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बिहार में शिक्षकों के बाद अब लैब तकनीशियनों की नौकरी खतरे में, पटना हाईकोर्ट ने दिया बड़ा फैसला

पटना हाईकोर्ट ने 2005 से अनुबंध पर काम कर रहे लैब तकनीशियन के बारे में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है. कोर्ट ने कहा है कि बिहार के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में 2014 में बने नए कैडर नियम के बाद वे अपने पदों पर बने नहीं रह सकते हैं .

पटना हाइकोर्ट ने राज्य में प्राथमिक कक्षाओं ( कक्षा एक से पांच तक) में नियुक्त 22 हजार बीएड डिग्रीधारी शिक्षकों को बुधवार को बड़ा झटका देने के बाद गुरुवार को राज्य में कार्य कर रहे लैब तकनीशियनों को बड़ा झटका दिया है. हाइकोर्ट ने 2005 से अनुबंध पर काम कर रहे लैब तकनीशियन के बारे में एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि बिहार के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में 2014 में बने नए कैडर नियम के बाद लैब तकनीशियन महज अनुभव के आधार पर अपने पदों पर बने नहीं रह सकते हैं . चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस राजीव रॉय की खंडपीठ ने इस मामले को लेकर दायर कई याचिकायों पर सुनवाई पर एक साथ सुनवाई की थी . कोर्ट में सुनवाई के बाद इस मामले में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था.

प्रयोगशाला तकनीशियन में डिप्लोमा की वांछित योग्यता जरूरी

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि 2005 से अनुबंध पर कार्य कर रहे लैब तकनीशियनों का कार्य अनुभव उन्हें कोई पात्रता प्रदान नहीं कर सकता है . यदि उनके पास बिहार सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान द्वारा प्रस्तावित प्रयोगशाला तकनीशियन में डिप्लोमा की वांछित योग्यता नहीं है तो वे अपने पद पर बने नही रह सकते है. कोर्ट ने बिहार कर्मचारी चयन आयोग द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए यह निर्णय सुनाया. कोर्ट के इस फैसले के बाद बिहार सरकार के सरकारी अस्पतालों में कार्यरत लैब तकनीशियनों की नौकरी पर खतरा आ गया है.

प्राथमिक कक्षाओं में बीएड डिग्रीधारी शिक्षक के रूप में नियुक्त नहीं होंगे

वहीं इससे पहले बुधवार को राज्य में प्राथमिक कक्षाओं ( कक्षा एक से पांच तक) में बीएड डिग्रीधारी शिक्षकों को लेकर पटना हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आलोक में एक निर्णय दिया था. जिसके तहत अब राज्य के प्राइमरी स्कूलों में बीएड डिग्रीधारी शिक्षक के रूप में नियुक्त नहीं होंगे. कोर्ट ने कहा था कि प्राथमिक कक्षाओं में डीएलएड डिग्रीधारी शिक्षकों की ही नियुक्ति की जायेगी. न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायाधीश राजीव राय की खंडपीठ ने ललन कुमार व अन्य द्वारा बड़ी संख्या में दायर की गयी रिट याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया था. हाइकोर्ट के इस आदेश से बड़ी संख्या (लगभग 22 हजार शिक्षकों) की नौकरियां प्रभावित हो सकती है, जिनकी नियुक्ति इस मामले की सुनवाई के दौरान हुई है.

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एनसीटीइ द्वारा जारी अधिसूचना को दी गई थी चुनौती

बीएड डिग्रीधारी शिक्षकों को लेकर कोर्ट में 28 जून 2018 को एनसीटीइ द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती दी गयी थी. जिसमें प्राथमिक कक्षाओं में बीएड डिग्रीधारक शिक्षकों को भी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों के लिए योग्य माना गया था. इसी अधिसूचना को देवेश शर्मा बनाम केंद्र सरकार व अन्य के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिसूचना को रद्द कर दिया था.

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प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाने के लिए डीएलएड डिग्रीधारक शिक्षकों की ही नियुक्ति

कोर्ट को बताया गया था कि एनसीटीइ द्वारा 28 जून 2018 को जो अधिसूचना जारी की गयी है, उसमें बीएड डिग्रीधारक शिक्षकों को भी प्राथमिक कक्षाओं में नियुक्ति के लिए योग्य कहा गया था. उसमें कहा गया था कि प्राथमिक स्कूलों में अगर बीएड का कोर्स किया कोई उम्मीदवार शिक्षक के पद पर नियुक्त होना चाहता है तो उसे प्राथमिक शिक्षा में दो वर्षो के भीतर छह माह का एक ब्रिज कोर्स करना जरूरी है. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने सर्वेश शर्मा बनाम केंद्र सरकार व अन्य के मामले में एनसीटीइ के उस अधिसूचना को रद्द कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाने के लिए डीएलएड डिग्रीधारक शिक्षकों को ही नियुक्त किया जायेगा.

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