शंकर कुमार, सुपौल. जिले के त्रिवेणीगंज प्रखंड क्षेत्र के महेशुआ पंचायत अंतर्गत लक्ष्मीपुर गांव के बड़की पोखर के समीप शिमला मिर्च की खेती की जा रही है. आधुनिक तरह से की जा रही शिमला मिर्च की खेती यहां के लिये चर्चा का विषय बना हुआ है. इससे पहले इस इलाके में जहां धान, गेहूं, मक्के या मूंग की खेती होती थी. वहीं शिमला मिर्च की खेती यहां के किसानों के लिये एक नया तोहफा के रूप में सामने आ रहा है.
प्रवीण कुमार झा को जाता है श्रेय
इस खेती का श्रेय पूर्व जिला कृषि पदाधिकारी प्रवीण कुमार झा को जाता है. जिनके देख-रेख में यहां एक हजार वर्ग मीटर में शिमला मिर्च की खेती की जा रही है. सेवानिवृत डीएओ प्रवीण कुमार झा ने बताया कि वे यहां उगने वाले फसलों की खुद से मॉनिटरिंग करते हैं. साथ ही फसलों के बीच उगने वाले खड़-पतवार की निकौनी भी अपने हाथों से करते हैं. उनके फॉर्म में जो भी फसलें लगायी जाती है, उनके विकास के लिये ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है.
ऑर्गेनिक खाद का किया जाता है इस्तेमाल
शिमला मिर्च के पौधों के विकास के लिये भी ऑर्गेनिक खाद उपयोग में लाया जाता है. वे खुद से ऑर्गेनिक खाद भी तैयार करते हैं. जिसके लिये सीमेंट से बनी टंकी में गोबर, केचुआ, कॉकपीट और पेड़-पौधों की पत्ती से ऑर्गेनिक खाद तैयार करते हैं. जबकि शिमला मिर्च के पौधों को कीटों से बचाने के लिये कीटनाशक के स्थान पर देशी गाय के गौ मूत्र का इस्तेमाल किया जाता है. उन्होंने बताया कि उनके यहां गौ मूत्र से जीवामित्र तैयार किया जाता है. जो पौधों के लिए औषधि का काम करती है. इससे जहां गौ मूत्र का इस्तेमाल हो जाता है.
ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना चाहिये
हम मिट्टी और पेड़-पौधों को खतरनाक रासायन से भी बचा लेते हैं. खेती में उपयोग किये जाने वाले रासायन पौधे, मिट्टी और मनुष्य के स्वास्थ्य के लिये काफी हानिकारक होता है. इसलिये ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना चाहिये. यह स्वास्थ्य के लिये लाभदायक भी है और किसानों के लिये कम खर्च वाला भी है. बताया कि शिमला मिर्च का पौधा वह खुद से तैयार करते हैं. बाजार से बीज लाकर कॉकपिट में शिमला मिर्च के छोटे पौधे तैयार करते हैं. फिर उन पौधे को पॉली फॉर्म हाउस के अंदर क्यारियां बना कर रोपते हैं.
शिमला मिर्च की खेती किसानों के चेहरे पर ला रही खुशी
यहां करीब तीन साल से कृषि फॉर्म संचालित की जा रही है. यहां पर कृषि के नई तकनीकों का इस्तेमाल कर कई तरह के चीजों की खेती की जा रही है. यहां शिमला मिर्च, पपीता, टमाटर, केला, सतावर, काली हल्दी और नींबू की खेती मुख्य रूप की की जाती है. इस फार्म में आधुनिक तरीके से गौ पालन, भैंस पालन और मछली पालन भी किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि उनके फार्म में लगभग 90 प्रतिशत प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल कर फसलों को तैयार किया जाता है.
किसानों के चेहरे पर खुशी ला रही है शिमला मिर्च की खेती
पूर्व डीएओ प्रवीण कुमार झा ने कहा कि सुपौल जैसे क्षेत्रों की गिनती बाढ़ प्रभावित इलाके के रूप में होती है. कोसी नदी के प्रकोप से हर वर्ष यहां बाढ़ आती है. इसमें लाखों एकड़ में लगी फसल बर्बाद हो जाती है और हजारों लोगों के आशियाने कोसी में समा जाते हैं. ऐसे में यहां शिमला मिर्च की खेती किसानों के चेहरे पर खुशी ला रही है. सालों भर गेहूं और मक्के जैसी पारंपरिक खेती में फंसे रहने वाले किसानों के लिए शिमला मिर्च की खेती एक आशा की किरण बन सकती है.
