गुमला, दुर्जय पासवान : गुमला जिले में 16 हजार से अधिक आदिम जनजाति के लोग निवास करते हैं, परंतु उनकी जिंदगी भगवान भरोसे चल रही है. इस जनजाति के लिए सरकारी सुविधा महज दिखावा है. सरकार के सबसे नीचे के सिस्टम के कारण सरकारी योजनाएं आदिम जनजाति बहुल गांवों तक नहीं पहुंच पा रही है. यहीं वजह है कि आज भी इस जनजाति के लोगों का जीवन जंगलों पर आश्रित है. कई गांवों में पीने के लिए स्वच्छ पानी नहीं है. शौच करने के लिए शौचालय व चलने के लिए सड़क नहीं है. कई गांवों में अभी तक बिजली नहीं पहुंची है. अगर कहीं पोल व तार है, तो बिजली आपूर्ति नहीं होती है. रोजगार का साधन नहीं है. बॉक्साइट क्षेत्रों में रहने वाले आदिम जनजाति अपनी ही जमीन पर आज मजदूरी करने को विवश हैं. गांवों में काम नहीं रहने से युवक-युवती पलायन कर गये हैं. शिक्षा का स्तर इतना खराब है कि सातवीं व आठवीं कक्षा की पढ़ाई के बाद कई युवक-युवती बीच में पढ़ाई छोड़ घर की आर्थिक स्थिति ठीक करने में लग जाते हैं.
आदिम जनजाति बहुल पंचायतें
बिशुनपुर प्रखंड की बिशुनपुर, बनारी, गुरदरी, अमतीपानी, सेरका, निरासी, नरमा, हेलता, चीरोडीह, घाघरा व डुमरी, जारी प्रखंड की जरडा, डुमरी, सिकरी, जुरहू, करनी, गोविंदपुर, मेराल, मझगांव, अकासी, उदनी, जैरागी व खेतली, पालकोट प्रखंड की डहूपानी व कुल्लूकेरा, कामडारा प्रखंड की रेड़वा, गुमला प्रखंड की घटगांव व आंजन, रायडीह प्रखंड की ऊपरखटंगा, कांसीर, पीबो, जरजट्टा, सिलम, कोंडरा, केमटे, कोब्जा व नवागढ़, घाघरा प्रखंड की विमरला, घाघरा, रूकी, सेहल, आदर, दीरगांव व सरांगो, चैनपुर प्रखंड की बामदा, जनावल, छिछवानी, कातिंग, मालम और बरडीह पंचायत में सबसे अधिक आदिम जनजाति निवास करते हैं.
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असुर, कोरवा, बृजिया, बिरहोर, परहैया आदिम जनजाति के लोग गुमला में रहते हैं. कुल 49 पंचायतों के 166 गांवों में आदिम जनजातियों का डेरा है. कुल परिवारों की संख्या 3522 हैं, जिनकी आबादी 16 हजार से अधिक हैं.
आवास निर्माण में हुई है गड़बड़ी
आदिम जनजातियों के रहने के लिए पक्का आवास बनाने की योजना है. परंतु आवास का पैसा विभाग के अधिकारियों से मिल कर बिचौलिये खा गये. अभी भी लाभुकों का घर आधा अधूरा है. कई बार आदिम जनजातियों ने आइटीडीए विभाग के अधिकारियों से मिल कर आवास बनवाने की मांग की.
गांवों में स्वास्थ्य सुविधा नहीं
जंगल व पहाड़ों में रहने वाले आदिम जनजाति गांवों में स्वास्थ्य सुविधा नहीं है. यही वजह है कि दो साल पहले मलेरिया व डायरिया से बिशुनपुर व घाघरा की कई जनजातियों की मौत हो चुकी है. गांव के झोलाछाप डॉक्टर से इलाज कराते हैं या फिर झाड़-फूंक कराते हैं.
