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Grahan 2024: नए साल में कब कब लगेंगे ग्रहण, जानें तारीख और सूतक काल

Grahan 2024, Solar Eclipse and Lunar Eclipse 2024: वर्ष 2024 में दो सूर्यग्रहण और दो चंद्रग्रहण लगनेवाले हैं. हालांकि ये ग्रहण भारत में दृश्यमान नहीं होंगे, अत: इनका सूतकाल भी भारत में मान्य नहीं होगा. जानते हैं ये ग्रहण कब लगेंगे और कहां दिखाई देंगे.

Grahan 2024: वर्ष 2024 में दो सूर्यग्रहण और दो चंद्रग्रहण लगनेवाले हैं. हालांकि ये ग्रहण भारत में दृश्यमान नहीं होंगे, अत: इनका सूतकाल भी भारत में मान्य नहीं होगा. जानते हैं ये ग्रहण कब लगेंगे और कहां दिखाई देंगे.

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साल का पहला सूर्यग्रहण

साल 2024 में पहला सूर्यग्रहण 8 अप्रैल को लगेगा. यह सूर्यग्रहण रात में 9 बजकर 12 मिनट पर लगेगा और मध्य रात्रि 1 बजकर 25 मिनट पर समाप्त होगा. इस ग्रहण की कुल अवधि 4 घंटे 39 मिनट होगी. सूर्यग्रहण का सूतक काल 12 घंटे पहले आरंभ हो जाता है. हालांकि, यह ग्रहण दक्षिण पश्चिम यूरोप, पूर्वी एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर, उत्तरी ध्रुव, दक्षिणी ध्रुव पर दिखाई देगा. चूंकि भारत में यह दिखाई नहीं देगा, इस वजह से इसका सूतक काल भी भारत में मान्य नहीं होगा.

साल का दूसरा सूर्यग्रहण

साल 2024 का दूसरा सूर्यग्रहण 2-3 अक्तूबर की मध्य रात्रि लगेगा. दूसरा सूर्य ग्रहण भारतीय समयानुसार 2 अक्तूबर की रात 9 बजकर 13 मिनट से मध्य रात्रि 3 बजकर 17 मिनट तक रहेगा. ग्रहण की कुल अवधि 6 घंटे 4 मिनट की रहेगी. हालांकि इसका सूतककाल भी भारत में मान्य नहीं होगा, क्योंकि यह भारत में दृश्यमान नहीं होगा. यह सूर्यग्रहण अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, प्रशांत और अटलांटिक महासागर दक्षिणी ध्रुव में देखा जायेगा.

साल का पहला चंद्र ग्रहण

साल 2024 में सबसे पहला चंद्र ग्रहण 25 मार्च को लगेगा, जो उपछाया चंद्रग्रहण होगा. इस दौरान चंद्रमा केवल पृथ्वी की छाया के बाहरी किनारों से होकर गुजरता है. यह ग्रहण यूरोप, उत्तर-पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया के बड़े हिस्से, अफ्रीका के कुछ हिस्से उत्तर और दक्षिण अमेरिका में दिखाई देगा. इसके अतिरिक्त प्रशांत महासागर, अटलांटिक, आर्कटिक और अंटार्कटिका में भी दिखेगा. भारतीय समयानुसार, यह सुबह 10:23 बजे से दोपहर 3 बजकर 2 मिनट तक रहेगा. यह भारत में नहीं दिखेगा, अत: इसका सूतककाल भी मान्य नहीं होगा.

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साल का दूसरा चंद्र ग्रहण

साल का तीसरा ग्रहण एक आंशिक चंद्र ग्रहण होगा, जो 18 सितंबर को लगेगा. यह भी भारत में नहीं दिखेगा. यूरोप, एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर, आर्कटिक और अंटार्कटिका में भी यह दिखेगा. इस ग्रहण के दौरान चंद्रमा का एक छोटा हिस्सा ही गहरी छाया में प्रवेश करेगा. भारतीय समयानुसार सुबह 6 बजकर 12 मिनट से शुरू होकर यह 10 बजकर 17 मिनट तक चलेगा. इसका सूतककाल भी भारत में मान्य नहीं होगा.

कब लगता है ग्रहण

सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच आ जाता है, जिससे सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता है, जबकि चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी चंद्रमा और सूर्य के बीच आ जाती है, उस समय चंद्रमा पृथ्वी की छाया से ढक जाता है.

प्राकृतिक आपदाओं के संकेत

ज्योतिष के अनुसार, चार ग्रहणों की वजह से प्राकृतिक आपदाओं का समय से ज्यादा प्रकोप देखने को मिल सकता है. इसमें भूकंप, बाढ़, सुनामी, विमान दुर्घटनाओं के संकेत मिल रहे हैं. हालांकि प्राकृतिक आपदाओं में जनमाल कम ही होने की संभावना रहेगी. व्यापार में तेजी आयेगी, बीमारियों में कमी आयेगी, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, आय में इजाफा होगा. इनके प्रभाव से विश्व में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल रहेगा. सीमा पर विवाद के साथ, आंदोलन, हिंसा, धरना, प्रदर्शन, बैंक घोटाला और आगजनी की स्थितियां बन सकती हैं.

9 अप्रैल को होगा विक्रम संवत् 2081 का आगमन

विक्रम संवत् 2081 का आगमन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, 9 अप्रैल, मंगलवार (2024) से हो रहा है. इस वर्ष पिंगल नामक संवत्सर होगा. इस वर्ष के राजा मंगल, मंत्री शनि, दुर्गेश शनि, धनेश मंगल, धान्येश चंद्रमा, रसेश गुरु, नीरसेश मंगल, फलेश शुक्र एवं मेघेश शनि होंगे.

विक्रम संवत् के अनुसार, 12 मासों के नाम इस प्रकार हैं :

1. चैत्र, 2. वैशाख, 3. ज्येष्ठ, 4. आषाढ़, 5. श्रावण, 6. भाद्रपद (भादो), 7. आश्विन (कुवार), 8. कार्तिक, 9. मार्गशीर्ष (अगहन), 10. पौष, 11. माघ, 12. फाल्गुन.

चार स्वयं सिद्ध मुहूर्त

1. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, 2. अक्षय तृतीया, 3. दशहरा, 4. बलिप्रतिपदा (दीपावली के दूसरे दिन). उपरोक्त मुहूर्तों को स्वयं सिद्ध मुहूर्त कहते हैं. इन मुहूर्तों में कोई भी काम शुरू करने पर विजय प्राप्त होती है. लेकिन विवाह आदि कार्य के लिए पंचांग में दिये गये मुहूर्तों को ही मानें.

हर मास के दो पक्ष

1. शुक्ल पक्ष (सुदी) : अमावस्या के बाद प्रतिपदा से पूर्णिमा तक की तिथियों को शुक्ल पक्ष कहते हैं. यानी अमावस्या के बाद बढ़ता हुआ चंद्रमा पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष का सूचक है.

2. कृष्ण पक्ष (बदी) : पूर्णिमा के बाद से अमावस्या तक की तिथियों को कृष्ण पक्ष कहते हैं. यानी पूर्णिमा के बाद घटता हुआ चंद्रमा अमावस्या तक कृष्ण पक्ष का सूचक है.

विक्रम संवत का महत्व

विक्रम संवत कैलेंडर का हिंदू नव वर्ष के उत्सव के साथ गहरा महत्व और संबंध है. किंवदंतियों के अनुसार, लगभग 57 ईसा पूर्व, प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य ने शकों पर अपनी जीत के उपलक्ष्य में इस कैलेंडर प्रणाली की स्थापना की थी. तब से विक्रम संवत कैलेंडर को हिंदू नव वर्ष सहित महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों की गणना से जटिल रूप से जोड़ा गया है. यह ऐतिहासिक जुड़ाव इस महत्वपूर्ण अवसर को चिह्नित करने में व पंचांग की भूमिका में श्रद्धा और प्रामाणिकता की भावना जोड़ता है.

प्रस्तुति : मार्कण्डेय शारदेय, ज्योतिष व धर्म विशेषज्ञ

markandeyshardey@gmail.com

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