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नीतीश कुमार के हाथ तीसरी बार आयी जदयू की कमान, पद से हटने वाले ललन सिंह जदयू के चौथे राष्ट्रीय अध्यक्ष

जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी 2003 से अप्रैल 2006 तक जॉर्ज फरनांडिस ने संभाला था. 2006 से अप्रैल 2016 तक शरद यादव और इसके बाद से अप्रैल 2016 से अप्रैल 2019 और अप्रैल 2019 से दिसंबर 2020 तक नीतीश कुमार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे.

पटना. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तीसरी बार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान शुक्रवार को संभाल ली. इससे पहले वे अप्रैल 2016 और अप्रैल 2019 में राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये गये थे. वहीं जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से हटने वाले ललन सिंह चौथे शख्स हैं.

यह रहे अब तक जदयू के अध्यक्ष

जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी 2003 से अप्रैल 2006 तक जॉर्ज फरनांडिस ने संभाला था. 2006 से अप्रैल 2016 तक शरद यादव और इसके बाद से अप्रैल 2016 से अप्रैल 2019 और अप्रैल 2019 से दिसंबर 2020 तक नीतीश कुमार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे.

20 साल पहले अक्तूबर 2003 में समता पार्टी से जदयू का लिया था आकार

30 अक्टूबर, 2003 को स्व जॉर्ज फर्नांडीस और नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली समता पार्टी का जनता दल में विलय हो गया. विलय हुए दल को जनता दल (यूनाइटेड) कहा गया, जिसमें जनता दल का तीर चिन्ह और समता पार्टी का हरा और सफेद झंडा मिलकर जनता दल (यूनाइटेड) का चुनाव चिन्ह बना.

जार्ज थे पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष

सबसे पहले जार्ज फार्नांडीस को अप्रैल 2006 में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था. पार्टी के संगठनात्मक चुनाव में वे शरद यादव के मुकाबले पराजित हो गये. उन्हें अध्यक्ष पद से हटा कर शरद यादव को जदयू का अध्यक्ष बनाया गया. शरद यादव भी दो बार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे.

जॉर्ज के साथ कैसे बिगड़े रिश्ते

2004 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की हार हो गई और जॉर्ज-शरद सिर्फ एक सांसद बनकर रह गए. हालांकि, जॉर्ज फर्नांडीस तब भी एनडीए के संयोजक बने हुए थे. 2005 में जब बिहार विधानसभा का चुनाव हो रहा था, तब भागलपुर की एक रैली में अटल ने नीतीश की खूब तारीफ की थी, लेकिन उन्हें सीएम कैंडिडेट बताने से चूक गए. इसके बाद असहज नीतीश ने अरूण जेटली की मदद से तस्वीर साफ करवाई, लेकिन जॉर्ज ने उस पर मुहर लगाने से इनकार कर दिया.

सीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर हुआ मन मुटाव

कहा जाता है कि यहीं से दोनों के बीच मन-मुटाव का सिलसिला शुरू हुआ. हालांकि, नीतीश ने तब साफ किया था कि जॉर्ज साहब को एनडीए की बैठक में उनके मुख्यमंत्री पद के दावेदार के फैसले की जानकारी नहीं थी. 2005 में जब नीतीश बीजेपी के साथ एनडीए के मुख्यमंत्री बने तो धीरे-धीरे जेडीयू का पावर सेंटर उनकी तरफ केंद्रित होने लगा. पार्टी दो धड़ों में बंटती चली गई. एक जॉर्ज का धड़ा तो दूसरा नीतीश-शरद की जोड़ी का धड़ा.

जॉर्ज का टिकट काट कर निषाद को बनाया उम्मीदवार

2009 तक दोनों के बीच खटास चौड़ी खाई में बदल गई, जब 2009 का लोकसभा चुनाव आया, तो नीतीश ने जॉर्ज फर्नांडीस का टिकट ही काट दिया. उनकी जगह जयप्रकाश निषाद को मुजफ्फरपुर से टिकट दिया गया. इससे बौखलाए जॉर्ज ने निर्दलीय ताल ठोक दिया. इस मौके को भुनाते हुए नीतीश कुमार ने उन्हें जेडीयू से विदाई कर दी.

