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Republic Day: उन 15 महिलाओं के बारें में जानते हैं आप? जिन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में दिया था योगदान

भारत में गणतंत्र दिवस की तैयारी चल रही है. इस साल देश अपना 75वीं गणतंत्र दिवस मनाएगा. गणतंत्र दिवस के मौके पर जानिए उन महिलाओं के बारे में, जिन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में अहम भूमिका निभायी थी. आइये जानते हैं 15 महिलाओं के योगदान के बारे में...

Constitution Of India: भारत की आजादी से पहले देश के लिए एक संविधान बनाने की योजना पर काम शुरू हुआ था और संविधान सभा का गठन किया गया था. बता दें कि छह दिसंबर 1946 को संविधान सभा का गठन किया गया था, जो भारत की आजादी के बाद पूरी तरह स्वतंत्र हो गया और इसने भारत के संविधान का निर्माण किया था. संविधान सभा ने दो वर्ष, 11 महीने और 18 दिन में कुल 114 दिन बैठक की. इन बैठकों के बाद भारत का संविधान तैयार हुआ और 26 जनवरी 1950 को यह पूरे देश में लागू हो गया. संविधान सभा के सदस्यों की संख्या शुरुआत में 389 थी जिसमें 15 महिलाएं भी शामिल थीं, जो काफी सशक्त थीं और जिन्होंने देश का संविधान गढ़ने में अहम भूमिका निभायी थी. इन 15 महिलाओं में से कुछ महिलाओं को ही जनता जानती है, बाकी महिलाएं गुमनामी के अंधेरे में खो गयी हैं. आइए जानते हैं गणतंत्र दिवस के मौके पर उन महान महिलाओं को जिन्होंने महिला अधिकारों की वकालत संविधान सभा में की थी.

अम्मू स्वामीनाथन

अम्मू एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी. साथ ही वे संविधान सभा की सदस्य थी. अम्मू का जन्म केरल के पालघाट जिले में हुआ था. उनके माता-पिता नायर समुदाय से थे. अम्मू की शादी 20 साल बड़े सुब्बारामा स्वामीनाथन से हुई थी. स्वामीनाथन ने अम्मू की शिक्षा पर बहुत जोर दिया था और उनकी प्रतिभा को निखरने का पूरा अवसर दिया गया था. 1952 में वे राज्यसभा की सदस्य चुनी गयीं और विभिन्न संस्थाओं से भी जुड़ी रहीं. उन्हें 1975 में ‘मदर ऑफ दी ईयर’ चुना गया था.

विजया लक्ष्मी पंडित

विजया लक्ष्मी पंडित पहली महिला थीं, जिन्हें भारत में कैबिनेट मंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. वे भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरु की बहन थीं. उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था. वह संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष बनने वाली विश्व की पहली महिला थीं. वे राजदूत और राज्यपाल के पद पर भी रहीं थी.

सरोजिनी नायडू

भारत की नेत्रियों में सरोजिनी नायडू सबसे सशक्त थीं और उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज भी करायी. सरोजिनी का जन्म हैदराबाद में 13 फरवरी 1879 को हुआ था. सरोजिनी एकमात्र ऐसी महिला हैं, जिन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त है. उन्होंने किंग्स कॉलेज (लंदन) और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी. स्वतंत्रता आंदोलन में उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया और कई बार जेल भी गयीं. सरोजिनी नायडू एक सशक्त कवयित्री भी थीं.

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राजकुमारी अमृत कौर

उत्तर प्रदेश से राजकुमारी अमृत कौर भी संविधान सभा की सदस्य थीं. उनका संबंध कपूरथला के राघराने से था. उन्होंने स्कूली शिक्षा इंग्लैंड के शेरबोर्न स्कूल फॉर गर्ल्स से ली थी. उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और उनके स्वास्थ्य को लेकर काफी काम किया. उन्होंने टीवी और कुष्ठ रोग को रोकने के लिए रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना करवाई थी. वे रेड क्रॉस सोसाइटी से भी जुड़ी रही थीं. देश सेवा के लिए उन्हें ‘राजकुमारी’ की उपाधि दी गयी थी.

लीला रॉय

लीला रॉय संविधान सभा में असम का प्रतिनिधित्व करती थीं. उनका जन्म अक्टूबर 1900 में असम के गोलपाड़ा में हुआ था. लीला ने 1921 में बेथ्यून कॉलेज से स्नातक किया था. उनके पिता डिप्टी मजिस्ट्रेट थे और राष्ट्रवादी आंदोलन समर्थक थे. लीला रॉय ने समाज में महिला अधिकारों के लिए काफी संघर्ष किया था और वे कई संगठनों से भी जुड़ी रहीं थीं. वर्ष 1937 में लीला कांग्रेस में शामिल हो गयीं थीं और बंगाल प्रांतीय कांग्रेस महिला संगठन की स्थापना की थी. वह सुभाष चंद्र बोस के साथ भी काम कर रही थीं. देश छोड़ने से पहले नेताजी ने लीला रॉय और उनके पति को पार्टी का पूरा प्रभार दे दिया था.

दुर्गाबाई देशमुख

दुर्गाबाई देशमुख बचपन से ही आंदोलनों में सक्रिय हो गयी थीं. मात्र 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने गैर सहभागिता आंदोलन में भाग लिया था. उनका जन्म 15 जुलाई 1909 को आंध्रप्रदेश के राजमुंदरी में हुआ था. उन्होंने मई 1930 में मद्रास में नमक सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया था. 1936 में उन्होंने आंध्र महिला सभा की स्थापना की थी, जो आगे जाकर बहुत बड़ी संस्था बन गयी. उन्होंने महिला शिक्षा और अधिकार पर काफी काम किया. वह संसद भी पहुंचीं और योजना आयोग की सदस्य भी रही थीं.

