पितरों की मुक्ति स्थली व भगवान विष्णु की पावन नगरी गयाजी भगवान विष्णु आदि शक्ति भगवान शिव के साथ-साथ आदिकाल से ही सूर्य उपासना का विशिष्ट केंद्र भी रहा है. अंत: सलिला फल्गु नदी के पश्चिमी तट पर तीन अलग-अलग जगहों पर भगवान सूर्य की ब्रह्मा, विष्णु व भगवान शिव के रूप में अति प्राचीन प्रतिमाएं हैं. इनकी पूजा-अर्चना यहां के रहने वाले लोगों के साथ-साथ पितृपक्ष मेले में देश-विदेश से आने वाले तीर्थयात्री भी मनोवांछित फलों की प्राप्ति के लिए करते हैं.
प्रत्येक वर्ष चैत व कार्तिक मास में आयोजित आस्था के महापर्व छठपूजा में सूर्य षष्ठी व्रत की अपनी विशेष महत्ता है. छठपूजा में यहां भगवान सूर्य को तीन अलग-अलग पहरों में अर्घदान किये जाने की मान्यता काफी पौराणिक रही है. यह परंपरा अब भी पूरी आस्था के साथ जीवंत है. स्थानीय इतिहासविद् डॉ राकेश कुमार सिंह रवि कहते हैं कि सूर्य पूजन की परंपरा को समृद्ध बनाने में यहां के तीन तीर्थों का अपना महत्व है, जो आदित्य हृदय स्तोत्र के वर्णित तथ्य के अनुरूप है.
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सूर्यनारायण प्रातःकाल, ब्रह्माजी के रूप में मध्याह्न काल और शिव महेश्वर के रूप में अस्तकाल में भगवान विष्णु के रूप में जगत जीवन प्रदान करते हैं. डॉ रवि के अनुसार प्रातःकालीन ब्रह्म रूप में पिता महेश्वर उत्तरायण सूर्य मंदिर में अर्घदान व पूजन का विधान है. ब्राह्मणी घाट स्थित सूर्यमंदिर में भगवान सूर्य शिव रूप में विराजमान हैं. यहां अपराह्न कालीन भगवान सूर्य के पूजन व अर्घदान की पौराणिक व सनातनी परंपरा रही है. यहां सूर्य देवता बिरंची नारायण के नाम से जगत प्रसिद्ध हैं, जो एकाश्म पाषाण खंड की बनी उनकी पत्नी उषा व प्रत्यूषा के साथ पुत्र शनि और यम के साथ अंकित है. यहां के द्वादश सूर्य तीर्थ व काल भैरव का अपना-अलग महत्व है. सूर्यकुंड के सामने दक्षिणार्क सूर्य तीर्थ का स्थान है. यहां भगवान सूर्य विष्णु रूप में विराजमान हैं. यहां सायंकालीन भगवान सूर्य के पूजन व अर्घदान का विधान रहा है.