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भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का हजारीबाग से रहा है विशेष लगाव

राजेंद्र प्रसाद अपनी पुस्तक आत्मकथा में हजारीबाग, रामगढ़, बड़कागांव के बारे में उल्लेख किया है. इस पुस्तक में उन्होंने अपनी जेल जीवन की विस्तृत चर्चा की है.

संजय सागर, बड़कागांव: भारत को आजाद करने में हजारीबाग का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद आजादी की लड़ाई के दौरान हजारीबाग और रामगढ़ से गहरा लगाव था. अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर हजारीबाग के केंद्रीय कारागार में तीन बार 11 जनवरी 1932 से 24 जून 1932 तक, दूसरी बार 22 जनवरी 1933 से 07 सितंबर 1933 तक और 28 जनवरी 1944 से 1 दिसंबर 1944 को बंदी बनाकर रखा था. राजेंद्र प्रसाद अपनी पुस्तक आत्मकथा में हजारीबाग, रामगढ़, बड़कागांव के बारे में उल्लेख किया है. इस पुस्तक में उन्होंने अपनी जेल जीवन की विस्तृत चर्चा की है. जेल में उनका अधिकांश समय अध्ययन, सूत कातने तथा राजनीति चर्चाओं में बीता था.

खान अब्दुल गफ्फार खां, राहुल सांकृत्यायन, महामाया प्रसाद सिंह, केबी सहाय, बाबू रामनारायण सिंह, जगत नारायण लाल, स्वामी सहजानंद सरस्वती समेत कई नेता देशरत्न के साथ जेल में बंद थे. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व आनंदित साव, प्रयाग रविदास, प्रकाल रविदास, पारस महतो ने भी किया था. इसके अलावा हजारीबाग के समाहरणालय पर तिरंगा झंडा फहराने वाले में स्वतंत्रता सेनानी केदार सिंह, सुधीर मलिक, कस्तूरी मल अग्रवाल, सीताराम अग्रवाल, चेत लाल तेली, रामदयाल साव, कांशी राम मुंडा थे. रामगढ़ अधिवेशन के दौरान डॉ राजेंद्र प्रसाद का सहयोगी बड़कागांव प्रखंड के सूबेदार सिंह, चेता मांझी, लखी मांझी, ठाकुर मांझी, खैरा मांझी, बड़कू मांझी, छोटका मांझी, गुर्जर महतो भी थे.

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