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सेना के लिए सोनपुर मेले से हाथी मंगवाते थे चंद्रगुप्त मौर्य, अरब-ईरान से लाए जाते थे बेहद खास नस्ल के घोड़े

बिहार का सोनपुर मेला अब एकतरह से मेला नहीं बल्कि बाजार में तब्दील हो गया है. यहां अब हाथियों की बिक्री पर प्रतिबंध है. वहीं घोड़ों के बाजार में भी अब पहले वाली बात नहीं दिखती. जानिए पहले कैसा होता था सोनपुर मेला और क्या थी अहमियत..

Sonpur Mela 2023: बिहार का सोनपुर मेला बेहद प्रसिद्ध है. यह मेला पशु व्यापार के लिए कभी काफी खास रहा. लेकिन अब सोनपुर मेला एकतरह से सोनपुर बाजार बनकर ही रह चुका है. रौनक तो इस मेले में आज भी रहती है लेकिन अब वो पुरानी बात इस मेले में नहीं दिखती. समय के साथ-साथ मेला का स्वरूप भी बदलता चला गया. बात पशु बाजार की करें तो अब घोड़े, कुत्ते, गाय और बकरे की खरीद यहां देखी जाती है. कभी इस मेले में हाथी लेकर भी व्यापारी पहुंचते थे. चंद्रगुप्त मौर्य की सेना में हजारों हाथी शामिल थे. कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य की सेना के लिए सोनपुर मेले से हाथी भेजे जाते थे. वहीं घोड़ों की बात करें तो अरब-ईरान से भी उन्नत नस्ल वाले घोड़े लेकर कारोबारी यहां कभी पहुंचते थे और खरीद-बिक्री करते थे. लेकिन अब हाथी का बाजार बंद कर दिया गया है. जबकि घोड़ों का बाजार पहले की तरह नहीं रहा.

चंद्रगुप्त मौर्य की सेना के लिए साेनपुर मेले से भेजे जाते थे हाथी

सोनपुर मेले में अब हाथियों की बिक्री नहीं होती. कई साल पहले इसपर रोक लगा दी गयी. इस मेले में हाथियों का भी कभी बड़ा बाजार सजता था. कई राजा-रजवाड़े यहां से हाथियों को खरीदते थे और अपनी सेना में शामिल करते थे. प्रमाण के तौर पर साक्ष्य आज भी बताते हैं कि चंद्रगुप्त मौर्य के समय यहां हाथियों का बड़ा बाजार सजता था. चंद्रगुप्त की सेना के काफिले में 6000 हाथी थे और सोनपुर मेले से ही सेना के लिए हाथियों को मंगवाया जाता था.

अब सुस्त पड़ गया पशु बाजार

सोनपुर के लेखक उदय प्रताप सिंह बताते हैं कि सोनपुर का व्यापारिक रूट कभी सीधे अफगानिस्तान से जुड़ा था. अंग्रेजों के समय तक अरब, ईरान से भी काफी उन्नत नस्ल के घोड़े यहां खरीद बिक्री के लिए लाये जाते थे. बता दें कि बाजार अब काफी बदल गया है. इस बार 25 नवंबर से मेले की शुरुआत हुई. शुरुआत में तो पशु मेला जोरों पर दिखा. राजस्थानी, पंजाबी, सिंधी और देशी नस्ल के घोड़ों की बिक्री के लिए करीब 100 से अधिक कारोबारी सोनपुर मेले में पहुंचे. लेकिन ग्राहकों की कमी और बेमौसम बारिश के कारण अधिकतर कारोबारी लौट गए. आगरा से आए पशु व्यापारी रमेश चंद्र बताते हैं कि वो पांच घोड़े लेकर आए लेकिन एक भी नहीं बिका. मथुरा के बेचू 20 साल से मेले में घोड़ा लेकर आ रहे हैं. इससे पहले उनके पिता आते थे. कुंडा के इरफान इसबार 15 घोड़ा लेकर आए जिसमें तीन की बिक्री हुई.उनके दादाजी और पिता भी घोड़े लेकर यहां आते थे. बता दें कि रविवार तक 34 घोड़ों की बिक्री सोनपुर मेले में हो चुकी थी.

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घोड़ों की बिक्री अब पहले की तरह नहीं होती

बता दें कि सोनपुर मेले में इसबार 2500 से भी अधिक छोटी-बड़ी दुकानें लगायी गयी हैं. विकेंड पर मेले में भीड़ उमड़ रही है. करोड़ों की बिक्री शनिवार और रविवार को होती है. कारोबार की बात करें तो पिछले गुरुवार तक घोड़े का बाजार 8 लाख रुपए तक गया था. बकरी व कुत्ते का बाजार 6 लाख तक जबकि श्रृंगार व खिलौने का बाजार एक करोड़ रुपए तक पहुंच गया. ट्रैक्टर की बिक्री भी खूब हुई और 2.5 करोड़ तक कारोबार पहुंचा. कृषि यंत्र की खरीद भी 1.5 करोड़ से अधिक की हुई.

आकर्षण का केंद्र बने मंत्री के घोड़े

बता दें कि इस बार सोनपुर मेले में सारण के प्रभारी मंत्री सुमित कुमार सिंह के तीन घोड़े भी मौजूद हैं. इस घोड़ों को बेचने के लिए नहीं बल्कि सिर्फ मेले में प्रदर्शनी के लिए लाया गया है. नाटे कद का घोड़ा भी यहां आकर्षण का केंद्र बना हुई है. इसे भी केवल प्रदर्शनी के लिए लाया गया है. वहीं सोनपुर मेले को देखने के लिए आज भी विदेशियों की भी उपस्थिति देखी जाती है. हजारों की संख्या में रोज बिहार व अन्य राज्यों से भी लोग पहुंच रहे हैं.

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