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कम पानी में अच्छी पैदावार और पौष्टिक है बालीभोजना धान, जानें क्या है इसकी खासियत

कोल्हान में करीब 2000 से अधिक किसान बालीभोजना धान की खेती कर रहे हैं. इसका मुख्य कारण यह है कि कम पानी में भी पैदावार का अच्छा होना. इसमें रसायनिक खाद डालने की जरूरत नहीं है.

जमशेदपुर : धान को लेकर लगातार प्रयोग हो रहे हैं. किसान अलग-अलग किस्म के जरिए धान की अच्छी उपज हासिल कर रहे हैं. इसीलिए आज बाजार में कई तरह के हाइब्रिड किस्म के धान के बीज उपलब्ध हैं. इसका इस्तेमाल कर किसान मुनाफा कमा रहे हैं. लेकिन हाल के कुछेक वर्षों में झारखंड के देसी धान की किस्म बालीभोजना किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ है. दरअसल, बाजीभोजना धान की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसकी खेती में कम पानी का उपयोग होता है. इसे सभी तरह की मिट्टी में लगाया जा सकता है. इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी होती है और पैदावार भी अच्छी होती है. प्रति बीघा 11 से 12 क्विंटल धान की पैदावार होती है.

कोल्हान में करीब 2000 से अधिक किसान कर रहे खेती

कोल्हान में करीब 2000 से अधिक किसान बालीभोजना धान की खेती कर रहे हैं. इसका मुख्य कारण यह है कि कम पानी में भी पैदावार का अच्छा होना. इसमें रसायनिक खाद डालने की जरूरत नहीं है. खाद के नाम पर इसमें गोबर व सरसों की खल्ली का उपयोग किया जाता है. इसकी खेती पर किसानों को अतिरिक्त व्यय नहीं करना पड़ता है.

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पौष्टिकता में सभी धान से बेहतर

सेंटर फॉर वर्ल्ड सोलिडरिटी (सीडब्ल्यूएस) जेआरसी के ज्वाइंट डायरेक्टर पलाश भूषण चटर्जी ने बताया पिछले दिनों आइआइटी खड़गपुर के लैब में बालीभोजना धान की गुणवत्ता की जांच की गयी. पौष्टिकता के मामले में इसे अन्य धान की तुलना में सबसे अच्छा पाया गया. इस लिहाज से सीडब्ल्यूएस कोल्हान के किसानों को बालीभोजना धान लगाने के लिए प्रेरित व प्रोत्साहित कर रहा है. उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में बारिश को लेकर जो स्थिति बन रही है, ऐसे में बालीभोजना धान को लगाना बहुत ही फायदेमंद है.

रघुनाथपुर में बालीभोजना धान की खेती को लेकर बदली सोच

घाटशिला की बड़ाजुड़ी पंचायत के रघुनाथपुर में वर्ष 2000 में मात्र दो किसान बालीभोजना धान की खेती करते थे. गांव के लोगों ने जब इस धान की गुणवता के बारे जाना, तो अब उसी गांव में 80 से ज्यादा लोग बालीभोजना धान की खेती कर रहे हैं. अब आसपास के गांवों में भी इस धान के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा है. वे भी इस देसी किस्म के धान की खेती कर रहे हैं.

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