चार राज्यों के विधानसभा नतीजे आ गये हैं. मोदी का जादू चल गया है. नतीजों के अगले ही दिन मोदी सरकार द्वारा साहसपूर्वक संसद की बैठक बुलाना यह दर्शाता है कि भाजपा का अपना आकलन ठोस रहा है. तेलंगाना एक मोड़ था. वहां भाजपा ने वंशवादी केसीआर परिवार समेत भारतीय राष्ट्र समिति को खत्म करने में मदद की है. दूसरे शब्दों में, यह लोकतंत्र का नृत्य है. एक वोट सरकारें बदल सकता है. मोदी और भाजपा अब 2024 के लोकसभा चुनाव पर ध्यान केंद्रित करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. वंशवाद भ्रष्टाचार लाता है, यह प्रचार बहुत प्रभावी रहा है. यह अखिलेश यादव, एमके स्टालिन, उद्धव ठाकरे जैसे वंशवादियों के लिए एक संदेश है.
कांग्रेस द्वारा चुनावी हिंदुत्व को अपनाना एक नकारात्मक कारक रहा है. राहुल गांधी की लगातार विदेश यात्राएं मतदाताओं को पसंद नहीं आयीं. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के करोड़ों आदिवासी मतदाताओं ने कांग्रेस को नकार दिया. राहुल गांधी का अडानी विरोधी और चीन समर्थक अभियान उत्तर भारतीय मतदाताओं को रास नहीं आया. दिलचस्प बात यह है कि सनातन धर्म पर डीएमके के उदयनिधि के आक्रोश ने उत्तर भारत में कांग्रेस की हार सुनिश्चित कर दी. भाजपा ने इसका प्रभावी इस्तेमाल किया. राहुल गांधी का प्रिय नारा ‘जल, जंगल, जमीन’ छत्तीसगढ़ में असफल रहा. इसका कारण है मतदाताओं का सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस से विश्वास उठना.
प्रत्येक राज्य से एक स्पष्ट संदेश है. लेकिन पिछले कई घंटों से अनुमान लगा रहे कई राजनीतिक पंडित आज उलझन में हैं. एग्जिट पोल ने व्यापक रुझान का संकेत दिया था, लेकिन कई पोल में स्पष्टता की बजाय भ्रम अधिक फैलाया गया. जैसा एक राजनेता का लोकप्रिय कथन है कि वोट उंगली दिखाकर किया जाता है, लेकिन टीवी रिमोट से कोई भी चैनल बदल देता है. पहली बार कई टीवी दर्शक अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पार्टियों को लेकर भ्रमित रहे.
तेलंगाना में कांग्रेस की जीत का कारण केसीआर का वंशवाद है. तेलंगाना के मतदाता आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बंटवारे के लिए कांग्रेस के आभारी हैं. सोनिया गांधी को राज्य की अम्मा माना जाता है. कांग्रेस के रेवंत रेड्डी ने केसीआर परिवार के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया था. उन्होंने यहां तक कहा है कि अगर कांग्रेस सत्ता में आयी, तो केसीआर को गिरफ्तार किया जायेगा. राहुल और प्रियंका गांधी ने संयुक्त रूप से प्रचार किया. राज्य के अल्पसंख्यक वोट केसीआर और ओवैसी को छोड़कर कांग्रेस की ओर चले गये. हिंदू वोट भाजपा में गये. इसलिए रेवंत रेड्डी की यह लहर दिखी है. क्या हम यह मान सकते हैं कि भारत जोड़ो यात्रा का कोई प्रभाव नहीं है, लेकिन इसका उत्तर यह है कि मतदाताओं ने इसका विश्लेषण किया है और कांग्रेस को चुना है.
कांग्रेस ने तेलंगाना में शीघ्र ही रेवंत की पहचान कर ली थी, पार्टी के अंदर के मतभेदों को सुलझा लिया गया था, कर्नाटक को भुनाया गया, बीआरएस की योजनाओं का मुकाबला किया गया, बीआरएस-भाजपा-मजलिस को साझेदार के रूप में चित्रित किया गया. इनका फायदा पार्टी को मिला. कांग्रेस को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को अच्छी प्रतिक्रिया मिलने के बावजूद इस साल की शुरुआत में भी राज्य में अपनी संभावनाओं के बारे में ज्यादा उम्मीद नहीं थी. आंध्र प्रदेश में यात्रा को मिली ठंडी प्रतिक्रिया के कारण पार्टी ने पिछले साल नवंबर में यात्रा के राज्य से बाहर निकलने के तुरंत बाद प्रदेश अध्यक्ष को बर्खास्त कर दिया था.
Also Read: तेलंगाना में सत्ता परिवर्तन