झारखंड अलग राज्य बनने के बाद यहां बिजली के क्षेत्र में काफी काम हुआ है. खासकर बिजली नेटवर्क का विस्तार हुआ है. हालांकि, सातों दिन 24 घंटे बिजली आज भी राज्य के लिए सपना है. 23 वर्षों में झारखंड में बिजली की खपत काफी बढ़ी है. वर्ष 2001 की तुलना में बिजली की मांग तीन गुना बढ़ गयी है. वर्ष 2001 में जहां 800 से 1000 मेगावाट बिजली की मांग होती है. वहीं, आज यह बढ़ कर 2400 से तीन हजार मेगावाट तक पहुंच गयी है.
झारखंड अलग राज्य गठन के पूर्व राज्य के 80 प्रतिशत गांव ऐसे थे, जहां के लोगों ने कभी बिजली नहीं देखी थी. 32497 में से केवल 8000 गांवों में बिजली पहुंची थी. आज राज्य के 29434 गांवों में बिजली पहुंच चुकी है. वहीं, आबादी बढ़ने के साथ ही कई टोले बने हैं, जहां अभी बिजली की आंशिक आपूर्ति ही शुरू हुई है. ऐसे में राज्य के 9322 टोले में बिजली पहुंचाने के लिए मुख्यमंत्री उज्ज्वल झारखंड योजना शुरू की गयी है. इस पर 1485.30 करोड़ रुपये खर्च होंगे.
झारखंड अलग राज्य बनने के बाद से डीवीसी, टाटा पावर व कुछ निजी कंपनियों ने अपना पावर प्लांट लगाया. डीवीसी ने कोडरमा में एक हजार मेगावाट का पावर प्लांट लगया है. वहीं, डीवीसी व टाटा पावर के संयुक्त उपक्रम मैथन पावर लिमिटेड द्वारा धनबाद के मैथन में भी एक हजार मेगावाट का पावर प्लांट लगाया गया है. इसके अलावा दो निजी कंपनी इनलैंड पावर से 55 मेगावाट व आधुनिक पावर से 285 मेगावाट के अतिरिक्त बिजली प्लांट राज्य में लगाये गये.
झारखंड सरकार का अपना पावर प्लांट टीवीएनएल है. यहां से लगभग 380 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है. सिकिदिरी हाइडल से 120 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है. वहीं, राज्य सरकार के पतरातू थर्मल पावर प्लांट को एनटीपीसी के साथ ज्वाइंट वेंचर में बनाया जा रहा है. इसकी क्षमता 4000 मेगावाट की होगी. नॉर्थ कर्णपुरा पावर प्लांट से 1980 मेगावाट उत्पादन होना है. यहां 660 मेगावाट की एक यूनिट चालू हो गयी है. वहीं, अदाणी के गोड्डा प्लांट से 1600 मेगावाट का उत्पादन शुरू हो गया है.
बिजली वितरण नेटवर्क से लेकर ट्रांसमिशन नेटवर्क तक को सुधारने की दिशा में काम शुरू से ही चल रहा है. निरंतर प्रक्रिया के तहत वितरण नेटवर्क से लेकर ट्रांसमिशन नेटवर्क, पावर सब स्टेशन, ग्रिड सब स्टेशन बनाने की दिशा में काम हो रहे हैं. राज्य में अबतक लगभग दो लाख ट्रांसफाॅर्मर लगाये गये हैं.
राज्य में 9871 किमी 33 केवी लाइन हो गयी है. 97 हजार 741 किमी 11 केवी लाइन और एक लाख 15 हजार 732 किमी एलटी लाइन का जाल बिछाया गया है. इसके अलावा सभी शहरी क्षेत्रों में तेजी से तार बदलने और ट्रांसफाॅर्मर बदलने के काम किये जा रहे हैं. रांची, जमशेदपुर और धनबाद में भूमिगत केबल भी बिछाये जा रहे हैं. ट्रांसमिशन नेटवर्क पर भी काम हो रहा है. 32 हजार करोड़ की लागत से रिवैंप्ड डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम (आरडीएसएस) आरंभ की गयी है.
डीवीसी कमांड एरिया में नेटवर्क पर हो रहा है काम : झारखंड की एक बड़ी समस्या यह है कि डीवीसी के कमांड एरिया धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, रामगढ़, हजारीबाग, कोडरमा और चतरा जैसे जिलों में डीवीसी द्वारा ही बिजली आपूर्ति की जाती है. बिजली वितरण निगम का यहां अपना नेटवर्क नहीं है. इसके लिए झारखंड ऊर्जा संचरण निगम लिमिटेड ने डीवीसी कमांड एरिया में अपना नेटवर्क बिछाने की योजना पर काम शुरू कर दिया है. चंदनकियारी में ग्रिड बनकर तैयार भी हो गया है. 1129.09 करोड़ की लागत से रामगढ़, बरकागांव, गोला, बरही, बिष्णुगढ़, दुग्धा, पुटकी, महुदा, पेटरवार, हंटरगंज, गावां, निरसा और सिमरिया में ग्रिड बनाये जा रहे हैं. 13 ग्रिड बन रहे हैं और 22 ट्रांसमिशन लाइन बन रही है.
वर्ष 2001 में बिजली उपभोक्ताओं की संख्या छह लाख थी. 2010 में राज्य में 14 लाख बिजली के उपभोक्ता थे, जो 2017 में बढ़ कर 28 लाख हो गये और वर्ष 2023 तक यह संख्या बढ़कर 58 लाख से अधिक हो गयी है.
23 वर्षों में बिजली में सुधार के लिए पूर्व से कार्यरत झारखंड राज्य बिजली बोर्ड (जेएसइबी) का बंटवारा हुआ और चार अलग-अलग कंपनियां बन गयीं. इसमें झारखंड ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड, झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड, झारखंड ऊर्जा संचरण निगम लिमिटेड और झारखंड ऊर्जा उत्पादन निगम शामिल हैं.
संरचना संख्या
33/11 केवी पावर 531 सब स्टेशन
33 केवी फीडर 719 (लंबाई-11543 किमी)
11 केवी फीडर 1806(लंबाई-73105 किमी)
ट्रांसफाॅर्मर 4872914