22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

प्रदूषण पर राजनीति घातक है

भारत के पास ठोस वाहन नीति का अभाव है. कोई राज्य वाहनों के उत्पादन की सीमा तय करने के लिए इच्छुक नहीं है. केंद्र सरकार भी सत्ताधारी दल द्वारा शासित राज्यों में अनेक रियायतें देकर कंपनियों को संयंत्र लगाने के लिए आमंत्रित कर रही है.

लंदन में पांच दिसंबर, 1952 की ठंडी सुबह लोग भूरे रंग की घनी धुंध को पसरते देख हैरान रह गये थे. शहर की फैक्ट्रियों और गाड़ियों से निकलते धुएं ने गंदी धुंध को और घना कर दिया था. ऐसा लग रहा था कि दिन में ही रात हो आयी हो. फेफड़े के संक्रमण से हजारों लोगों की मौत हुई थी. ब्रिटिश संसद ने 1956 में स्वच्छ वायु कानून पारित किया, जिससे शहरी क्षेत्रों में कोयला जलाना कम हुआ. लेबर और कंजर्वेटिव दोनों दल अपने शहर और लोगों के जीवन के लिए साथ मिलकर लड़े. भारत में भी 1981 में बना ऐसा कानून है, पर इसका पालन सुनिश्चित नहीं किया जा रहा है. इसकी मुख्य वजह एक-दूसरे पर आरोप लगाने वाले राजनेताओं द्वारा कोई मानक नहीं स्थापित किया गया है. प्रदूषण पर राजनीति घातक है. उपेक्षा, भ्रष्टाचार और वोट बैंक पॉलिटिक्स के जहरीले धुएं से दिल्ली का दम घुट रहा है. सर्वोच्च न्यायालय ने आप सरकार और केंद्र की रस्साकशी के चलते दिल्ली के एकमात्र स्मॉग टावर के बंद होने पर फटकार लगायी है. पंजाब में सत्ता में आने से पहले आप पार्टी पराली जलाना रोकने में असफल होने के लिए पिछली सरकार को कोसती थी. अब उसके निशाने पर हरियाणा की भाजपा सरकार है. जब लाखों गाड़ियां और थर्मल पॉवर प्लांट दिल्ली और मुंबई की हवा को जहरीला बना रहे हैं, तब प्रशासक और नौकरशाह वातावरण में कार्बन की मात्रा घटाने के लिए अधिक आवंटन और पद मांगते हुए फाइलें बढ़ा रहे हैं.

दिल्ली दुनिया का आठवां सबसे प्रदूषित शहर है. भारतीय शहर दशकों से प्रदूषण की चपेट में हैं. जाड़े में शहरों में आसमान अजीब तरह से भूरा हो जाता है. रात में तारे नहीं दिखते. जब लोग, खासकर बच्चे सांस लेने में परेशानी महसूस कर रहे हैं, तब नेता और नौकरशाह केवल स्कूल बंद करने, निर्माण रोकने, प्रदूषण मानकों पर चर्चा करने और पड़ोसी राज्यों को कोसने में व्यस्त हैं. प्रचार के लिए लालायित गैर-सरकारी संगठन और उनके अभिजन मुखिया इस समस्या के समाधान खोजने का हवाला देकर अपने उद्देश्यों के लिए सेमिनार करते हैं और विदेश यात्राओं के लिए चंदा जुटाते हैं. वे पटाखों और होली के रंगों का तो पुरजोर विरोध करते हैं, पर असली कारणों- वाहन, जहाज और पावर प्लांट- के विरुद्ध शायद ही कभी आवाज उठाते हैं. बेशक, बढ़ता तापमान और मौसम में असामान्य उतार-चढ़ाव इसका कारण बनते हैं, लेकिन उनसे प्रदूषण केवल विशेष समय में होता है, पूरे वर्ष नहीं. हैरानी की बात है कि स्मॉग ने नेताओं को दृष्टिबाधित कर दिया है. वे अपनी आंख के ठीक सामने खड़े अपराधी को नहीं देख सकते हैं या नहीं देखेंगे. संपूर्ण भारत निकट भविष्य में एक पर्यावरणीय आपदा के कगार पर है. एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से आठ हरियाणा में, चार राजस्थान में और तीन उत्तर प्रदेश में हैं. गाजियाबाद, हापुड़, कल्याण, अजमेर, जोधपुर, भिवाड़ी जैसे छोटे महानगर भी वायु प्रदूषण के शिकार हैं. रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से छह भारत में हैं, जबकि शीर्ष 50 में 39 और शीर्ष 100 में से 65 भारतीय शहर हैं.

अब सवाल उठता है: क्या ये शहर केवल जलवायु परिवर्तन के कारण त्रस्त हैं? वैश्विक वाहन कंपनियों, हथियार निर्माताओं और ऊर्जा कंपनियों द्वारा पोषित पर्यावरण आतंकी चाहते हैं कि सभी ऐसा ही मानें. जबकि 40 प्रतिशत से अधिक घातक धुआं कोयले से चलनेवाले बिजली संयंत्रों और वाहनों से निकलता है. विश्व स्तर पर, विशेषकर भारत में, मध्य वर्ग की आकांक्षाओं को अपनी गिरफ्त में लिये ऑटोमोबाइल सेक्टर विशाल ऑक्टोपस की तरह बढ़ता जा रहा है. भले अधिकतर भारतीयों के पास घर या वाहन न हो, पर देश में लगभग 35 करोड़ वाहन पंजीकृत हैं, यानी औसतन हर चौथे भारतीय के पास कार या दुपहिया वाहन है. पैसेंजर कारों की संख्या के लिहाज से भारत दुनिया में आठवें स्थान पर है. देश में हर वर्ष पचास लाख वाहनों का उत्पादन होता है तथा बड़ी वाहन कंपनियां हर दिन 13,500 से अधिक गाड़ियां बेचती हैं. वर्ष 2022 में हम दुनिया के सबसे बड़े दुपहिया उत्पादक थे. पिछले वर्ष 1.58 करोड़ ऐसे वाहनों की बिक्री हुई थी, औसतन हर दिन लगभग 43 हजार दुपहिया वाहन बिके थे. इनमें दो सिलेंडर वाले बाइक सबसे अधिक प्रदूषण करते हैं, पर शहरी मध्य वर्ग के वोट की ताकत को अनदेखा नहीं किया जा सकता है. एक दशक पहले आज की तुलना में भारत में आधे वाहन भी नहीं थे.

ऐसा लगता है कि वर्तमान ऑटो इकोसिस्टम बड़ी कारों और निजी जहाजों के अनुरूप बनाया गया है. रक्षा क्षेत्र के बाद सबसे अधिक मुनाफा ऑटो उद्योग ही कमाता है. इसका वार्षिक टर्नओवर 2.8 ट्रिलियन डॉलर है. हर दिन छह करोड़ वाहनों का निर्माण होता है, जो दुनिया के तेल का आधा उपभोग कर जाते हैं. भारत के पास ठोस वाहन नीति का अभाव है. कोई राज्य वाहनों के उत्पादन की सीमा तय करने के लिए इच्छुक नहीं है. केंद्र सरकार भी सत्ताधारी दल द्वारा शासित राज्यों में अनेक रियायतें देकर कंपनियों को संयंत्र लगाने के लिए आमंत्रित कर रही है. भले सड़क दुर्घटनाओं और सांस की बीमारियों से मरनेवालों की तादाद बढ़ती जा रही है, वैश्विक ऑटो माफिया सरकारी नीति को निर्देशित और निर्धारित कर रहा है. भारत उन कुछ देशों में है, जहां वाहनों की आयु सीमा तय की गयी है. 10 वर्ष के डीजल और 15 वर्ष के पेट्रोल कारों को अनेक शहरों में स्क्रैप करने का नियम है. इससे एक नया स्थायी बाजार बना है. इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने से बिजली की मांग बढ़ती है. विडंबना है कि सभी राज्य सरकारें पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को कम प्राथमिकता देती हैं. जब धनी शहरी अपनी कारें बदलते हैं, तो पुरानी गाड़ियां छोटे शहरों में बेची जाती हैं और हवा को जहरीला बनाती हैं. कारों की बढ़ती संख्या छोटे शहरों में भी यातायात बाधित करती है. जाम में कारों व बाइकों से अतिरिक्त धुआं निकलता है. किसी भी बड़े शहर में कार की औसत गति 15 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक नहीं होती. इससे भी अधिक धुआं निकलता है. फिर भी सस्ते और पर्यावरण के लिए मुनासिब यातायात के लिए अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के लिए प्रशासनिक प्रयास नहीं हो रहा है.

पावर प्लांट भी प्रदूषण के बड़े कारक हैं. भारत में करीब 270 थर्मल प्लांट हैं. कुल विद्युत क्षमता के 60 प्रतिशत से अधिक के उत्पादन में जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल होता है. सरकारी आकलन बताते हैं कि ये संयंत्र देश में प्रदूषण के सबसे प्रमुख कारण हैं. सरकार निजी कोयला उत्पादन और थर्मल प्लांट लगाने को प्रोत्साहित कर रही है. इससे भारत का भविष्य जहरीला ही बनेगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें