22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

संताल परगना में पलायन की भयावह स्थिति

पलायन की स्थिति में सुधार तब हो सकती है, जब परंपरागत जाति व्यवस्था में सुधार हो, ग्रामीण क्षेत्रों में औद्योगिक इकाईयों की स्थापना हो, शिक्षा पर जोर एवं रोजगार और मौलिक सुविधा का व्यवस्था हो. संताल परगना जैसे पिछड़ा क्षेत्र को बढ़ावा देने के तरीकों का उद्देश्य पलायन को नियंत्रण करना हो.

डॉ सुशील कुमार यादव, देवघर : पलायन या प्रवास एक सार्वभौमिक तथ्य है. दुनिया के प्रत्येक समाज में किन्हीं न किन्हीं कारणों से पलायन की प्रकृति आवश्यक रूप से देखा जा सकता है. पलायन के कारण भी अनेक हो सकते है. कभी पलायन का कारण तीर्थाटन, तो कभी उच्च शिक्षा, रोजगार, युद्ध, अकाल व महामारी जनसंख्या के बड़े पलायन का कारण बनती है. वस्तुतः गांव से शहरों की ओर पलायन का मुख्य कारण रोजगार और बेहतर जीवन की तलाश है. गांव में रोजगार खत्म होते अवसर, कृषि के क्षेत्र में आ रही गिरावट से शहरों की ओर पलायन करने पर विवश कर रही है. गैरों में बेहतर जीवन तथा वेतन, नागरिक सुविधाएं मिलने के कारण शहरों की ओर आकृष्ट हो रहें है. संताल परगना में, जो सबसे करीब कुपोषित और जिंदगी से जूझ रहा है, वह है यहां का आदिवासी और पिछड़ा समाज इस समाज के सामने कुपोषण के अलावा ह्यूमन ट्रैफिकिंग और पलायन की गंभीर समस्या है. संताल परगना की बात करें तो आजीविका के सिमटते साधन के बीच आदिवासी युवाओं को गांव से पलायन करना पड रहा है. लाखों की संख्या में आदिवासी युवक-युवतियां अपने पेट की आग बुझाने के लिए राज्य के बाहर जाने को मजबूर हैं. संताल परगना से किये जाने वाले पलायन, दूसरे जगहों में होने वाले पलायन में एक बुनियादी अंतर है, यह कि यहां के युवक-युवतियां पलायन कर अपना भूख मिटाते है. जबकि अन्य जगहों से पलायन करने वाले श्रमिक अपने लिये और परिवार के लिए संसाधन जुटाते हैं. ग्रामीणों के मुताबिक युवा काम की तलाश में बंगाल, केरल, गोवा, कर्नाटक, पंजाब समेत महानगरों की ओर रूख करते हैं.

