मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हो चुका है. अब लोगों को इंतजार तीन दिसंबर का है जिस दिन मतों की गिनती की जाएगी. इसके बाद साफ हो जाएगा कि प्रदेश में बीजेपी की वापसी होगी या फिर जनता कांग्रेस को इस बार मौका देगी. इस बीच इंडिया टुडे ने एक खबर प्रकाशित की है जिसने बीजेपी की टेंशन बढ़ा दी है. खबर के अनुसार प्रदेश में बीजेपी पर सत्ता विरोधी लहर का साया मंडराता नजर आया. पार्टी के शीर्ष नेता मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के संभावित प्रभाव से भली-भांति परिचित थे. वे इस चीज को लेकर कई बार असहज स्थिति में भी नजर आए. हालांकि, बीजेपी के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने मामले का संज्ञान लिया और सुनिश्चित करने का प्रयास किया कि बीजेपी विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करे.
पीएम मोदी और अमित शाह ने ऐसे भरी कार्यकर्ताओं में ऊर्जा
इंडिया टुडे से बात करते हुए बीजेपी के शीर्ष सूत्रों ने मध्य प्रदेश में चुनावी लड़ाई की जटिलताओं को स्वीकार किया और कहा कि पार्टी ने दिखावटी कदम उठाने के बजाय मतदाताओं को शामिल करने के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाने का लक्ष्य रखा था जिसका प्रभाव चुनाव परिणाम में देखने को मिलेगा. बीजेपी के एक प्रमुख पदाधिकारी ने इस बात का जिक्र किया कि शुरुआत में, मध्य प्रदेश में कैडर को निराशा का सामना करना पड़ा, साथ ही जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं में थोड़ी निराशा दिख रही थी. हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह सहित अन्य शीर्ष नेतृत्व ने बीजेपी कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. आगे बीजेपी के पदाधिकारी ने कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह ने चुनौतियों का अनुमान लगाया और जमीनी स्थिति का आकलन करने के लिए तुरंत केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) की बैठक बुलाई. उन्होंने दूसरी पार्टियों की तुलना में एक महीने पहले उम्मीदवारों की पहली सूची भी जारी की, जिससे कमजोर कैडर में नई ऊर्जा भर गई.
जहां बीजेपी कमजोर थी वहां…
सूत्रों के हवाले से जो खबर प्रकाशित की गई है उसमें कहा गया कि पीएम मोदी और अमित शाह ने जमीनी मुद्दों को टारगेट किया और मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को एकजुट किया. आरएसएस के प्रयास की बदौलत मध्य प्रदेश में बीजेपी की नींव को मजबूती मिली. इससे स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं में नई जान आ गई. इस प्रयास ने बीजेपी को और अधिक बल दिया. इंडिया टुडे को एक अन्य सूत्र ने बताया कि बीजेपी नेतृत्व ने राज्य में चुनाव होने तक सक्रिय बने रहने की अनिवार्यता को समझा जिससे पार्टी जमीनी रूप में मजबूत हुई. इस दूरदर्शिता का असर टिकट वितरण में नजर आया, खासकर उन सीटों पर जहां भगवा पार्टी को जीत की कम संभावना दिख रही थी. यही नहीं, बीजेपी ने रणनीतिक रूप से कई केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को चुनावी मैदान में उतारा. बीजेपी के इस निर्णय से राज्य नेतृत्व में लचीलेपन का संकेत मिला.
आत्मविश्वास से भरी कांग्रेस हो गई परेशान
वरिष्ठ नेताओं, केंद्रीय मंत्रियों और विधायकों को मैदान में उतारने का उद्देश्य इस संदेश के लिए था कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान की भूमिका तय नहीं है. सूत्रों ने कहा, जमीनी स्तर पर काम और प्रचार से लेकर सितारों से सजी रैलियों, के साथ-साथ रोड शो से बीजेपी को लोगों का विश्वास वापस हासिल करने में मदद मिली. यह कुछ कारक रहे जिसने पार्टी को ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया, जिससे आत्मविश्वास से भरी कांग्रेस परेशान हो गई.
इस बार हुआ रिकॉर्ड मतदान
यहां चर्चा कर दें कि 17 नवंबर को एक ही चरण में सभी 230 विधानसभा क्षेत्रों के लिए मतदान करवाया गया. 1956 में स्थापना के बाद से मध्य प्रदेश के इतिहास में इस बार मतदान सबसे अधिक रिकॉर्ड किया गया. इस बार 2018 के विधानसभा चुनावों के 75.63 प्रतिशत मतदान को भी 0.59 प्रतिशत से पीछे जनता ने छोड़ दिया. गौरतलब है कि 2003 के बाद से बीजेपी ने मध्य प्रदेश में तीन बार विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस ने केवल एक बार ही जीत का स्वाद चखा.