देवशरण भगत (आजसू के प्रमुख प्रवक्ता सह झारखंड आंदोलकारी) : आज जस्टिस एलपीएन शाहदेव की 12वीं पुण्यतिथि है. मुझे गर्व है कि आंदोलन के अंतिम दौर में मैंने और मेरी आजसू पार्टी ने 16 अन्य राजनीतिक दलों और जस्टिस शाहदेव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अंतिम लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाया था. जस्टिस शाहदेव झारखंड क्षेत्र के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के पहले व्यक्ति थे, जिन्हें उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने का गौरव प्राप्त हुआ था. यह अविभाजित बिहार का दौर था, जब झारखंड के आदिवासी-मूलवासी को जल्दी जगह नहीं मिलती थी. जस्टिस शाहदेव ने संघर्ष से इतना बड़ा मुकाम पाया. वह चाहते तो अन्य न्यायाधीशों की तरह सेवानिवृत्ति के बाद किसी आयोग या कमीशन का अध्यक्ष बनकर आराम की जिंदगी व्यतीत कर सकते थे, लेकिन उन्होंने संघर्ष का रास्ता चुना. सेवानिवृत्ति के बाद वह किसी पार्टी से नहीं जुड़कर स्वतंत्र रूप से झारखंड आंदोलन के लिए अपनी लेखनी और संविधान विशेषज्ञ के रूप में सेवाएं देते रहे.
1998 में अलग राज्य की लड़ाई का अंतिम बिगुल फूंका गया. उस समय लालू प्रसाद ने ‘झारखंड मेरी लाश पर बनेगा’ जैसा विवादास्पद बयान दिया था. इससे झारखंड में भारी आक्रोश था. आंदोलन भी उस समय शिथिल सा पड़ गया था. तब आजसू, कांग्रेस, झामुमो, झारखंड पार्टी, झारखंड पीपुल्स पार्टी और समाजवादी पार्टी सहित 16 दलों ने एक मंच पर आकर अंतिम लड़ाई का बिगुल फूंका. जस्टिस शाहदेव को सर्वसम्मति से इस आंदोलन का नेतृत्व सौंपा गया.
मुझे याद है कि युवावस्था में बैठकों के दौरान जब आजसू के हम सब युवा नेता जोश में आ जाते थे, तो जस्टिस शाहदेव हमें जोश में होश नहीं खोने की सलाह देकर सही मार्गदर्शन देते थे. 21 सितंबर को सर्वदलीय अलग राज्य निर्माण समिति के हुए ऐतिहासिक बंद ने बिहार और केंद्र सरकार को हिला दिया था. इस बंद के दौरान जस्टिस शाहदेव को पुलिस ने गिरफ्तार करके घंटों हिरासत में रखा था. यह देश की पहली घटना थी, जब उच्च न्यायालय के किसी पूर्व न्यायाधीश को जनांदोलन में गिरफ्तार किया गया हो. केंद्र सरकार ने अलग राज्य का बिल पेश किया था और बिहार में इसका व्यापक विरोध हो रहा था. लेकिन पूरा झारखंड एक होकर इसका समर्थन कर रहा था. बाद में सर्वदलीय अलग राज्य निर्माण समिति ने जस्टिस शाहदेव के नेतृत्व में अलग राज्य बनने तक आंदोलन को बुलंद रखा.
अलग राज्य बनने के बाद भी जस्टिस शाहदेव आंदोलनकारियों की आर्थिक स्थिति को लेकर बहुत चिंतित रहते थे. उनका मानना था कि झारखंड के आदिवासी और मूलवासी के साथ अन्याय हुआ है और उनके हक को बाहर के लोगों ने मार लिया है. वह अधिकांश संगोष्ठियों में भी इसकी व्यापक चर्चा किया करते थे कि यहां के भूमि पुत्रों को उनका हक मिलना चाहिए. आज जस्टिस शाहदेव नहीं हैं, लेकिन उनके विचार कितने प्रासंगिक हैं कि आज फिर से आदिवासी मूलवासियों को हक दिलाने के मुद्दे पर व्यापक चर्चा हो रही है.
(डॉ देवशरण भगत, झारखंड आंदोलनकारी रहे हैं और वर्तमान में आजसू के प्रमुख प्रवक्ता हैं)
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