संथाल झारखंड राज्य का अहम हिस्सा

संताल परगना, भारत के झारखंड राज्य की प्रशासनिक इकाईयों में से एक है. यह झारखंड की एक कमिश्नरी है. इसका मुख्यालय दुमका है. इस इकाई में छह जिले गोड्डा, देवघर, दुमका, जामताड़ा, साहेबगंज और पाकुड़ शामिल है. संताल परगना के लोगों का मुख्य निर्भरता कृषि पर है. संताल परगना में कृषि विभाग ने 3 लाख 64 हजार 500 हेक्टेयर धान की खेती का लक्ष्य रखा था. इसके एवज में इस बार मात्र 9 हजार 247 हेक्टेयर की बुआई हो पायी. इस तरह पूरे प्रमंडल की बात करें तो मात्र 2.5 प्रतिशत ही धान की बुआई हो पायी है. इसका मुख्य कारण बारिश का नहीं हो पाना. संताल परगना में सिंचाई की व्यवस्था न होने के कारण कृषि बारिश पर निर्भर है. सिंचाई की व्यवस्था न होने से कृषि पर आश्रित सीमांत कृषक बल अपने रोजगार की तलाश में पलायन को मजबूर है. संताल परगना के मजदूर अपने रोजी-रोटी की तलाश में अभी धान काटने के लिए बंगाल, पंजाब, यूपी जाने को मजबूर है. इस बार बारिश नहीं होने के कारण पलायन की स्थिति बड़ी भयावह है. सूखे के दौरान बाहरी दलाल सक्रिय हो जाते है, और लड़कियों और उनके परिवारों को नौकरी का वादा करके फंसा लेते हैं. एक बार जब ये लड़कियां गांव छोड़ देती है, तो उन्हें शारीरिक व मानसिक शोषण का शिकार होना पड़ता है. ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर संयुक्त राष्ट्र के एक रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे आदिवासी लोग जिनमें लुप्तप्राय पहाड़िया भी शामिल है. ट्रैफिकिंग का शिकार हो रहें हैं. घरेलू काम के लिए 10 से 16 वर्ष के लड़के एवं लड़कियों को काम दिलाने के लालच में ले जाया जाता है. इसमें बच्ची के परिजनों की सहभागिता रहती है. संताल परगना के लेवर ट्रैफिकिंग बहुत होता है. बारिश का समय बीतने के बाद देवघर हो या गोड्डा हो, दुमका हो या जामताड़ा, साहिबगंज हो या पाकुड़ सभी जिलों से मजदूरो को मेठ काम के लिए बाहर ले जाते हैं. दूसरे राज्यों में खेतों में फसलों की कटाई के लिए ले जाया जाता है. उनमें से कई लोग ईंट भट्ठों में काम करने जाते है, और उन्हें खराब कामकाजी और रहने की स्थिति का सामना करना पड़ता है.

पलायन है बड़ी समस्या

परिवार की मौसमी प्रवास के कारण अकसर स्कूल छोड़ देते हैं. ऐसे बच्चों को अकसर फैक्टरियों में काम करने के लिए अच्छा वेतन देने के लालच में ले जाया जाता है. 14 से 17 वर्ष की आयु के कई बच्चे एससी, एसटी और मुस्लिम पृष्टभूमि को काम करने के लिए टारगेट किया जाता है. उन्हें खदानों, ईंट भट्ठों और होटल में भेजा जाता है. कहा जाता है कि देश के विकास की पहली सीढ़ी गांव से होकर गुजरती है. क्योंकि गांव अगर विकास के पथ पर अग्रसर होंगे, तो देश तरक्की के मार्ग पर जरूर प्रस्तुत होगा. परंतु पलायन के कारण यह विकास की बातें बस सुनायी जाती है, जबकी धरातल में गांव के गांव खाली हो चुके हैं. प्रसिद्ध उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद जी अपने प्रसिद्ध उपन्यास गोदान में लगभग 85 वर्ष पूर्व “गांव छोड़कर शहर जाने की समस्या को उठाया था. हालात ये है कि भारत सरकार जनगणना से संबंधित आंकड़ें भी पलायन ठीक-ठीक बयां नहीं कर पाते. वर्तमान समय में यह स्थिति अत्यंत गंभीर हो चुकी है. पलायन का असर परिवार के बच्चाें की पढ़ाई पर असर पड़ता है. इन वजहों से ऐसे परिवार के बालिक सदस्य चुनाव के वक्त वोट डालने का प्रयोग नहीं कर पाते. पूर्व राष्ट्रपति एवं मिसाइलमैन डाॅ एपीजे अब्दुल कलाम कहा करते थे कि “शहरों को गांवों में ले जाकर ही ग्रामीण पलायन पर रोक लगायी जा सकती है.” पलायन की स्थिति में सुधार तब हो सकती है, जब परंपरागत जाति व्यवस्था में सुधार हो, ग्रामीण क्षेत्रों में औद्योगिक इकाईयों की स्थापना हो, शिक्षा पर जोर एवं रोजगार और मौलिक सुविधा का व्यवस्था हो. संताल परगना जैसे पिछड़ा क्षेत्र को बढ़ावा देने के तरीकों का उद्देश्य पलायन को नियंत्रण करना हो.

Also Read: देवघर : पंचकर्म चिकित्सा केंद्र में पांच माह से एक भी मरीज का नहीं हुआ इलाज

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें