चक्रधरपुर के पोटका स्थित होली सेवियर चर्च ने काफी उतार-चढ़ाव भरे दिन देखे हैं. क्षेत्र में लाल गिरजाघर के नाम से ख्यात इस चर्च की आधारशिला 25 मई 1894 में रखी गयी. साहब के नाम से मशहूर चाईबासा के पादरी आर्थर लोग्सडेन माह में एक बार यूरोपियन व एंग्लो रेलवे पदाधिकारियों के लिए चक्रधरपुर प्रार्थना करने आते थे. गिरजाघर के अभाव में कभी रेलवे स्टेशन मास्टर के कार्यालय, कभी प्रतीक्षालय, तो कभी पोटका डाक बंगले में प्रार्थना की जाती थी. इन परेशानियों से निजात पाने के लिए लोग्सडेल साहब ने जमीन खरीदी और 1894 में गिरजाघर की नींव रखी. लोग्सडेल साहब के अथक परिश्रम से मई 1894 में लाल गिरिजाघर को मूर्तरूप मिला. 20 सितंबर 1896 को मसीही समाज की प्रार्थना के लिए चर्च का द्वार खोल दिया गया.
1900 में चाईबासा के 18 लोगों को दिलायी गयी बपतिस्मा
लोग्सडेल साहब खुद माह में एक बार गिरजाघर आते थे. कालांतर में मनोहरपुर, मुरहू और आद्रा से कोई न कोई पादरी आने लगे. शुरूआती दौर में गिरजाघर में पादरी व प्रचारक के अभाव के कारण स्थानीय ग्रामीण क्षेत्रों में धर्म के प्रचार-प्रसार पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा सका. मिशनरियों के अभाव में भी 1900 में पहली बार चक्रधरपुर तथा गोइलकेरा के 18 लोगों को बड़े दिन के मौके पर चाईबासा के गिरजाघर में पादरी लोग्सडेल ने बपतिस्मा दिलायी. पादरी डीपी मिश्रा ने 1960 से गिरजाघर में स्थायी रूप से योगदान दिया
मिस गोप ने रखी लोअर प्राइमरी स्कूल की नींव
मंडली की देखभाल के लिए सर्वप्रथम 1922 में मिस गोप आईं. शिक्षा प्रेमी होने के नाते मिस गोप ने एक लोअर प्राइमरी स्कूल की नींव रखी, जो 1944 में अपर प्राइमरी और 1970 में माध्यमिक स्कूल में तब्दील हो गया. अंतिम डिकनेस हेलेन स्कोफील्ड 1937 से 1950 तक चर्च की सेवा की. इनके सेवाकाल में ही 1938 में सर्वप्रथम प्रचारक जान लुगून की नियुक्ति हुई. हेलेन स्कोफील्ड के समय में ही माता समाज स्थापित की गयी. हेलेन के जाने के बाद समाज का अंत हो गया. चर्च में संडे स्कूल की शुरूआत फरवरी 1937 से हुई.
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