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बिहार के लोग कहीं भी रहें, छठ से जुड़ी यादें उनके दिल के करीब होती हैं

दशहरे से ही इसका इंतज़ार शुरू हो जाता था. कैसे मां साफ सफाई करती थी. ठेकुआ बनाना, छठ पूजा के जो प्रसाद बनते या चढ़ते थे, जैसे गन्ना, हल्दी, अदरक, कच्चा केला, मूली और नये धान, सब खेतों से आते थे.

आज लोकल से ग्लोबल हो चुका छठ पर्व हर किसी के लिए खास हो चुका है. बिहार से जुड़े हर शख्स के लिए यह पर्व दिल के बेहद करीब होता है. वह दुनिया के किसी भी कोने में चले जाएं, उन्हें छठ पर्व अपनी ओर खींच ही लेता है. बिहार के कई सेलिब्रिटी हर तरफ अपना जलवा बिखेर रहे हैं. ऐसे में छठ पर्व उनके के लिए कितना खास है, इसे लेकर कुछ बॉलीवुड कलाकारों से उर्मिला कोरी की बातचीत के प्रमुख अंश…

पंकज त्रिपाठी, अभिनेता

पूर्वांचल का सबसे बड़ा त्यौहार है. दशहरे से ही इसका इंतज़ार शुरू हो जाता था. कैसे मां साफ सफाई करती थी. ठेकुआ बनाना, छठ पूजा के जो प्रसाद बनते या चढ़ते थे, जैसे गन्ना, हल्दी, अदरक, कच्चा केला, मूली और नये धान, सब खेतों से आते थे. उनको लाने में भी एक अलग तरह की खुशी होती थी. हमारे यहां गन्ने की खेती होती थी, तो हम गन्ने दूसरे छठ व्रतियों को बांटते थे. यह आस्था का पर्व आपसी सौहार्द को बढ़ाता है. हमारे गांव के पीछे नदी थी. हमलोग मिलकर वहां की साफ सफाई करते थे. गांव से घाट तक के रास्ते को पूरा चमका दिया जाता था. सजावट का सामान भी लगाते थे. पूरा गांव एक परिवार की तरह लगता था. नये कपड़े भी उसी वक्त मिलते थे तो खुशियां और बढ़ जाती थीं. मां पहले छठ करती थी, लेकिन तीन-चार साल से उन्होंने छोड़ दिया. पटना में मेरी भाभी हैं, वो छठ पूजा करती हैं.

स्मृति सिन्हा, अभिनेत्री

अब घर में छठ नहीं होता है, तो छठ पूजा पर बिहार आना नहीं हो पाता है. मुंबई से ही मैं छठी माई को प्रणाम कर लेती हूं. जिस दिन कद्दू भात बनाया जाता है, उस दिन नियम से कद्दू भात बनाती और खाती हूं. शाम और सुबह के अर्घ के वक्त नियम से सूरज देवता को प्रणाम कर आशीर्वाद लेती हूं. हालांकि, गुड़ के ठेकुआ और कचवनिया को बहुत मिस करती हूं. छठ से जुड़ी कई खास यादें हैं, जो इस दिन बहुत याद याद आती हैं. बचपन में छठ पूजा पर गेहूं को सुखाने की जिम्मेदारी हम बच्चों को ही मिलती थी. एक भी चिड़िया दाना ना खाए. ठेकुआ बनाने में भी मदद करते थे. घाट पर जाना बहुत पसंद था. वहां पर शाम और सुबह के बाद जो आतिशबाजी का नजारा होता था, उसकी यादें अब भी मेरी आंखों में हैं. इस साल मेरी छठ पर आधारित फिल्म छठ के बरतिया भी रिलीज हुई है. वो दिन मेरे लिए बहुत खास थे.

चंदन राय, अभिनेता

अभी तो मुंबई में हूं, लेकिन खरना के दिन अपने गांव महावा पहुंच जाऊंगा. उसके बाद दस दिन वहीं रहूंगा. मुझे जब भी छठ पर घर जाने का मौका मिलता है, तो मैं जरूर जाता हूं. क्योंकि मैं गांव से ही सीखता हूं. जो कुछ भी सीखता हूं, उसे मुंबई में बेचता हूं. मुंबई में संघर्ष के लिए जो जोश और जुनून चाहिए, वो भी यहीं से मिलता है. छठ पूर्वांचल का एक बहुत बड़ा त्योहार है, लेकिन हम बिहारियों के लिए एक इमोशन है. छठ की धुन सुनकर ही हर बिहारी इमोशनल हो जाता है. मेरे घर में पहले दादी ये व्रत करती थीं. अब मां करती हैं. बचपन में दिवाली के तीन दिन पहले से ही छठ का इंतजार रहता था. सावन में नहीं, हमारे गांव में छठ पूजा में हरियाली आती थी. बिहार में पलायन की समस्या रही है. साल भर जो गांव वीरान से रहते थे, वह छठ में लोगों से भर जाते थे. हमलोग रोड की सफाई से लेकर घाट बनाने का काम तक खुद से करते थे.

दीपक ठाकुर, गायक

छठ पूजा पर मैं कहीं भी रहूं, अपने गांव आथर पहुंच जाता हूं. मेरे घर में चाचा चाची ये व्रत करते हैं. बचपन से जैसे देखते आया हूं, यह त्योहार वैसा ही है. यही आस्था के इस पर्व को खास बनाता है. आज भी बूढ़ी गंडक नदी पर हम अपने हाथों से घाट बनाकर पूजा करते हैं. शाम को घाट से लौटने के बाद छठ के गीत गाते हैं. इस त्योहार से जुड़ी कई खास यादें हैं. एक बार बचपन में मैंने मुजफ्फरपुर के मार्केट में कार्गो पैंट और एक शर्ट देखी. मुझे वह बहुत पसंद आयी थी, लेकिन उसकी कीमत 700 रुपये थी. उस वक्त के लिहाज से वह दाम बहुत ज्यादा था. मां ने मना कर दिया, क्योंकि और लोगों को भी कपड़े दिलवाने थे और भी कई सारे खर्च होते हैं, लेकिन मैंने भी बोल दिया कि अगर वो कपड़ा नहीं मिला तो मैं घाट पर नहीं जाऊंगा. आखिरकार मां को तरस आ गया और वह मान गयी. मैं उस दिन को कभी नहीं भूलता.

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