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World Hindi Day: ग्लोबल हो रही हमारी हिंदी, झारखंड का भी अहम योगदान, जानें कहां से आई हिंदी भाषा

आज विश्व हिंदी दिवस है. ग्लोबल होती हमारी हिंदी आज पारंपरिक ज्ञान और कृत्रिम बुद्धिमत्ता की मिसाल बन रही है. गूगल ने भी कहा है कि इंटरनेट पर हिंदी कंटेंट की मांग लगातार बढ़ रही है. विदेशियों में भी हिंदी भाषा सीखने की ललक बढ़ रही है. झारखंड का भी इसमें अहम योगदान है. पेश है खास रिपोर्ट...

भाषाविदों और संस्कृति व सभ्यताओं पर किये गये शोध बताते हैं कि पर्शिया (वर्तमान में ईरान) के लोग सिंधु नदी के किनारे रहनेवाले लोगों को हेंडी कहते थे. इनकी भाषा इंडी थी. यही शब्द बाद में बिगड़ कर हिंदी हो गयी. समय के साथ आये बदलाव में फारसी और हिंदी, दोनों भाषाओं की मूल एक ही भाषा बन गयी. आज दर्जनों देशों में हिंदी बोली जाती है. वहीं, दुनियाभर के 600 विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा की पढ़ाई संचालित हो रही है. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा था कि हिंदी उन सभी गुणों से अलंकृत है, जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है. आज विश्व हिंदी दिवस है. ग्लोबल होती हमारी हिंदी आज पारंपरिक ज्ञान और कृत्रिम बुद्धिमत्ता की मिसाल बन रही है. गूगल ने भी कहा है कि इंटरनेट पर हिंदी कंटेंट की मांग लगातार बढ़ रही है. यह साल दर साल इंग्लिश कंटेंट के 19 प्रतिशत के मुकाबले 94 प्रतिशत तेज गति से बढ़ रही है. विदेशियों में भी हिंदी भाषा सीखने के प्रति ललक बढ़ रही है.

हिंदी बन रही वैश्विक भाषा

  • इंग्लिश और मंदारिन के बाद हिंदी विश्व की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है.

  • 2011 की जनगणना के अनुसार 1210854977 लोगों में से 43.63% लोग हिंदी भाषी हैं.

  • वर्ष 2011 के अंकड़ों के अनुसार ऑस्ट्रेलिया में एक लाख से ज्यादा लोग हिंदी भाषा बोलते हैं.

  • दुनियाभर में हिंदी की पढ़ाई को अब अंग्रेजी जितना अहम माना जाता है. इस कड़ी में करीब 40 देशों के 600 विश्वविद्यालयों व संस्थाओं में हिंदी पढ़ाई जाती है.

  • अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी में वर्ष 1815 से और जापान की टोक्यो यूनिवर्सिटी में करीब 100 वर्षों से ज्यादा समय से हिंदी का अध्ययन हो रहा है.

  • दुनियाभर के 600 विवि में हिंदी भाषा की पढ़ाई हो रही संचालित

  • इंटरनेट पर भी अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी कंटेंट की मांग हर वर्ष बढ़ रही

  • भारत के अलावा पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार, इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, चीन, जापान, यमन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, युगांडा, दक्षिण अफ्रीका, मॉरिशस, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद एंड टोबैगो, रूस, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी, न्यूजीलैंड समेत कई देशों में हिंदी बोली व समझी जाती है.

  • विदेश में 25 से अधिक पत्रिकाएं नियमित रूप से हिंदी भाषा में प्रकाशित की जाती हैं. साथ ही कई हिंदी कार्यक्रम भी प्रसारित किये जाते हैं.

  • यूएई में एफएम रेडियो के तीन ऐसे चेनल हैं, जहां 24 घंटे हिंदी फिल्मों के गाने सुन सकते हैं.

  • दुनियाभर में करीब 75 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं.

  • भारत के बाद सबसे ज्यादा नेपाल में बोलचाल के लिए हिंदी भाषा का इस्तेमाल किया जाता है. वहीं, तीसरे नंबर पर अमेरिका का नाम है.

  • हिंदी में उच्चतर शोध के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1963 में केंद्रीय हिंदी संस्थान की स्थापना की. इसके देशभर में आठ केंद्र हैं. फिजी में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है.

ब्राजील की वॉल्दीलिनी पॉल ने सीखी हिंदी भाषा

बहुबाजार की वॉल्दीलिनी पॉल मूल रूप से ब्राजील की हैं. 2006 में दिल्ली पहुंचीं. समाजसेवा के कार्य में जुटी वॉल्दीलिनी उस वक्त केवल अपनी मूल भाषा पुर्तगाली और अंग्रेजी जानती थीं. इससे ग्रामीणों से मिलने पर भाषाई संकट अक्सर उनके मन में जिज्ञासा पैदा करती थी. इस क्रम में समाजसेवा में जुटे रहते हुए उनका परिचय डॉ राकेश पॉल से हुआ. दोनों की दोस्ती आगे बढ़ी, तो वॉल्दीलिनी का परिचय हिंदी गानों से हुआ. संगीतकार होने के कारण वॉल्दीलिनी को हिंदी भाषा आकर्षित करती थी. आगे चलकर दोनों ने शादी की. हिंदी भाषा सीखने की ललक से वॉल्दीलिनी ने बच्चों को गिटार क्लास देना शुरू किया. शर्त रखी कि गिटार क्लास के बदले बच्चे उनको हिंदी भाषा सिखायेंगे. 2004 में डॉ राकेश पॉल और वॉल्दीलिनी, गोवा में रहने लगे, फिर 2008 में रांची आ गये. यहां लौटने पर वॉल्दीलिनी ने हिंदी को मजबूती से सीखने की ठानी. कसम खाई कि लोगों से टूटी-फुटी हिंदी में भी बात करेंगी. इससे 2016-17 तक पूरी तरह हिंदी भाषा से अभ्यस्त हो गयीं. वॉल्दीलिनी अब हिंदी भाषा बोलने, पढ़ने और लिखने में सक्षम हैं. साथ ही राज्य की स्थानीय भाषा सादरी भी सीख चुकी हैं. महिला सशक्तीकरण को लेकर लगातार काम कर रही हैं. साथ ही खुद का म्यूजिक बैंड ‘इम्पैक्ट’ तैयार किया है. जिसके अंतर्गत कई हिंदी और सादरी भाषा लांच कर चुकी हैं.