2017 में शरद यादव को हटा खुद बने थे अध्यक्ष

जीतन राम मांझी प्रकरण और 2017 में भाजपा के साथ सरकार बनने के पहले शरद यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था. उनकी जगह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं दल के राष्टीय अध्यक्ष बने. महीनों तक दोनों पद एक साथ संभालने के बाद अचानक आरसीपी सिंह को जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की जिम्मेवारी दी गयी.

राजद छोड़ने के खिलाफ थे शरद

2003 में अपनी पार्टी का जेडीयू में विलय करने के बाद से वह लगातार इसके अध्यक्ष बने हुए थे. शरद 2016 तक जेडीयू के अध्यक्ष बने रहे. उन्होंने तीन कार्यकाल पूरा करने के बाद अप्रैल 2016 में इस पद को छोड़ दिया था. नीतीश और शरद के बीच खटास तब पैदा हुई थी, जब एनडीए ने नरेंद्र मोदी को पीएम कैंडिडेट घोषित किया था. इस फैसले से नीतीश कुमार इतने नाराज हुए थे कि उन्होंने एनडीए से ही नाता तोड़ लिया था. तब शरद यादव एनडीए के संयोजक थे. उन्हें इस वजह से इस्तीफा देना पड़ा था. शरद नहीं चाहते थे कि नीतीश कुमार एनडीए छोड़ें.

एनडीए में शामिल होने का शरद ने किया विरोध

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश-शरद ने लालू यादव से हाथ मिला लिया. चुनाव नतीजे उनके पक्ष में रहे. नीतीश कुमार फिर मुख्यमंत्री बने लेकिन 2017 में उन्होंने पलटी मारकर फिर से एनडीए का हाथ थाम लिया. शरद यादव को यह नागवार गुजरा और उन्होंने नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. नीतीश कुमार ने शरद के साथ-साथ अली अनवर को भी पार्टी से निकाल दिया. इस वजह से दोनों की राज्यसभा सांसदी भी चली गई. उन्हें दिल्ली का घर तक खाली करना पड़ा था.

अचानक आरसीपी सिंह को बनाया था अध्यक्ष

आरसीपी सिंह भी कुछ महीनों तक अध्यक्ष पद पर रहे. फिर ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर लाया गया. ललन सिंह को 21 जुलाई 2021 को जदयू का अध्यक्ष बनाया गया था. उन्हें फिर से पांच दिसंबर्र 2022 को दूसरी बार पार्टी के अध्यक्ष पद की कमान सौपी गई.

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आरसीपी पर किया था बहुत भरोसा

आरसीपी सिंह की कभी नीतीश कुमार के बाद सरकार और संगठन में चलती थी. नीतीश ने उन्हें 2010 में ही राज्यसभा भेज दिया फिर 2020 में जेडीयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवा दिया, लेकिन दोनों नेताओं में दूरियां तब बढ़ने लगीं, जब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में आरसीपी मंत्री बन गए. दरअसल, 2020 में जब मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार कर रहे थे, तब नीतीश ने मंत्रिमंडल में अधिक सीटें मांगने की डील के लिए उन्हें यह काम सौंपा. आरसीपी पार्टी अध्यक्ष भी थे, लेकिन आरसीपी ने तब खुद को ही मंत्री बनवा लिया. नीतीश इससे नाराज हो गए.

आरसीपी को हटा कर ललन को सौंप दी जिम्मेदारी

इसके बाद आरसीपी नीतीश के निशाने पर आ गए. दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. 2021 में उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. उनकी जगह जुलाई 2021 में ललन सिंह को यह पद सौंपा गया. इसके बाद नीतीश ने आसीपी सिंह का राज्यसभा का कार्यकाल नहीं बढ़ाया, इससे उनकी सांसदी चली गई और अंतत: उन्हें मोदी मंत्रिमंडल से इस्तीफा भी देना पड़ा. बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गए और नीतीश के खिलाफ बिहार में घूम-घूमकर आवाज बुलंद करने लगे.

आरसीपी की जगह ललन सिंह को बनाया था अध्यक्ष

उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी आरसीपी सिंह को दी. आरसीपी सिंह दिसंबर 2020 से 21 जुलाई, 2021 तक जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर रहे. इसके बाद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को 21 जुलाई, 2021 को जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था.

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