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झारखंड के कांग्रेस अध्यक्ष रहे थॉमस हांसदा के बेटे विजय हांसदा की झामुमो में एंट्री की कहानी

राजमहल लोकसभा से लगातार दो बार चुनाव जीत चुके विजय हांसदा की राजनीति बड़ी दिलचस्प है. उनके पिता थॉमस हांसदा और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन दो ध्रुव थे. लेकिन, 2014 के चुनाव में शिबू के बेटे हेमंत सोरेन और विजय हांसदा की ऐसी दोस्ती हुई कि राजमहल में झामुमो के तीर-धनुष के आगे सब फेल हो गए.

संयुक्त बिहार में कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) राजनीति के दो ध्रुव थे. संताल परगना के साहिबगंज जिले का राजमहल संसदीय क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ माना जाता था. थॉमस हांसदा यहां के सांसद और विधायक बने. झारखंड प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे. उनके बेटे विजय हांसदा ने पिता की विरासत को तो कायम रखा, लेकिन इसके लिए उन्हें अपनी राजनीतिक पहचान बदलनी पड़ी. कांग्रेस के दिग्गज नेता के इकलौते बेटे विजय को चुनावी राजनीति में कदम रखने के लिए उस झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का सहारा लेना पड़ा, जिसके खिलाफ उनके पिता उनके पिता धुर विरोधी थे. राजनीति के जानकार बताते हैं कि शेर-ए-संताल के नाम से मशहूर थॉमस हांसदा और दिशोम गुरु शिबू सोरेन दो ध्रुव थे. आज इन दोनों नेताओं के वारिश (बेटे) बहुत अच्छे दोस्त बन गए हैं. दोनों पार्टियां एक-दूसरे के साथ मिलकर सरकार चला रहीं हैं. वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव जीतने वाले विजय हांसदा जब वर्ष 2019 में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, तो क्षेत्र में उनका जमकर विरोध हुआ. इस विरोध से पार पाकर कैसे विजय हांसदा लगातार दूसरी बार चुनाव जीते, उस पर चर्चा बाद में, अभी आपको बताते हैं कि वह झामुमो का हिस्सा कैसे बने. कैसे संताल परगना के दो ध्रुव आज एक-दूसरे के साथ हैं.

…डेढ़ महीने काटते रहे कांग्रेस कार्यालय के चक्कर

दरअसल, वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले विजय हांसदा ने 40-45 दिनों तक दिल्ली में कांग्रेस कार्यालय के चक्कर काटे. लेकिन, युवा कांग्रेस के अपने ही नेता को कांग्रेस पार्टी झारखंड की राजनीति में कोई बड़ी जिम्मेदारी देने के लिए तैयार नहीं थी. ऐसे में साहिबगंज के तत्कालीन झामुमो जिला अध्यक्ष एमटी राजा (मोहम्मद ताजुद्दीन राजा) से उनका संपर्क हुआ. एमटी राजा और झामुमो के तत्कालीन जिला सचिव पंकज मिश्रा ने मिलकर विजय हांसदा के लिए झामुमो में एंट्री की पृष्ठभूमि तैयार की. बाद में विजय हांसदा ने झामुमो का झंडा थाम लिया.

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मोदी लहर में भी बरकरार रहा विजय हांसदा का जलवा

वर्ष 2014 में कांग्रेस के साथ गठबंधन में झामुमो चुनाव लड़ी और विजय हांसदा यहां से पहली बार सांसद चुने गए. यह वह दौर था, जब देश में तत्कालीन कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार के खिलाफ जोरदार आंदोलन चल रहा था. लोकपाल के मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी की किरकिरी हो रही थी. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित हो चुके थे. भाजपा के पीएम उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही थी. उनकी बातों को जनता बड़े ध्यान से सुनने लगी थी. देखते ही देखते देश में मोदी की लहर चल पड़ी. इस मोदी लहर में राजनीति के बड़े-बड़े सूरमा चुनाव हार गए. लेकिन, विजय हांसदा ने यहां भाजपा के उम्मीदवार हेमलाल मुर्मू को पराजित कर दिया. वर्ष 2019 में भी उन्होंने हेमलाल मुर्मू जैसे दिग्गज नेता को पराजित किया. अब हेमलाल मुर्मू भाजपा छोड़कर एक बार फिर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) में शामिल हो चुके हैं.

2019 में विजय हांसदा को करना पड़ा परेशानियों का सामना

वर्ष 2014 में महज 31 साल की उम्र में राजमहल का सांसद बनने वाले विजय हांसदा को वर्ष 2019 में चुनाव से पहले काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. लेकिन, राजनीतिक सूझ-बूझ का परिचय देते हुए विजय हांसदा ने नाराज लोगों को मनाया और एक बार फिर पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़े. आखिरकार वह पिछले चुनाव की तुलना में ज्यादा वोटों के अंतर से जीते. एक बार फिर उनकी मदद पंकज मिश्रा ने की. पंकज की वजह से ही वह एमटी राजा को मनाने में कामयाब रहे. राजमहल सीट कभी कांग्रेस का गढ़ था. अब कांग्रेस का कोई उम्मीदवार नहीं जीतता. लोकसभा के चुनाव में मुकाबला झामुमो और भाजपा के बीच ही होता है.

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2009 में त्रिकोणीय मुकाबले में जीते थे देवीधन बेसरा

बता दें कि राजमहल लोकसभा लोकसभा सीट पर किसी भी पार्टी की जीत-हार में जातीय समीकरण की बड़ी भूमिका होती है. राजमहल संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभा आते हैं. चार विधानसभा आदिवासी बहुल हैं, तो दो विधानसभा क्षेत्र में अल्पसंख्यक वोटर ज्यादा हैं. संताली आदिवासी और अल्पसंख्यक मतदाताओं के दम पर लगातार दो बार से विजय हांसदा विधायक बन रहे हैं. वह सीधे मुकाबले में जीत रहे हैं. वर्ष 2009 में भाजपा के देवीधन बेसरा ने यहां से जीत दर्ज की थी, तब विजय के पिता थॉमस हांसदा को कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया था. वह लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता पार्टी (राजद) के टिकट पर चुनाव लड़ गए थे. इसलिए यहां भाजपा के देवीधन बेसरा जीत पाए थे.

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