शौचालय निर्माण में भ्रष्टाचार
आदिम जनजाति गांवों में स्वच्छ भारत अभियान फेल है. सरकार की योजना हर घर में शौचालय बने. यह महज जुमला साबित हुआ. आजादी के 75 वर्ष बीत गये, पर अभी तक कई गांवों में शौचालय नहीं है. लोग खुले में शौच करते हैं. बिना शौचालय बने पैसा निकाल लिया गया.
पहाड़ से गिरने वाला पानी पीते हैं लोग
कई गांवों में पानी संकट है. पहाड़ से गिरने वाला पानी लोग पीते हैं. कुछ जगह नदी का पझरा पानी जमा कर लोग उसका घरेलू उपयोग में लाते हैं. सोलर सिस्टम से पानी सप्लाई के लिए कुछ गांवों में टंकी की स्थापना की गयी है, परंतु कई जगह सोलर सिस्टम बेकार है. कुछ जगह पानी मिल रहा है.
कतारीकोना से असुरों ने किया पलायन
कतारीकोना गांव के सोमरा असुर, फागुनी असुर, सैंटी असुर, भदवा असुर, संजय असुर ने कहा कि गांव में सुविधा के नाम पर सिर्फ बिजली सेवा है और राशन घर तक लाकर दिया जाता है. इसके अलावा गांव में सरकारी सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है. जीवन भगवान भरोसे चल रहा है. गांव से कई लोग पलायन कर गये हैं.
विलुप्त हो रही लालमाटी की कोरवा जनजाति
रायडीह के लालमाटी गांव घने जंगल व पहाड़ पर बसा है. यहां पर 200 वर्षों से 15 परिवार कोरवा जनजाति के लोग रहते हैं, जो आज विलुप्त होने के कगार पर है. जंगल से सूखी लकड़ी व दोना पत्तल बाजारों में बेच कर जीविका चलाते हैं. रोजगार व सिंचाई की व्यवस्था नहीं है. बरसात में धान, गोंदली, मड़ुवा, जटंगी की खेती करते हैं, जो कुछ महीने खाने के लिए होता है. जंगली कंद-मूल भी खाते हैं.
केवना गांव : खुले में शौच करते हैं ग्रामीण
केवना गांव जंगल व पहाड़ों के बीच बसा हुआ है. यह खूबसूरत गांव है, परंतु यहां रहने वाले आदिम जनजातियों को प्रशासन सरकारी सुविधा देने में नाकाम है. स्कूल जर्जर है, पीने के पानी की समस्या है. लोग खुले में शौच करते हैं. आने-जाने के लिए गांव में पथरीली व पहाड़ी सड़क है. बीमार होने या गर्भवती महिला को गेड़ुवा या तो खटिया में लाद कर मुख्य सड़क तक लाया जाता है, तब मरीज अस्पताल पहुंचते हैं.
गुमला जिले के किसी भी आदिम जनजाति गांव में ढंग से पानी, शौचालय, स्वास्थ्य व सड़क की व्यवस्था नहीं है. हमलोग पहाड़ व जंगलों के बीच रहते हैं. किसी प्रकार जीवन काट रहे हैं.
विमलचंद्र असुर, जनजाति के नेता
केवना के लोग पथरीली व पहाड़ी सड़क से होकर सफर करते हैं. सरकारी योजना का लाभ हम कोरवा जनजाति के लोगों को नहीं मिल रहा है. यहां तक कि राशन लाने के लिए कोसों पैदल चलना पड़ता है.
बिरसमुनी कोरवाइन, ग्रामीण
गांव के कई लोगों को पेंशन योजना का लाभ नहीं मिलता. यहां तक कि पढ़े-लिखे युवक-युवती भी बेकार बैठे हैं. मजबूरी में लोग पलायन करने को विवश हैं. जनजातियों की योजना का लाभ विभाग उठा रहा है.
फूलमनी कोरवाइन, ग्रामीण
हमारे गांव में बिजली नहीं है. सोलर लाइट लगी थी, परंतु वह भी बेकार है. जलमीनार है, परंतु, शुद्ध पानी नसीब नहीं है. चापानल भी नहीं है, जिससे डाड़ी कुआं का पानी पीने को विवश हैं.
लखनू कोरवा, ग्रामीण