मकर संक्रांति को लेकर अभी से शहर के बाजारों में चहल-पहल बढ़ गयी है. गया के परंपरागत तिलकूट निर्माताओं ने शहर में कई जगहों पर तिलकूट का उत्पादन शुरू कर दिया गया है. हालांकि महंगाई की मार भी तिलकूट बाजार पर सीधा देखा जा रहा है. इसके बावजूद शहर में प्रतिदिन चार से पांच क्विंटल तिलकूट का उत्पादन किया जा रहा है. शहर के पावरगंज चौक,महावीर चौक तथा बड़ा तालाब में खुदरा एवं थोक तिलकूट की दुकानें सज गयी है. जहां दुकानदारों के साथ आम लोग भी तिलकूट की खरीदारी कर रहे हैं. पिछले कई वर्षों से तिलकूट की व्यवसाय से जुड़े दुकानदारों ने बताया कि गया के पारंपरिक तिलकूट का स्वाद इस बार ग्राहकों को उपलब्ध कराया जा रहा है. ग्राहकों के लिए गुड, चीनी तथा खोवा के तिलकूट उपलब्ध हैं. हालांकि पिछले वर्ष की तुलना में इसके मूल्य में 50 से 60 रुपये प्रति किलो की वृद्धि हुई है. बाजार में गुड तिलकूट अलग-अलग दरों के उपलब्ध हैं. 200, 280 एवं 360 रुपये प्रति किलो की दर से बेचे जा रहे हैं. वहीं खोआ तिलकूट 450 रुपये प्रति किलो, खोवा लाई 500 रुपये, तिल लड्डू 220, तिल पापड़ी 320 एवं बेदाम चाट 280 रुपये प्रति किलो की दर से बिक्री की जा रही हैं. वहीं चीनी तिलकूट के भी विभिन्न क्वालिटी उपलब्ध है. तिलकूट निर्माताओं ने बताया कि इसका मुल्य इसमें प्रयुक्त होने वाली सामग्री पर निर्भर करता है. अधिक तिल का प्रयोग होने वाला तिलकूट खस्ता होता है तथा इसकी कीमत अधिक रहती है.
दो लाख रुपये का प्रतिदिन हो रहा है व्यवसाय
जिले में औसतन प्रतिदिन दो लाख रुपये के तिलकूट का व्यवसाय हो रहा है. तिलकूट निर्माताओं के अलावा कोलकाता तथा चतरा एवं गया से भी जिले में तिलकूट की आपूर्ति की जा रही है. जहां कई लोग अपने स्वाद एवं पसंद के अनुसार तिलकूट का निर्माण करा रहे हैं. वहीं कोलकाता तथा गया से आने वाला तिलकूट की भी खासी मांग बाजार में है.
दो महीने तक चलता है व्यवसाय
जिले में तिलकूट का व्यवसाय लगभग दो महीने तक चलता है. 15 जनवरी मकर संक्रांति के एक पखवारा बाद तक यह व्यवसाय अपने चरम पर होता है. परंतु इसके बाद भी तिलकूट की बिक्री जारी रहती है. कई लोग ठंड के औषधि के रूप में भी तिलकूट का उपयोग करते हैं. वहीं मिठाई के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है. इस वर्ष नवम्बर माह के अंतिम सप्ताह से ही तिलकूट निर्माण की तैयारी शुरू कर दी गई है तथा दुकानदार ग्राहकों की पसंद के अनुसार इसका स्टॉक रखना शुरू कर दिए हैं.
Also Read: लोहरदगा : नल जल योजना में गड़बड़ी, एक लाख 87 हजार का जलमीनार बना साढ़े तीन लाख में