपने जगत् के संपूर्ण कार्यों को निष्ठापूर्वक संपन्न करने के लिए भगवती ज्वाला देवी के त्रिगर्त क्षेत्र में साधना की और जगत् के कल्याण के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया.

मनोकामनाओं और मांगलिक कार्यों को पूरा करने वाले चित्रगुप्त के जीवन चरित्र में ज्ञान, विद्या, सरलता, सहजता, पवित्रता, सच्चाई और विश्वास के सात दीप प्रज्वलित हैं. यह दीप समाज को ज्ञान, शिक्षा और बुद्धि की त्रिजोत जलाये रखने का संदेश देते हैं. पर्व-त्योहार का देश भारतवर्ष में अनेकानेक पर्व जहां सांस्कृतिक समृद्धि और धार्मिकता के परिचायक हैं, वहीं चित्रगुप्त उत्सव धर्म तत्वों के विस्तार का मार्ग प्रशस्त करता है. यह हमारे सत्-असत् कायों का परिचायक है.

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