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सूर्यपीठ बड़गांव : भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब ने की थी यहां सूर्य की उपासना, 12 सूर्यपीठों में है एक

माना जाता है कि नौवीं सदी में पालवंश के राजा देवपाल ने बड़गांव सूर्य तालाब के पास सूर्य मंदिर का निर्माण कराया था. कुछ लोग इसे उत्तरवर्ती गुप्तकाल का भी बताते हैं. यह मंदिर 1934 के भूकंप में ध्वस्त हो गया था. वर्तमान सूर्य मंदिर में भगवान सूर्य की पालकालीन प्रतिमा स्थापित है.

राजगीर. देश के 12 प्रमुख सूर्यपीठों में बड़गांव भी एक है. द्वापरकालीन इस सूर्यपीठ में भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब ने सूर्य उपासना, अनुष्ठान और अर्घ दान आरंभ किया था. माना जाता है कि नौवीं सदी में पालवंश के राजा देवपाल ने बड़गांव सूर्य तालाब के पास सूर्य मंदिर का निर्माण कराया था. कुछ लोग इसे उत्तरवर्ती गुप्तकाल का भी बताते हैं. यह मंदिर 1934 के भूकंप में ध्वस्त हो गया था. वर्तमान सूर्य मंदिर का निर्माण उसी साल नालंदा के समीप के गांव फतेहपुर निवासी अधिवक्ता नवल किशोर प्रसाद सिन्हा ने कराया था. वर्तमान सूर्य मंदिर में भगवान सूर्य की पालकालीन प्रतिमा स्थापित है. इससे भी स्पष्ट होता है कि पाल राजाओं ने तालाब के समीप मंदिर बनवाया होगा.

बड़गांव में 15वीं शताब्दी तक थे दो छोटे सूर्य तालाब

स्थानीय लोगों की मानें तो 15वीं शताब्दी में बड़गांव में दो छोटे सूर्य तालाब थे. 17वीं शताब्दी में तालाब के आकार को बड़ा किया गया. यहां कार्तिक और चैत्र महीने में राजकीय छठ मेला लगता है. इस मेले में बिहार के जिलों के अलावा झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश आदि प्रदेशों के सूर्य उपासक और छठव्रती अर्घदान के लिए आते हैं. कार्तिक छठ मेला में तो करीब तीन से पांच लाख तक की भीड़ होती है. बिना भेदभाव के सभी वर्ग, जाति और समूह के लोग एकत्रित होकर भगवान सूर्य की पूजा-आराधना के साथ अर्घदान करते हैं. मान्यता है कि सच्चे मन से यहां सूर्य उपासना करने और अर्घदान करने से मनोवांछित फल मिलते हैं.

छठ घाट सज धज कर तैयार, छठ व्रतियों का इंतजार

इधर, पर्यटक शहर, राजगीर और आसपास के छठ घाट सज धज कर तैयार हो गया है. सभी छठ घाटों पर स्थानीय प्रशासन और श्रद्धालु स्वयंसेवी संगठनों द्वारा बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करायी गयी हैं. राजगीर के सुप्रसिद्ध सूर्य कुंड, वैतरणी और सूर्य तालाब व मंदिर को आकर्षक रूप से सजाया संवारा गया है. रंगबिरंगी रोशनी से सभी छठ घाटें जगमग कर रही है. सूर्य कुंड में दो द्वार है. पश्चिमी द्वार से छठ व्रती कुंड में भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के लिए प्रवेश करेंगे और दक्षिणी द्वारा से बाहर निकलेंगे. हसनपुर सूर्य तालाब में सूर्यपीठ बड़गांव जैसी भीड़ उमड़ती है. इसलिए अनुमंडल और नगर परिषद प्रशासन दोनों इसके लिए गंभीर हैं.

सूर्य तालाब के बीच में है सूर्य मंदिर

यहां सूर्य तालाब के बीच में सूर्य मंदिर है. मंदिर में जाने के लिए पतला सेतु बना है. एक बार में मंदिर में सैकड़ों लोग नहीं जमा हो सकते हैं. इस लिए मंदिर सेतु के प्रवेश द्वार पर भीड़ को नियंत्रित करने की व्यवस्था की गयी है. इस तालाब के दो तरफ उत्तर और पूरब में छठ व्रतियों के लिए पक्की सीढ़ियां बनी है. तालाब के पश्चिम में नेशनल हाईवे है. दक्षिण में सीढ़ियों का निर्माण अब तक नहीं हो सका है. इस सूर्य तालाब में केवल राजगीर के ही नहीं बल्कि सिलाव ब्लॉक के भी हजारों छठव्रती अर्घ्यदान के लिए यहां पहुंचते हैं. सरकारी व्यवस्था के अलावे अभाविप, एनएसयूआई, वेणुवन ग्रुप एवं अन्य के द्वारा भी छठ व्रतियों को भरपूर सहयोग किया जाता है. भीड़ नियंत्रण में भी उनका अमूल्य योगदान रहता है.

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सूर्य कुंड के पानी से बनेंगे खरना प्रसाद

राजगीर में नहाय खाय के व्रत से चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व छठ शुक्रवार को राजगीर तथा आसपास के गांवों में शुरू हो गया है . छठव्रती सबसे पहले स्नान कीं. सूर्य भगवान की पूजा और नमन करने के बाद उनके द्वारा भोजन में परंपरा अनुसार अरवा चावल का भात, चना दाल, लौकी (कद्दू) की सब्जी साग ग्रहण किया गया। छठ गीतों से शहर से गांव तक की गलियां -मुहल्ले गूंज रहे हैं. चहुंओर छठ को लेकर भक्तिमय माहौल बना हुआ है.

भारतीय सेब से महंगा मिल रहा चाइनीज नाशपाती

लोक आस्था के महापर्व के मौके पर राजगीर और आसपास का बाजार सज धज कर तैयार हो गया है. जगह-जगह पूजा सामग्री, सूपदौरा, केला, फल आदि की दुकानें सज धज कर तैयार हैं. ग्राहकों का झुंड की दुकानों पर पहुंचने लगे हैं. ऐसे तो सभी अनुष्ठानों में केला का विशेष महत्व है. लेकिन इस महापर्व में केला बहुत आवश्यक है. इसलिए केला का बाजार भी सज गया है. शहर में केला पश्चिम बंगाल, असम, मद्रास आदि जगहों से मांगे गये हैं। थोक भाव में 300 से 500 रुपये तक केले के घौद मिल रहे हैं। खरीददार केवल केला की खरीदारी ही बल्कि एडवांस बुकिंग भी करा रहे हैं. थोक बिक्रेता कारु साव की माने तो राजगीर में केला कॉर्बेट से नहीं बल्कि लकड़ी की कुन्नी के धुएं से पकाये जाते हैं .

फल की कीमत एक नजर में

  • * सेब – 60 से 160 रुपये किलो

  • * नाशपाती – 200 रुपये किलो

  • * संतरा – 50 से 80 रुपये किलो

  • * केला – 300 से 500 रुपये घौंद

  • * नारियल – 30 रुपये पीस

  • * शकरकंद – 30 रुपये किलो

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