विदेश में रहते हुए भी हिंदी प्रेम जीवंत

इला प्रसाद 2002 से अमेरिका में रह रही हैं. विदेश में रहते हुए भी हिंदी के प्रति प्रेम जीवंत है. इला अपनी लेखनी और संपादन से लोगों को हिंदी भाषा से जोड़ रही हैं. विश्व हिंदी सम्मेलन अमेरिका 2007 में उनकी पहली दो पुस्तकों का विमोचन हुआ था. पिछले दो दशक से लेखन की प्रमुख विधाओं में एक साथ सक्रिय हैं. अब तक देश-विदेश की लगभग सभी पत्रिकाओं व वेब पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं. उन्होंने बताया कि शोध दिशा पत्रिका के प्रवासी रचनाकार अंक के दो खंडों का संपादन किया. इला प्रसाद ने कनाडा की पत्रिका हिंदी चेतना के कामिल बुल्के विशेषांक का सह संपादन भी किया.

मोबाइल के लिए तैयार किया हिंदी टाइपिंग की-बोर्ड

चाईबासा के अंकित प्रसाद तकनीक के क्षेत्र में हिंदी को मजबूती दे रहे हैं. आइआइटी दिल्ली के छात्र रहे अंकित ने मोबाइल की-बोर्ड एप्लीकेशन ‘बॉबल एआइ’ तैयार किया है. इसकी खासियत है कि सामान्य चैटिंग लैंग्वेज में टाइप किये गये मैसेज को एप्लीकेशन हिंदी के शब्द में बदल देता है. इसके साथ ही यूजर्स के नियमित ऐप इस्तेमाल करने पर ऑटो फीड शब्दकोश तैयाार हो रहा है. यानी यूजर्स की ओर से इस्तेमाल किये गये शब्द आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से ऑटो फीड हो जाते हैं. इससे भविष्य में व्यक्ति जैसे ही मैसेज टाइप करना शुरू करता है, एप्लीकेशन स्वत: आगे के शब्द का विकल्प सुझा देती है. अंकित कहते हैं कि ऐप को तैयार करने में खास एल्गोरिदम का इस्तेमाल किया गया है, जो इसे कारगर बनाती है. 2018 में बॉबल को तैयार करने के बाद 2019 में इसे ग्लोबल मार्केट में लांच किया दिया. प्रोडक्ट को देखते हुए कई बड़े एंजेल इंवेस्टर जैसे फ्लिपकार्ट इंडिया के फाउंडर सचिन और बिन्नी बंसल, शादी डॉटकॉम के फाउंडर सह शार्क टैंक के होस्ट अनुपम मित्तल व अन्य ने सहयोग किया.

श्रीलंका में हिंदी का वैश्विक परिचय देंगे डॉ उपेंद्र कुमार

सीयूजे हिंदी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ उपेंद्र कुमार ‘सत्यार्थी’ विश्व हिंदी दिवस-2024 पर श्रीलंका में आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में हिस्सा लेने गये हैं. संगोष्ठी 10 और 11 जनवरी को स्वामी विवेकानंद कल्चरल सेंटर, भारतीय उच्चायोग, श्रीलंका में होगी. इसमें विभिन्न देशों से विषय विशेषज्ञ हिस्सा ले रहे हैं. डॉ उपेंद्र कुमार संगोष्ठी में विषय- ‘हिंदी का वैश्विक परिदृश्य’ और ‘हिंदी साहित्य में बौद्ध दर्शन का प्रभाव’ पर अपना व्याख्यान और शोध आलेख प्रस्तुत करेंगे. डॉ उपेंद्र को बीते वर्ष श्रीलंका में ‘भाषाई विविधता और उसका महत्व और भारतीय समाज, संस्कृति और प्रेमचंद’ विषय पर शोध आलेख पेश करने का मौका मिला था. उन्होंने इस अवसर को हिंदी के विकास के लिए महत्वपूर्ण बताया. कहा कि श्रीलंका समेत अन्य दक्षिण एशियाई देशों में हिंदी सीखने को लेकर उत्साह देखा जा रहा है. इससे हिंदी भाषा का विस्तार तेजी से वैश्विक स्तर पर हुआ है. श्रीलंका में लगभग सात विवि और सात सौ विद्यालयों में हिंदी सीखने-सिखाने का कार्यक्रम चलाया जा रहा है. इसका मुख्य कारण दोनों देशों के बीच का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक और भाषाई संबंध हैं.

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