दशकों के किसानों के अनथक परिश्रम और विभिन्न स्तरों पर होते निरंतर प्रयासों के कारण ही भारत अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर हो सका. लेकिन समुचित रखरखाव न होने तथा आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव में अनाज की बर्बादी भी खूब होती है. यह बर्बादी कितनी अधिक है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि हर साल कुल अनाज उत्पादन का लगभग 22 फीसदी हिस्सा यानी 74 मिलियन टन बर्बाद हो जाता है. यह बर्बादी कुल वैश्विक उत्पादन का आठ प्रतिशत है. इस नुकसान को रोकने के लिए केंद्र सरकार प्रतिबद्ध है. इस संदर्भ में 23 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 10 हजार नये पैक्स (प्राथमिक कृषि ऋण समिति) और दुग्ध उत्पादन एवं मत्स्य पालन से जुड़े सहकारी समूहों को पंजीकृत करने की प्रक्रिया चल रही है. साथ ही, गोदाम और प्रसंस्करण इकाइयां तथा अन्य सुविधाओं के बनाने का काम भी चल रहा है. हमारे जीवन के हर क्षेत्र में तकनीक का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है. अनाज बचाने की कोशिश में भी अब तकनीक का अहम योगदान होगा. देश में चल रहे 63 हजार पैक्स को कंप्यूटरीकृत किया जा रहा है. इस काम में 25 सौ करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आने का अनुमान है.
विशेष सॉफ्टवेयर के जरिये सभी चालू पैक्स राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण बैंक (नाबार्ड) से जोड़े जा रहे हैं. इस संबंध में 26 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 5,673 पैक्स में परीक्षण प्रारंभ हो चुका है. इससे इन जगहों पर जमा अनाज की मात्रा के बारे तुरंत जानकारी मिलती रहेगी. यदि कोई कमी दिखती है, तो उसका निराकरण होगा. तकनीक से पारदर्शिता भी बढ़ेगी और ऑडिट कर पाना बहुत सरल हो जायेगा. अनाज की बर्बादी का मुख्य कारण समुचित भंडारण का न होना है. इस अभाव को पाटना जरूरी है. अनाज संरक्षण के लिए केवल भारतीय खाद्य निगम के कुछ केंद्रों और छोटे-छोटे निजी गोदामों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है. बरसात के दिनों में ये खबरें आम हो चुकी हैं कि कहीं मंडी में खुले में रखा अनाज बह गया या सड़ गया या फिर आवाजाही में नुकसान हो गया. इसे रोकना बहुत जरूरी है. यदि किसान के स्थान के निकट भंडारण की सुविधा हो, तो इससे दोनों पक्षों का खर्च कम हो जायेगा. एक स्थान से दूसरे स्थान ढोने की लागत भी कम होगी. ये प्रयास ग्रामीण और कस्बाई इलाकों की अर्थव्यवस्था बेहतर करने में बड़ा योगदान दे सकते हैं तथा कृषि पर आधारित उद्यमों के लिए भी आधार तैयार होगा. यदि हम अनाज का समुचित संरक्षण कर सकें, तो यह हमारी अर्थव्यवस्था के लिए वरदान साबित होगा तथा आम लोगों को खाद्य मुद्रास्फीति से भी ठोस राहत मिलेगी.