आजादी के 75वें साल में पहली बार खरसावां गोलीकांड पर राष्ट्रीय विमर्श हुआ है. आजाद भारत में हुए पहले और सबसे भीषण गोलीकांड पर झारखंड की राजधानी रांची के ऐतिहासिक ऑड्रे हाउस में विशेष चर्चा हुई. डॉ राममनोहर लोहिया रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली और रांची विश्विद्यालय के इतिहास विभाग के संयुक्त आयोजन ‘खरसावां स्मरण’ में 1 जनवरी 1948 को निहत्थे आदिवासियों को गोलियों से भूने जाने की घटना को आजाद भारत का ‘जलियांवाला बाग’ गोलीकांड की संज्ञा दी जाती है. लेकिन, आजाद भारत में किसी राजनीतिक पार्टी ने खरसावां गोलीकांड पर कोई चर्चा नहीं की. शनिवार को ऑड्रे हाउस में दो दिवसीय ‘खरसावां स्मरण 2023’ के पहले दिन पहले परिचर्चा सत्र में चाईबासा के डॉ सीके पती, रांची विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की प्रमुख डॉ सुजाता सिंह, प्रभात खबर के कार्यकारी संपादक अनुज कुमार सिन्हा और खरसावां राजपरिवार के वारिश गोपाल नारायण सिंहदेव ने अपने विचार रखे. कार्यक्रम का संचालन रांची विश्वविद्यालय के सोशल साइंस डिपार्टमेंट के पूर्व डीन प्रो आईके चौधरी ने किया. इस दौरान पैनलिस्टों ने बताया कि आजादी के छह महीने के भीतर खरसावां में गोलीकांड की परिस्थितियां क्यों बनीं? वहां का माहौल कैसा था. पैनल में शामिल वक्ताओं ने बताया कि आजादी के बाद से झारखंड को अलग राज्य बनाने की मांग करने वाले नेताओं को खरसावां की अहमियत का पता था. उन्हें मालूम था कि अगर खरसावां ओडिशा में शामिल हो गया, तो अलग झारखंड राज्य का गठन कभी नहीं हो पाएगा. वहीं, तब की केंद्र या राज्य सरकारों और राजनीतिक पार्टियों ने इस वीभत्स कांड का कभी खुलकर विरोध नहीं किया. डॉ राम मनोहर लोहिया एकमात्र राजनेता थे, जो खरसावां गोलीकांड की खुलकर आलोचना करते थे. संसद में भी और संसद के बाहर भी. इस परिचर्चा के जरिए खरसावां गोलीकांड के सच को सामने लाने का प्रयास किया गया, ताकि इन विषयों पर शोध करने वाले लोग उस पर काम कर सकें. 1 जनवरी 1948 को खरसावां में जो घटना हुई थी, उसका सच दुनिया के भी सामने आ सके.
राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने किया ‘खरसावां स्मरण’ का उद्घाटन
‘खरसावां स्मरण’ का उद्घाटन झारखंड के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने की. राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने कहा कि खरसावां गोलीकांड आदिवासी संघर्ष के इतिहास का परिचायक है, जो अलग झारखंड राज्य के लिए संघर्ष एवं त्याग की याद दिलाता है. उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम जमीनी स्तर पर शोध को बढ़ावा देने तथा नवीन सोच विकसित करने की ओर एक उत्तम प्रयास है. वहीं, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने अध्यक्षीय संबोधन में डॉ राम मनोहर लोहिया द्वारा 1958 में मैनकाइंड पत्रिका में ‘खरसावां में रक्त स्नान’ शीर्षक से लिखे गए लेख को संदर्भित करते हुए सैद्धांतिक राजनीति की बात की, जिसमें उन्होंने जनजातीय इतिहास को निरंतर संघर्ष और सत्य पर आधारित इतिहास बताया. डॉ लोहिया ने इन घटनाक्रमों से भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक बताया. इसी संदर्भ में उन्होंने आह्वान किया कि भारत ब्रिटिश विचारधारा से मुक्त होकर गांधीवादी सामाजिक मॉडल को अपनाए.
छह पुस्तकों का हुआ विमोचन
रांची में आयोजित इस कार्यक्रम में छह पुस्तकों का विमोचन किया गया. इनमें ‘खरसावां स्मरण’ पर एक स्मारिका, ‘विधानसभा में बदरीविशाल’ का विमोचन हुआ. ‘विधानसभा में बदरीविशाल’ का संकलन टी गोपाल सिंह एवं अभिषेक रंजन सिंह ने, तो संपादन अभिषेक राजा ने किया है. डॉ राममनोहर द्वारा मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी गई पुस्तक ‘स्ट्रगल फॉर सिविल लिबर्टीज’ के उर्दू एवं ओडिया संस्करण का विमोचन किया गया. इसके अलावा संदीप मुरारका की पुस्तक ‘शिखर को छूते ट्राइबल’ और रांची विश्विद्यालय के इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ मोहित कुमार लाल की पुस्तक ‘आधुनिक संदर्भ में लोहियावादी विचारों की प्रासांगिकता’ का विमोचन भी हुआ.
Also Read: डॉ राम मनोहर लोहिया का अटूट रिश्ता झारखंड से भी था , खरसावां गोलीकांड के खिलाफ लड़ी थी लड़ाईखरसावां गोलीकांड पर शॉर्ट फिल्म की स्क्रीनिंग
कार्यक्रम में खरसावां गोलीकांड पर एक लघु फिल्म की स्क्रीनिंग हुई, जिसमें गोलीकांड से जुड़े तथ्यों और डॉ राम मनोहर लोहिया द्वारा उस घटना पर दी गई प्रतिक्रिया को प्रदर्शत किया गया. डॉ राममनोहर लोहिया रिसर्च फाउंडेशन ने घोषणा की कि पांचवां राष्ट्रीय विचार मंथन तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में होगा. झारखंड सरकार के कला एवं संस्कृति विभाग की ओर से कार्यक्रम में कलाकारों द्वारा छऊ नृत्य का भी प्रदर्शन किया गया. इस राष्ट्रीय विचार मंथन में झारखंड के प्रतिभागियों के अलावा गोवा, तेलंगाना, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, गुजरात, नई दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के प्रतिभागी शामिल हुए. कार्यक्रम में झारखंड सरकार के पूर्व मंत्री रामचंद्र केसरी, डॉ दिनेश षाड़ंगी और खरसावां राजपरिवार की राजमाता भी शामिल हुईं.