एक पौधा से 10 से 15 किलो शिमला मिर्च होता है प्राप्त
प्रवीण कुमार ने कहा कि एक शिमला मिर्च का पौधा दो से ढाई महीने में फल देने लगता है. एक पौधे से करीब 10 से 15 किलो तक शिमला मिर्च प्राप्त होता है. उन्होंने बताया कि वह 100 रूपये में शिमला मिर्च के बीज का एक पैकेट बाजार से लाते हैं, जिससे 1400 से 1500 पौधे तैयार किए जाते हैं. एक पौधे से अगर 15 किलो भी शिमला मिर्च निकलती है तो बाजार में उसकी कीमत अच्छी खासी मिल जाती है.
साल भर की जा सकती है शिमला मिर्च की खेती
सुपौल, सहरसा और मधेपुरा इलाके के बाजारों में शिमला मिर्च अलग-अलग समय अंतराल पर 40 से 100 प्रति किलो की तक की दर से बिकता है. अगर आप खुद से मेहनत करते हुए बिना किसी मजदूर को लगाए हुए पौधों की देखभाल करते हैं तो आपको अच्छा खासा फायदा हो सकता है. एक पौधे को तैयार करने में काफी कम लागत आती है. पूर्व जिला कृषि पदाधिकारी ने बताया कि सालों भर शिमला मिर्च की खेती की जा सकती है. वह नए पौधे पुराने पौधे के समाप्त होने के बाद उस जगह पर नए पौधों को लगा देते हैं. इस तरह से रोटेशन चलता रहता है और लगातार उनके खेतों में शिमला मिर्च तैयार होते रहते हैं.
लाल और पीले रंग के शिमला मिर्च की खेती भी है संभव
उनके फार्म में फिलहाल हर हरी शिमला मिर्च की खेती की जा रही है. हालांकि उन्होंने बताया कि लाल और पीले रंग की शिमला मिर्च की खेती भी यहां संभव है. फिलहाल लाल और पीली शिमला मिर्च के मुकाबले कोशी क्षेत्र में हरी शिमला मिर्च की खपत अधिक है और इसकी बाजारों में भी बिक्री अधिक होती है.
सुपौल की मिट्टी शिमला मिर्च की खेती के लिए काफी अनुकूल
तापमान को नियंत्रित रखने के लिए पॉली हाउस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इसके भीतर धूप से बचाव के लिए हरे रंग के वेंटिलेशन वाले कपड़े का भी इस्तेमाल किया जाता है. ताकि गर्मियों के दिनों में फसलों को धूप से बचाया जा सके. वहीं फसलों में नमी बरकरार रखने के लिए ऊपर फुहारा देने का इंतजाम भी किया गया है. जबकि ड्रिप इरीगेशन विधि का इस्तेमाल कर रहे सिंचाई की व्यवस्था की गयी है. खेती के लिए ड्रिप इरीगेशन सबसे उत्तम सिंचाई विधि है.
ड्रिप इरीगेशन विधि का हो इस्तेमाल
किसानों को पारंपरिक रूप से सिंचाई करने के बजाय ड्रिप इरीगेशन विधि का इस्तेमाल कर सिंचाई करनी चाहिये. इस विधि में पानी की बचत के साथ कम लागत भी आती है. साथ ही जरूरत के अनुसार ही पानी खेतों में पहुंचती है. खर्च कम आता है और फसलों की उत्पादन भी अच्छी होती है. कहा कि जिन किसानों के लिये पॉली हाउस लगाना संभव नहीं है, वे किसान खुले खेतों में भी शिमला मिर्च की खेती कर सकते हैं. सुपौल की मिट्टी शिमला मिर्च की खेती के लिए काफी अनुकूल है. इससे किसानों को अच्छा मुनाफा भी हो सकता है.
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किसानों को अपनाना चाहिये आधुनिक कृषि
पूर्व जिला कृषि पदाधिकारी प्रवीण कुमार झा बताते हैं कि आज कल आधुनिक कृषि को अपनाना चाहिए. इससे किसानों की आय बढ़ेगी. कृषि से जुड़ी सरकार के विभिन्न योजनाओं का लाभ लेकर भी किसान खेती कर सकते हैं. सरकार और एनजीओ द्वारा संचालित कई तरह के ट्रेनिंग कोर्स भी नई तरह की कृषि के लिए चलाये जा रहे हैं. कृषि विभाग से संपर्क कर किसान इसकी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और आधुनिक कृषि की ट्रेनिंग ले सकते हैं.
छोटे स्तर पर भी इस तरह की खेती कर सकते हैं
प्रवीण कुमार झा ने कहा कि किसान ट्रेनिंग लेने के बाद छोटे स्तर पर भी इस तरह की खेती कर सकते हैं और अपनी भविष्य को संवार सकते हैं. खेती के कई योजनाओं में सरकार के तरफ से अनुदान भी दिया जाता है. जबकि कई योजनाओं में लोन की भी सुविधा उपलब्ध है. किसान इस बात की जानकारी प्राप्त कर इसका उपयोग बेहतर कृषि कार्य के लिए कर सकते हैं.