Nithin Kamath on Deepfake: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डीपफेक के नकारात्मक प्रभाव को लेकर लगातार चर्चाओं का दौर जारी है. हाल में इसका गलत इस्तेमाल किया गया, जिससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा. हालांकि, समय के साथ इसके कारण होने वाली परेशानी और भी गंभीर होने वाली है. पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि डीपफेक देश के सामने मौजूद सबसे बड़े खतरों में से एक है. इससे अराजकता पैदा हो सकती है. उन्होंने मीडिया से अपील की है कि डीपफेक को लेकर लोगों को जागरूक किया जाये. अब जीरोधा के सह-संस्थापक और सीईओ नितिन कामथ ने एक वीडियो जारी करके, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डीपफेक से बैंकिंग और फाइनेंस सेक्टर को आगाह किया है. वीडियो में, उन्होंने कहा कि ऑनलाइन केवाईसी और कई चीजें काफी आसान हो गयी है. मगर, एआई और डीपफेक ने ऑनलाइन ऑनबोर्डिंग को मुश्किल बना दिया है. उन्होंने कहा कि आधार कार्ड के कारण ऑनबोर्डिंग की प्रक्रिया पूरी तरह से डिजिटल हुई. उन्होंने इस वित्तिय सुधार को देश के फाइनेंशियल सर्विसेज बिजनेस के लिए टिपिंग पॉइंट बताया. लेकिन अब, बिजनेस के लिए नए ग्राहकों को जोड़ते समय परेशानी ये सामने आ रही है कि व्यक्ति और उसके कागजात सही हैं या नहीं.
अभी कैसे होता है वेरिफिकेशन
वर्तमान में बैंक या फाइनेंस कंपनियों के द्वारा ऑनलाइन वेरिफिकेशन के लिए डिजिलॉकर या आधार कार्ड का इस्तेमाल किया जाता है. इसके बाद, वेबकैम से खाता खुलवा रहे व्यक्ति के चेहरे को उसके पहचान पत्र से मैच किया जाता है. हालांकि, व्यक्ति की स्थिति और उसकी प्रमाणिकता सुनिश्चित करने के कुछ अन्य तरीके भी हैं. इसमें बैंक या फाइनेंसियल सर्विस कंपनी का प्रतिनीधि ग्राहक के पास खुद जाता है. अपने मैसेज में नितिन कामथ ने डर जताया है कि दिनों दिन डीपफेक बेहतर होता जा रहा है. ऐसे में ये जांच करना मुश्किल हो जाएगा कि खाता खुलवा रहा व्यक्ति एआई जेनरेटेड है या फिर असली है. अपने मैसेज में उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में इन चुनौतियों से कैसे निपटना है, ये देखना दिलचस्प है. हालांकि, अगर एआई और डीपफेक की चुनौतियों से निपटने के लिए फिर से ऑफलाइन मोड को बढ़ावा दिया जाता है तो इससे संबंधित सेक्टरों के ग्रोथ पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है.
क्या है डीपफेक
किसी रीयल वीडियो में दूसरे के चेहरे को फिट कर देने को डीपफेक नाम दिया गया है. डीपफेक से वीडियो और फोटो को बनाया जाता है. इसमें मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया जाता है. कोडर और डिकोडर टेक्नोलॉजी की मदद ली जाती है. डिकोडर सबसे पहले किसी इंसान के चेहरे को हावभाव और बनावट की गहन जांच करता है. इसके बाद किसी फर्जी फेस पर इसे लगाया जाता है, जिससे हुबहू फर्जी वीडियो और फोटो को बनाया जा सकता है. हालांकि आम लोग डीपफेक वीडियो नहीं बना सकते हैं. लेकिन इन दिनों डीपफेक बनाने से जुड़े ऐप मौजूद हैं, जिनकी मदद से आसानी से डीफफेक वीडियो बनाये जा सकते हैं.
कैसे कर सकते हैं पहचान
सोशल मीडिया पर डीपफेक वीडियो को पहचान स्वयं भी किया जा सकता है. एक्सपर्ट के अनुसार इसके लिए वीडियो पर दिखने वाले शख्स के चेहरे के एक्सप्रेशन, आंखों की बनावट और बॉडी स्टाइल पर ध्यान से देखना होगा. ऐसे वीडियो में बॉडी और चेहरे का कलर मैच नहीं करता, जिससे इसे पहचान सकते हैं. साथ ही लिप सिंकिंग से भी डीपफेक वीडियो को आसानी से पहचाना जा सकता है. इसके अलावा डीपफेक वीडियो और फोटो को पहचानने में दिक्कत आ रही है, तो एआइ टूल का सहारा ले सकते हैं. कई एआइ टूल हैं, जो आसानी से एआइ जेनरेटेड वीडियो की पहचान कर सकते हैं.
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