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संताल परगना में प्राकृतिक संपदा का दोहन बन रहा अभिशाप

दुर्लभ या महत्वपूर्ण पौधों का नष्ट हो जाना-जैव विविधयों को क्षति पहुंचती है. जंगलों, पहाड़ों के नष्ट होने से जीवों के अस्तित्व पर संकट आ गया है. अगर पहाड़ नहीं रहेंगे तो पहाड़ों की हरियाली विलुप्त हो जायेगी. पशु-पक्षियों, जीवों की आश्रयस्थली नष्ट होती जा रही है.

केके महावर,साहिबगंज : झारखंड प्रदेश का एक प्रमंडल संताल परगना है. इस क्षेत्र का प्राचीन काल में भी प्रमाण है. अथर्व वेद, मत्स्य पुराण, वायु पुराण, रामायण, महाभारत आदि में इस क्षेत्र का विवरण प्राप्त होता है. जॉन मार्शल, ह्वेनसांग ने राजमहल, जिला साहिबगंज, प्रमंडल संताल परगना का उल्लेख किया है. कनिंहाम के अनुसार राजमहल का क्षेत्र पहले कांकजोल कहा जाता था. संपूर्ण संताल परगना पहाड़ी क्षेत्र से घिरा हुआ है. यह क्षेत्र राजमहल की पहाड़ियां के नाम से विख्यात है. राजमहल के पहाड़ों में खनिज संपदा भरपूर रही है. पूर्व में संताल परगना में हरियाली ही हरियाली दिखायी पड़ती थी. यह क्षेत्र “दमिन-ए कोह” के नाम से भी जाना जाता रहा है. राजमहल के पहाड़ों में उच्चकोटि का काला पत्थर मौजूद है. ये पत्थर भवन निर्माण, सड़क निर्माण तथा ब्रिज बनाने के काम में एवं रेलवे की पटरियों पर लगने के काम में आता है. फलस्वरूप उद्योगपति एवं व्यापारी इस काले पत्थर को काला सोना के रूप में देखते हैं और पहाड़ों की कंदराओं की छाती को चीरकर काले पत्थरों का दोहन करते है. इस क्षेत्र के पहाड़ों में अंधाधुन खनन होने से संताल परगना में पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर व्यापक प्रभाव पड़ा है. काले पत्थरों के साथ ही चाइना क्ले का दोहन भी तेजी से हो रहा है. प्राकृतिक संपदा से पर्यावरण को लेकर मन में कई प्रश्न उठते हैं. क्या पहाड़ों को हमने बनाया, क्या बादलों का हमने निर्माण किया है, क्या आकाश का निर्माण मनुष्य ने किया है? क्या सूर्य की गरमी व प्रकाश को हमने तैयार किया है? क्या वायु का निर्माण हमने किया? क्या पहाड़ों, झरनों, नदियों में जल हमने तैयार किये हैं. क्या पशु-पक्षियों का निर्माण हमने किया है. स्पष्ट है कि हमने कुछ नहीं किया है. किया है तो हमने सिर्फ प्रकृति का दोहन. इस सत्य को नकारा नहीं जा सकता. विकास की गति के कारण हमने प्रकृति के साथ नापाक छेड़छाड़ की है. मात्र एक या दो प्रतिशत लोग दोहन व छेड़छाड़ में लगे हैं, लेकिन नुकसान 98 प्रतिशत जनता को उठाना पड़ रहा है. संताल परगना अंतर्गत साहिबगंज, पाकुड़ जिला भी पर्यावरणीय समस्या से व्यापक रूप से ग्रस्त है. इस क्षेत्र में सैकड़ों क्रशर उद्योग थे. सरकार / प्रशासन की कड़ाई के बावजूद आधा से अधिक क्रशर तो चल ही रहे हैं. प्राचीन राजमहल की पहाड़ी का व्यापक रूप से उत्खनन करके पत्थर निकाला जाता है. स्टोन क्रशर इसे टुकडों में तब्दील करते हैं. उत्खनन एवं क्रशर पत्थर से पर्यावरण को कितनी क्षति पहुंचाते है. इसका अंदाजा भी नहीं है. इसका खामियाजा हमें ही भुगतना पड़ रहा है और बाद की पीढ़ियों को भी भुगतना पड़ेगा. प्रकृति द्वारा प्रदत्त विभिन्न उपायों में संतुलन बनाये रखने से पर्यावरण शुद्ध बना रह सकता है, जो उसके विकास और प्रगति में सहायक सिद्ध हो सकता है.

संथाल भूकंप जोन में स्थित है

पहाड़ों से पत्थर खनन करके हम प्रकृति के साथ क्रूर मजाक कर रहे हैं. वैसे भी झारखंड का यह क्षेत्र भूकंप जोन में है. प्राकृतिक संपदा के दोहन व उत्खनन से वन्यजीवों, जंतु और प्रजनन को बाधा पहुंचता है. दुर्लभ या महत्वपूर्ण पौधों का नष्ट हो जाना-जैव विविधयों को क्षति पहुंचती है. जंगलों, पहाड़ों के नष्ट होने से जीवों के अस्तित्व पर संकट आ गया है. अगर पहाड़ नहीं रहेंगे तो पहाड़ों की हरियाली विलुप्त हो जायेगी. पशु-पक्षियों, जीवों की आश्रयस्थली नष्ट होती जा रही है, जो पर्यावरण के लिए भी एक गंभीर बात है. विकासवादी विचारधारा के लोग अपनी बातें रखकर सबकी आंखे खोल दी है. प्राकृतिक संपदा दोहन कारण पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों सहित, कई प्रकार के जीवों के विलोपन के कारण बन सकते हैं. जैसा कि जीवाश्मों के अवशेषों से प्रमाणित होता है. पहाड़ों से पत्थर, चाइना क्ले तथा नदियों से बालूओं का दोहन के कारण पहाड़ों एवं वनों पर उगने वाले पेड़ों, अनाज, सवई घास आदि विलुप्त होते जा रहे हैं. प्राकृतिक संपदा के दोहन से राजमहल की पहाड़ियों पर निवास करने वाली जन जातियों पर खतरा उत्पन्न हो गया है. ये पलायन को विवश हो रहे हैं. उनकी प्रथा, आवास और उनकी संस्कृति नष्ट किया जा रहा है. पहाड़ों पर चलने वाले क्रशर उद्योग के चलते जनजाति और आदिवासियों के दैनिक कार्यकलापों, अनुष्ठानों, उत्सवों, सुखों का ह्रास हो रहा है. वायुमंडल में ब्लास्टिंग से गंधक जैसे केमिकल की मात्रा घुल जाती है. खदानों में काम कर रहे मजदूरों के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है. पर्यावरण प्रकृति का अनुशासन है. प्राकृतिक संतुलन को बनाये रखने के लिए जल, भूमि, ध्वनि, वायु को प्रदूषण से बचाये रखना अति आवश्यक है. इसके लिए राजमहल, संताल परगना के समस्त जिलों को पहाड़ों, पर्वतों, खदानों, बालू का उठाव को दोहन से बचाना होगा.

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