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मालती चौधरी

बंगाल की महिलाएं प्रारंभ से ही सशक्त हैं. मालती चौधरी भी उनमें से एक थीं. उनका जन्म साल 1904 में पूर्वी बंगाल के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था. उन्होंने शांति-निकेतन से शिक्षा प्राप्त की थी. उनका विवाह नाबकृष्ण चौधरी से विवाह हुआ था, जो ओडिशा के मुख्यमंत्री भी बने थे. नमक सत्याग्रह के दौरान मालती चौधरी और उनके पति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संपर्क में आये और स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया.

रेनुका रे

रेनुका रे ने लंदन स्कूल अॅाफ इकोनोमिक्स से बीए किया था. उन्होंने 1934 में एआईडब्ल्यूसी के कानूनी सचिव के रूप में काम किया था और भारतीय महिलाओं की कानून को लेकर जो अज्ञानता थी उसपर एक दस्तावेज भी लिखा था. उनके पिता सतीश चंद्र मुखर्जी आईसीएस अधिकारी थे. भारत में महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार के लिए उन्होंने काफी संघर्ष भी किया था. 1943 से 1946 तक वह केंद्रीय विधान सभा की सदस्य रहीं और उसके बाद वह संविधान सभा की सदस्य बनी. 1952 से 1957 तक उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा में राहत और पुनर्वास के मंत्री के रूप में कार्य किया. वे मालदा लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधत्व भी किया.

एनी मास्कारेन

एनी मास्कारेन संविधान सभा में केरल का प्रतिनिधित्व कर रही थीं. वे एक कैथोलिक परिवार से थीं. वे कांग्रेस के राज्यकारिणी की सदस्य थीं. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था. राजनीतिक रूप से वह काफी सक्रिय थीं जिसके कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था.

सुचेता कृपलानी

सुचेता कृपलानी ने भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने 1940 में कांग्रेस पार्टी के महिला विंग की स्थापना की थी. आजादी के बाद वह सांसद बनी उत्तर प्रदेश में कई विभागों की मंत्री भी रहीं. सुचेता कृपलानी भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री भी बनी थीं.

पूर्णिमा बनर्जी

पूर्णिमा बनर्जी उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद की रहने वाली थीं. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी की सचिव थी. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी. उन्होंने ट्रेड यूनियन के साथ भी काम किया था.

कमला चौधरी

कमला चौधरी उत्तर प्रदेश की रहने वाली थीं उनका जन्म लखनऊ के एक समृद्ध परिवार में हुआ था. वर्ष 1930 में वे गांधी जी के संपर्क में आयीं और नागरिक अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया. वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की उपाध्यक्ष भी रही थीं. 70 के दशक में वे लोकसभा के सदस्य के रूप में चुनी गयी थी. कमला एक प्रसिद्ध लेखिका थीं.

हंसा जिवराज मेहता

हंसा संविधान सभा में पश्चिमी राज्य गुजरात का प्रतिनिधित्व कर रहीं थीं. हंसा का जन्म 3 जुलाई 1897 को बड़ौदा में हुआ था. हंसा ने इंग्लैंड से पत्रकारिता और समाजशास्त्र की पढ़ाई की थी. एक समाज सुधारक के साथ ही हंसा शिक्षिका और लेखिका भी थीं. उन्होंने बच्चों के लिए कई किताबें लिखीं और कई कहानियों का अंग्रेजी से गुजराती में अनुवाद भी किया. वर्ष 1945-46 में हंसा को अखिल भारतीय महिला सम्मेलन का अध्यक्ष बनाया गया था. हैदराबाद में आयोजित अखिल भारतीय महिला सम्मेलन में उन्होंने महिलाओं के अधिकारों का चार्टर प्रस्तावित किया था.

बेगम एजाज रसूल

बेगम एजाज रसूल मुस्लिम समाज की एकमात्र महिला थीं, जो संविधान सभा का हिस्सा थीं. एजाज रसूल का जन्म रसूल मालरकोटला के राज परिवार में हुआ था. साल 1950 में जब भारत में मुस्लिम लीग भंग हो गया, तो वे कांग्रेस में शामिल हो गयीं. 1952 में वह राज्यसभा के लिए चुनी गयी थी और साल 1969 से साल 1990 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य रही. वर्ष 1969 से 1971 के बीच वह सामाजिक कल्याण और अल्पसंख्यक मंत्री भी रहीं. उन्हें वर्ष 2000 पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.

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दक्षिणानी वेलायुद्ध

संविधान सभा की सदस्य दक्षिणानी वेलायुद्ध का जिक्र बहुत आवश्यक है क्योंकि वे इस सभा की एक मात्र दलित महिला थीं. दक्षिणानी वेलायुद्ध पुलया समुदाय से थी और शिक्षित होने वाले लोगों की पहली पीढ़ी में से थी. उनके बारे में यह कहा जाता है कि वह अपने समुदाय की पहली ऐसी महिला थीं जिन्होंने पूरे कपड़े पहने. वे भारत की पहली अनुसूचित जाति की महिला थीं जिन्होंने स्नातक किया था. वे विज्ञान स्नातक, थीं और कोचीन विधान परिषद की सदस्य नामित हुईं थीं. दक्षिणानी का जन्म 1912 में एर्नाकुलम जिले के कन्ननूर तालुका के मुलवुकद गांव में हुआ था. उन्होंने संविधान सभा में जाति आधारित भेदभाव को मिटाने के लिए जोरदार तर्क दिये थे.

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