पुनीत साव (लेखक) : पूस महीना के दिन रहइ. कलुवा आपन मिता जोरें पुसालो करेल गेल हलक. बड़ी बेस जघो नदी धाइर! एगो बोड़ करिया पथलेक चटाइन. रांधे-बांटेक बेस उसास आर चुल्हो बनावेक! ओहे नदिक धाइरें एगो बोड़ आंब के गाछ रहे जेकरा लोकें ‘अंबा झरना’ कहो हइथ. एगदम सुंदर जघो पायकें दुइयो मिता बड़ी खुस हलइथ. आरो संगी-साथी गांवेंक गेल हलइथ से लेल बड़ी हुइल-चुइल लागइत रहे. आपन-आपन घार से रांधे-बांटेक लेल साब खंडा-भंडा लइकुन गेल रहइथ. हियां तकिल कि सुखल कठियो आर कुछ-कुछ झुरी-झांटियो! कलुवा सोचलक कि आर कुछो काठी-झुरी घटत ताब देखल जीतइ! तखन बड़का अंबा के गछा हे ने!ओकरे से कुछ सुखल काठी तोइर लेबइ आर आपन-आपन काम रांधे-बांटेक चलाइ लेबइ! आर भेलइ फेर ओहे बात! भात, दाइल, तियन, पुड़ी, सिकार बनावेक हलइ. मकिन तियन-तरकारी बनेक थाक कि काठी-झुरी सिराय गेलइ! सिकार बनेक बाकिये हे? कलुवा सोचलइ-करल की जाय? आपन टोला-टाटी ओलइन के काठी-झुरी मांगीयइ की? आर नेतो अंबा गछा से तोइर के आनियइ की? गांवेक दोसर छोंड सब डीजे लेले गेल हलइथ आर खोरठा गाना बजवो हलइथ आर नाचो हलइथ.
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कलुवा कहलकइ -“अरे हमर मितवा कलुवा के गावल भोजपुरी गनवां लगा ने रे?”
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दोसरकइन छोंडइन कहलथिन-“तोरा झारखंडें रहेक हो ने नांय रे?” खइबे झारखंड के आर गइबे दोसर के? ई हियां नांय चलतो! माने तोहनी की कहेल खोजो हीं हमरा? साफ-साफ बोल ने?
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एहे कहे खोजो हियो कि-“बाहरी भासा हियां नांय चलतो आर बाहरियइन के दाइल नांय गलतो!”
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ठीक हो त हियेंक खोरठा गीत बजा ओकरे में नाचबो. खोरठा गीत बाजे लागलो-“करमा के परब भारी जीबो हाम नइहरा!”
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कलुवा कहलकइ -“हां रे पुसालो करेल आल हें ताब करम परबेक गाना काहे बजवो हें?” दोसरकइन छोंडवइन कहलथिन-ताब कोन गाना बजेइयो? आब तोहें बता? साभेक राजी-खुसी से गाना बाजे लागलो-“पढ़बउ- लिखबउ हामें आर आगू बढ़बउ गे, मइया एको दिन नांय इस्कुल आब नागा करबउ गे.”
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एगो गानाम नाचल के बादें कलुवा आंब के काठी तोरलक आर आपन मिता जुगूर लेले गेल. ओकर मिता गोसाय के भूत भे गेलइ!
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आपन मिता के कहलकइ -“तोंय अखने गेल हलें झुरी-काठी लियेल? अतना देरील खलि नाइच कें बितइलें?” हामें हंकाय रहल हियो तो सुनोहो नांय पारें डीजे के साडा से! आब तोहें बनावा मिता सिकरवा. कलुवा सिकार बनवे लागल. बनल के बादें बूढ़ी मामाक चढ़ा-सोढ़ा करलक. आर तकर बादें खाय-पीय कें घार चलेक बिचार करे लागलइथ.
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कलुवा के मिता कहलकइ -“आब फेर पुसालो अइबो आगू बछर बूढ़ी मामा? मकिन अंबा मंजरल हो से अंबा खाइल जरुज अइबो.” कुछ भात, दाइल, तियन, पुड़ी, सिकार बचल-खुचल हलइ से घार लेले अइला. घारोम खइला आर दुइयो मिता आपन-आपन घर सुतला. अंबा झरनाक आंब गाछें आंब लदइर गेल हलक. जे-जे झन होंदे जा हला खा हला. कलुवा आर ओकर मिता जब सुनला कि आंब फोइर के लदइर गेल हे आर पाइक भी रहल हे.
दुइयो मिता दुपहरिया में गेला आर टेमहना से झाइर-माइर खइला. मकिन कुछ पाकल आंब फिचंगवा में हलइ! हुंवा ले टेलहा, लबेदा आर पथल फिचंगवा ले नांय लबदे पारो हलइथ! से लेल ओकरां छोइड़ देलइथ आर दोसर दिन ओकरां खाय लेल जाय खोजला जे टिपका से टिपइक के गिइर जितइ. दुइयो मिता बिहान अंधरे पराते गेला मकिन अंबा पहिले गिइर गेल हलइ. कलुवा आपन मिताक कहलकइ -“ऐं मिता ओहे लेल बुढ़-बुजुर्ग कहो हथिन-“पाकल आंब आर पाकल लोक के कोनो बिसवास नांय”!
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