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बिहार के खेतों में लगी फसल है तैयार, खेतिहर मजदूरों को ले जाने आ गये शहर से ठेकेदार, किसान लगा रहे गुहार

किसानों की चिंता का कारण खेतों में तैयार धान की फसल को खलिहान तक लाना है. धान की फसल खेतों में ही झड़ने से किसान पहले से ही चिंतित नजर आ रहे हैं. ठेकेदार प्रतिदिन दूसरे राज्यों के ईंट-भट्ठों के मालिकों से मोटी रकम लेकर स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत से मजदूरों के पलायन में सहयोगी बन रहे हैं.

वारिसलीगंज. मजदूरों के लगातार पलायन से किसानों की चिंता बढ़ने लगी है. किसानों की चिंता का कारण खेतों में तैयार धान की फसल को खलिहान तक लाना है. धान की फसल खेतों में ही झड़ने से किसान पहले से ही चिंतित नजर आ रहे हैं. ठेकेदार प्रतिदिन दूसरे राज्यों के ईंट-भट्ठों के मालिकों से मोटी रकम लेकर स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत से मजदूरों के पलायन में सहयोगी बन रहे हैं.

ठेकेदारों ने खड़ी कर दी बड़ी समस्या

दूसरे राज्यों से मजदूर लेने आ रहे ठेकेदारों ने यहां के किसानों के सामने बड़ी समस्या खड़ी कर दी है. इस कारण धान की कटनी पर असर पड़ता देख रहा है. किसान प्रकृति की मार तो बखूबी सहन कर लेते हैं. प्राकृतिक आपदाओं से उबरकर और महंगे बीज व खादों की खरीदारी कर किसान धान की उपज तो कर लिये, परंतु किसानों को धान कटाई की भी चिंता सताने लगी है.

फसल पूरी तरह तैयार

धान की बाली पूरी तरह तैयार होकर इंतजार में है. ऐसी स्थिति में कटाई नहीं होने पर उपज में कमी होने की आशंका बनी हुई है. धान फसल की कटाई समय पर नहीं होने की स्थिति में कई तरह के रोग मसलन सुखाड़, हल्दिया, बाली का सुखना आदि हो जाता है. इससे फसल पर प्रतिकूल असर पड़ता है.

शहर की ओर कर रहे रुख

पढ़े-लिखे युवा वर्ग रोजी-रोजगार की जुगत में शहर की ओर रुख कर रहे हैं. ऐसे लोग स्वयं व अपने-अपने सदस्यों को मजदूरी के बजाय स्वरोजगार करने का दबाव बनाने लगे हैं. इसके अलावा मनरेगा समेत अन्य विकास योजनाओं का काम करना पसंद करते हैं. ऐसी स्थिति में दिन-व-दिन मजदूरों की कमी होती जा रही है. मजदूर वर्ग के लोग का पट्टा, बटैया व चौरहा पर खेत लेकर खेती स्वयं करने में लगे हैं. इसका असर भी साफ दिख रहा है.

यांत्रीकरण ही विकल्प

खेती-बाड़ी के लिए मजदूर नहीं मिलने की समस्या कोई अस्थायी नहीं है. यह समस्या कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है. ऐसी स्थिति में किसानों के समक्ष एकमात्र विकल्प यांत्रिकीकरण रह गया है. जो कार्य कई मजदूरों द्वारा 10 दिनों में किया जायेगा, वह कार्य कृषि यंत्र घंटों में कर रहा है. अब खेती करने से लेकर जुताई, कुटाई में भी कृषि यंत्रों का उपयोग किसान के लिए लाभकारी है. किसानों को मजदूरों की कमी भी नहीं खेलेगी.

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क्या कहते हैं किसान

मजदूर काम से ज्यादा मजदूरी लेते हैं. इसके बावजूद कार्य को तवज्जो नहीं देते हैं. ऐसे में किसान का खर्च ज्यादा होता है और लाभ कम होता है. कभी-कभार मजदूर के चलते रवि फसल लगाने के लिए पटवन करना पड़ता है.

  • सुमन सिंह-गोसपुर, वारिसलीगंज

सरकार ने मजदूरों के पलायन रोकने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं. परंतु, अधिकारियों की लापरवाही के कारण मजदूरों का पलायन रोकने में विफल हो रही है. मजदूरों की समस्या का एक बड़ा कारण यह भी है.

  • मिठु सिंह-कोंचगांव, वारिसलीगंज

धान की रोपनी के समय मजदूरों की उपलब्धता प्रचुर मात्रा में होती है. लेकिन, धान की कटनी के समय प्रतिवर्ष मजदूरों का अभाव हो जाता है. ऐसी स्थिति में धान उपजाने में जो पूंजी व मेहनत लगी है, सब बेकार हो जाता है.

  • बबलू सिंह-मकनपुर, वारिसलीगंज

क्या कहते हैं मजदूर

धान की कटाई में जितनी मेहनत करनी पड़ती है, उस हिसाब से मजदूरी काफी कम मिलती है. ऐसी स्थिति में धान काटने से ज्यादा लाभ दूसरे कार्य में है. इसलिए धान की कटाई का काम करना अच्छा नहीं लगता है.

  • पुतुल मांझी-दरियापुर, वारिसलीगंज

पहले के किसान मजदूर को अपना परिवार समझते थे. मजदूरी ज्यादा भी लेते थे, तो किसान आंख बंद कर देते थे. लेकिन, आज स्थिति इससे अलग है. अब मजदूर मेहनत करने से कतराने लगे हैं.

  • रामदीन मांझी-गोसपुर, वारिसलीगंज

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