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देवघर : नवान्न पर्व पर बाबा मंदिर में भोलेनाथ के जलाभिषेक को उमड़े श्रद्धालु, शुरू हुई खप्पर पूजा

शुभ दिन होने के कारण बाबा मंदिर में पट खुलने से लेकर बंद होने तक भक्तों की भीड़ लगी रही. परिसर हर-हर महादेव के नारों से गूंजता रहा. मंदिर परिसर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु मुंडन, जनेऊ आदि अनुष्ठान कराते देखे गये.

देवघर : अगहन मास बुधवार को नवान्न को लेकर बाबा मंदिर में अहले सुबह से ही लोगों की भीड़ देखी गई. शुभ तिथि के वजह से मंदिर में मुंडन कराने वाले भक्तों का सुबह से ही तांता लगा रहा. मालूम हो हर खास दिन बाबा मंदिर के पट खुलने व बंद होने के समय पर भी प्रभाव पड़ता है. आज से बाबा मंदिर शाम साढ़े छह बजे खुलने के बाद शृंगार पूजा के बाद रात आठ बजे तक बंद हो जायेगा. यह सिलसिला फाल्गुन मास पूर्णिमा तिथि तक जारी रहेगा. उसके बाद पुन: पट बंद होने के समय में बदलाव हो जायेगा. पूर्णिमा के बाद बाबा मंदिर का पट रात आठ बजे के जगह एक घंटा देर यानी रात नौ बजे बंद होगा. सुबह पट खुलने के समय में सावन को छोड़ अन्य दिनों में सुबह चार बजे खुलेगा.


भीड़ के कारण साढ़े चार बजे बंद हुआ पट

शुभ दिन होने के कारण बाबा मंदिर में पट खुलने से लेकर बंद होने तक भक्तों की भीड़ लगी रही. परिसर हर-हर महादेव के नारों से गूंजता रहा. मंदिर परिसर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु मुंडन, जनेऊ आदि अनुष्ठान कराते देखे गये. बाबा को नया अन्न चढ़ाने के बाद शाम को खप्पर में लकड़ी दान करने वाले लोग भी आते दिखे. मान्यता है कि खप्पर में लकड़ी दान करने से मां काली अपने भक्तों को मनोवांछित फल की कामना पूर्ण करती हैं. जलार्पण के लिए आने वाले भक्तों की कतार भी क्यू कॉम्प्लेक्स तक देखी गयी. अधिक भीड़ के कारण मंदिर का पट शाम साढ़े चार बजे तक बंद हुआ.

बाबा पर अर्पित किया गया नये अन्न से तैयार साकल

नवान्न पर्व को लेकर बुधवार सुबह से ही देवघर बाबा मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ पूजा अर्चना करने के साथ-साथ साकल चढ़ाने के लिए लगी हुई थी. बाहरी श्रद्धालुओं से अधिक स्थानीय श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही. इससे पहले प्रात: काल की पूजा में कांचा जल और सरदारी पूजा के बाद पुजारी सोनाधारी झा ने घंघरा, दूध, नया चावल, मूली, गुड़, दही और केले से निर्मित साकल बाबा पर अर्पित किया. इसके बाद स्थानीय लोगों द्वारा बाबा पर साकल चढ़ाना शुरू किया. साकल चढ़ाने के बाद श्रद्धालु अपने-अपने घर पहुंचे और विधिवत अग्नि प्रज्ज्वलित कर भुजदान किया. मंत्र उच्चारण के साथ अग्नि में साकल एवं दही चूड़ा का भोग अर्पित किया गया. शुभ घड़ी में अपने घरों में शिशुओं को पहला अनाज खिलाया गया. दही, चूड़ा, गुड़ और केला खाकर नया अनाज खाना शुरू हो गया है. पुरोहित समाज के नारायण पंडित ने बताया कि, बाबा नगरी में यह पर्व प्राचीन काल से चला आ रहा है. यह किसानों से जुड़ा हुआ पर्व है. किसान अपने इष्ट देवता को अनाज अर्पित कर अपने खेत में अच्छी फसल के लिए कामना करते हैं.

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