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Ayodhya Ram Mandir: अमेरिका की सोनल सिंह प्रयागराज में 11,000 बार लिखेंगी राम नाम, जानें इनके बारे में

सोनल सिंह के पूर्वजों अयोध्या से ही हैं. उन्होंने बताया कि मेरे दादा राम लखन सिंह हमारे परिवार में अयोध्या में रहने वाले आखिरी व्यक्ति थे. मैं करीब 10 साल से भारत से बाहर हूं. उन्‍होंने कहा कि मैं करीब 20 वर्षों से राम नाम बैंक से जुड़ी हूं.

अयोध्या के राम मंदिर में होने वाले ऐतिहासिक प्राण प्रतिष्ठा समारोह में न्यूयॉर्क निवासी 38 वर्षीय सोनल सिंह शामिल नहीं हो पाएंगी. लेकिन सोनल इस बात से निराश नहीं हैं. वे एक सॉफ्टवेयर सलाहकार हैं और आध्यात्म में उनका पूरा रुझान है. उनके पूर्वज अयोध्या के ही रहने वाले हैं. सोनल का मानना है कि भगवान राम एक आदर्श हैं जो केवल अयोध्या या भारत तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि पूरे ब्रह्मांड के स्वामी हैं. वह अभी प्रयागराज के संगम क्षेत्र में अक्षय वट मार्ग पर राम नाम बैंक के माघ मेला शिविर में हैं. उनका मानना है कि राम केवल एक नाम नहीं है, बल्कि एक (ऊर्जात्मक) शब्द है, जो सकारात्मक कंपन पैदा करता है और एक दिव्य शक्ति हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा पैदा करती है. सोनल सिंह ने कहा कि भगवान राम केवल एक प्रतीक नहीं हैं जो अयोध्या या भारत तक ही सीमित हैं. वास्तव में उनकी आभा दुनिया भर में फैली हुई है. वह पूरी मानवता के लिए एक प्रतीक हैं. वह ब्रह्मांड नायक (संपूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी) हैं. वह इस धरती पर हर एक सभ्य व्यक्ति के लिए आदर्श हैं. इसलिए उन्हें ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ भी कहा जाता है. उन्होंने कहा कि भगवान राम के नाम का एक बार जाप करना भगवान विष्णु का नाम 1,000 बार लेने के बराबर है और अगर आप सिर्फ अपने दिल की गहराइयों से राम-राम का जाप करते हैं तो आप अवचेतन रूप से भगवान राम को उस आवृत्ति और लय में प्राप्त कर लेते हैं.

सोनल सिंह ने यह भी कहा कि पूर्वजों के बारे में बात करूं तो मैं अयोध्या से हूं. मेरे दादा राम लखन सिंह हमारे परिवार में अयोध्या में रहने वाले आखिरी व्यक्ति थे. मैं करीब 10 साल से भारत से बाहर हूं. उन्‍होंने कहा कि मैं करीब 20 वर्षों से राम नाम बैंक से जुड़ी हूं. मैं नई पीढ़ी को हमारी संस्कृति और पश्चिम में रहने वाली नई पीढ़ी के प्रति पैदा हुई खाई के बारे में जागरूक करने पर काम करती हूं. यह पूछे जाने पर कि वह आगामी अभिषेक समारोह को कैसे देखती हैं इस पर उन्होंने कहा कि यह भारत के बाहर रहने वाले सनातन धर्म में विश्वास करने वाले और रामायण का पालन करने वाले हर एक व्यक्ति के लिए एक बड़ा एकजुट कारक बनने जा रहा है. मेरे ऐसे दोस्त हैं जो कभी भारत नहीं आए हैं. लेकिन अब देश के आध्यात्मिक पक्ष के प्रति उनकी जिज्ञासा काफी बढ़ गई है. जो राम मंदिर बन रहा है, वह उस संपूर्ण सभ्यता और आध्यात्मिक मूल्यों को दृश्यता दे रहा है जो बहुत समय पहले लुप्त हो गए थे.

