कुमार आशीष, मधेपुरा. मिथिला केवल श्रीराम के विवाह के कारण ही नहीं, उनके जन्म की कथा से जुड़ा होने के कारण भी अपना अलग महत्व रखता है. वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब राजा दशरथ की रानियों को पुत्ररत्न की प्राप्ति नहीं हो रही थी और राजा दुखी रहने लगे थे, तब कुलगुरु वशिष्ठ ने उन्हें पुत्र कामेष्टि यज्ञ कराने की सलाह दी. जब रानियों ने उन्हें यज्ञ का आयोजन कराने को कहा, तो गुरु वशिष्ठ ने कहा कि यह यज्ञ वे नहीं, बल्कि अथर्ववेद के पूर्ण ज्ञाता ऋषि श्रृंगी मुनि ही करा सकते हैं. यह यज्ञ उन्हीं के द्वारा संपन्न होना चाहिए. किंवदंती व धार्मिक ग्रंथों के आधार पर इतिहासकार मानते हैं कि ऋषि श्रृंगी कई हुए. इनमें से एक रामायण काल में दो दूसरे महाभारत काल में चर्चित हुए. एक ऋषि श्रृंगी लखीसराय में भी रहे. वे तंत्र के महान ज्ञाता माने जाते थे. रामायणकालीन ऋषि श्रृंगी ने यज्ञ के लिए सिंहेश्वर को ही चुना, जहां वे निर्विघ्न रूप से यज्ञ पूरा कर सके. लोग कहते हैं कि आश्रम से दूर रह कर बड़े यज्ञ करवाये जाते थे, इसलिए सतोखर को चुना गया.
रामायण में एक प्रसंग आता है कि रानियों द्वारा ऋषि श्रृंगी मुनि को अयोध्या बुलाने की बात कहने पर वशिष्ठ ने कहा कि महाराज को स्वयं उनके पास जाकर प्रार्थना करनी चाहिए. गुरु वशिष्ठ ने यह भी कहा कि वहां जाने के लिए रथ, हाथी, घोड़े अथवा सेना की आवश्यकता नहीं है. योगी के पास महाराज कुछ मांगने जा रहे हैं, अपना पराक्रम दिखाने नहीं. भिक्षा खाली झोली में ही डाली जाती है. तब राजा दशरथ अयोध्या से नंगे पांव सिंहेश्वर स्थान आये थे. ऋंगी ऋषि द्वारा पूजित ऋंगेश्वर मंदिर (सिंहेश्वर स्थान) से महज दो किलो की दूरी पर सतोखर नाम का यह स्थान आज भी विद्यमान है.
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किंवदंती है कि राजा दशरथ के आने के बाद यज्ञ के लिए यहां सात कुंड खुदवाये गये थे. उसी यज्ञ की प्रज्जवलित अग्नि से अग्निदेव खीर से भरा एक पात्र लेकर प्रकट हुए और राजा दशरथ को दिया. राजा दशरथ ने उस पात्र से खीर निकाल महारानी कौशल्या और कैकेयी को दिया. फिर दोनों रानियों ने अपने-अपने हिस्से से एक-एक निवाला रानी सुमित्रा को दिया. उसके बाद चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को रानी कौशल्या ने राम, कैकेयी ने भरत और सुमित्रा ने लक्ष्मण व शत्रुघ्न को जन्म दिया था. समय बदलता गया, राज्य और राजा बदलते गये और वे सारे कुंड कालांतर में तालाब में बदल गये. समय के साथ सारे तालाब भी भर गये और खेतों में बदल गये. अभी कबीर मठ के प्रयास से एक तालाब का अस्तित्व बचाकर रखा गया है. 44 बीघा में फैली यह पुत्रेष्टि यज्ञभूमि राम जन्मभूमि की तरह विश्वभर में प्रसिद्धि नहीं पा सका.