कौन कहऽ हे की
आदमी सभ्य हे,
लिखल पढल आऊ
संस्कार से भरल हे?
हमरा तो संदेह हे।
आऊ संदेह होवत भी काहे नञ,
आज के ई वैज्ञानिक जुग में,
भौतिकता के अंतिम पायदान पर
खड़ा हे ई आदमी।
फिर भी एकरा में नञ
संवेदना हे, नञ दया,
आऊ न तो , बुधिये हे!
इ भूलते जा रहल ,
अपन पुरखन के देल ज्ञान
के खजाना, मान सम्मान
आऊ स्वाभिमान।
सिरिफ रह गेल एक्के चीज,
छदम अभिमान।
आज ई आदमी जानवर से भी
बत्तर भे गेल ,
कभी तू सुनलऽ हे की जानवर
केकरो बलात्कार कइलक हे?
ओकरो पर सामूहिक बलात्कार!
जब तक ऊ मादा के मन टटोल नञ ले हे,
ओकर सहमति नञ मिल जा हे,
कोय कीमत पर सहवास नञ कर सकऽ हे ।
ई चीज सिरिफ आदमीये में पावल जा हे –
हिंसक, कुटिल आऊ पतित विचार!
अब फिन से हम लौटल जा रहलूँ हऽ
हजारों साल पहिले वाला जुग में
जहां सिरिफ हल आदिम लोग,
बेभिचारी आऊ आदमख़ोर।
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समय के जे नञ आदर करतै
ऊ जिनगी में की बन पैतै।
जेकरा में नञ सौरज-धीरज
भव बाधा से की लड़तै!
ई पीढ़ी के देख के हम्मर
हिरदा हरदम हहरऽ हे।
ऊंच-नीच के ज्ञान नञ तनिको
केकरो नञ कुछ समझऽ हे।
बाप माय के जब अड़सारे, भइया चाचा की बुझतै?
जेकरा में नञ सौरज धीरज ……कैसे लड़ते
पढ़े-लिखे से तनिक नञ रिश्ता
हाथ मोबाइल रहे सदा।
दारू-मुर्गा, बर्गर-पिज्जा,
घर के भोजन जदा-कदा।
रात दिन बाइक पर घूमे, जीवन में ऊ की करते?
जेकरा में……
केतना दिन अच्छा हल पहिले
हर घर संध्या मानस-वाचन।
गर्भे से बच्चा संस्कारित,
दिव्य ओकर हल लालन-पालन
रिसि, ज्ञानी के राह छोड़ के, शरणागत की हो पैतै?
जेकरा में…..
जे जीवन में तप नञ कइलक
कभी नञ जीवन निष्कंटक
लूट-खसोट, दोसर के हिस्सा,
निगले में नञ तनिक झिझक
चित्रगुप्त के खाता सच्चा, ओकरो की झूठलैतै?
जेकरा में नञ…..।
संपर्क : पीजीटी अंग्रेजी, डीएवी पब्लिक स्कूल, कैंट एरिया, गया, बिहार
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