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सोनल सिंह संगम क्षेत्र से अभिषेक समारोह देखेंगी

भगवान राम की प्रबल भक्त सोनल सिंह ने लगभग 10 लाख से अधिक बार भगवान राम का नाम लिखा है. वह संगम क्षेत्र से अभिषेक समारोह देखेंगी. उन्होंने कहा कि अयोध्या में श्री राम लला के अभिषेक के दिन मैं 11,000 बार ‘राम’ लिखूंगी. यह भगवान राम के लिए मेरी प्रार्थना और पूजा होगी. उन्होंने कहा कि इस पवित्र और गौरवशाली अवसर पर शिविर में एक हवन भी आयोजित किया जाएगा. यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने पश्चिमी देशों में युवाओं में सामान्य रूप से आध्यात्मिकता और विशेष रूप से हिंदू धर्म के प्रति कोई झुकाव देखा है तो उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से एक स्पष्ट झुकाव है. न केवल हिंदू परिवारों की दूसरी और तीसरी पीढ़ी, बल्कि विदेशी नागरिक बहुत सारे प्रश्न पूछते हैं. वे सभी रामायण और सनातन धर्म के विभिन्न पहलुओं को समझना चाहते हैं. यह पूछे जाने पर कि वह भारत में सनातन धर्म पर नकारात्मक टिप्पणियों को कैसे देखती हैं तो उन्होंने कहा कि हम सभी के शरीर में सकारात्मक और नकारात्मक कंपन होते हैं. हमें एक सफल और सकारात्मक जीवन जीने के लिए उन्हें संतुलित करने की आवश्यकता है. लोगों की नकारात्मक ऊर्जा, नकारात्मक टिप्पणियां करना उनकी सकारात्मक ऊर्जा पर हावी होता है. जब हम किसी मंदिर में जाते हैं तो हम अपनी सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा को संतुलित करने के लिए जाते हैं. लोग बुरे नहीं हैं लेकिन उनके पास ज्ञान की कमी है. मैं उन्हें खुद पर काम करने और जीवन में सकारात्मक रहने की सलाह दूंगी. इससे उन्हें बहुत मदद मिलेगी और हम सभी को भी मदद मिलेगी.

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यहां राम नाम बैंक के बारे में

बता दें कि राम नाम बैंक एक आध्यात्मिक बैंक है जहां भक्त भगवान राम का नाम लिखकर पुस्तिकाएं जमा करते हैं. यह एक ऐसा बैंक है जिसके पास न तो एटीएम है और न ही चेक बुक. इसकी एकमात्र ‘मुद्रा’ भगवान राम हैं. अध्यात्म क्षेत्र से जुड़े आशुतोष वार्ष्णेय, जो बैंक के दैनिक मामलों का प्रबंधन करते हैं, अपने दादा की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं जिन्होंने 20वीं शताब्दी की शुरुआत में इस संगठन की स्थापना की थी. वार्ष्णेय ने कहा कि यह बैंक मेरे दादा ईश्वर चंद्र द्वारा शुरू किया गया था, जो एक व्यापारी थे. अब विभिन्न आयु समूहों और धर्मों के एक लाख से अधिक खाताधारक हैं. यह एक सामाजिक संगठन, राम नाम सेवा संस्थान के तहत चलता है और नौ कुंभ देख चुका है. उन्‍होंने कहा कि बैंक का कोई मौद्रिक लेन-देन नहीं है. इसके सदस्यों के पास 30 पृष्ठों की 108 कॉलम वाली एक पुस्तिका है जिसमें वे प्रतिदिन 108 बार ‘राम नाम’ लिखते हैं. पूरा होने के बाद पुस्तिका व्यक्ति के खाते में जमा कर दी जाती है. वार्ष्णेय ने कहा कि भगवान का नाम लाल स्याही से लिखना चाहिए क्योंकि यह प्रेम का रंग है.

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