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कर्पूरी ठाकुर की पोती को है दादा के संघर्ष पर गर्व, बोली- उस दौर में गरीब का पढ़ना था मुश्किल

कर्पूरी के गांव में लोग खुशी से झूम उठे. कर्पूरी ठाकुर का परिवार भावुक हो गया. छोटे बेटे डॉक्टर वीरेंद्र कुमार ठाकुर की आंखे झलक उठीं तो बहू ससुर को याद कर खिस्से सुनाने लगी. इस फैसले को लेकर कर्पूरी ठाकुर की पोती डॉ. जागृति ने कहा कि मुझे उनके जीवन संघर्ष पर बहुत गर्व महसूस हो रहा है.

पटना. मंगलवार की शाम अचानक जैसे ही इस बात की घोषणा हुई कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी नेता स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न की उपाधि से नवाजा गया है, पूरे बिहार में खुशी की लहर फैल गई. केंद्र सरकार के इस फैसले से आम लोगों से लेकर राजनीतिक गलियारे तक में जश्न का माहौल देखने को मिला, लेकिन इन सबके बीच कर्पूरी ठाकुर का गांव और खासकर उनका परिवार इस घोषणा के बाद भाव विभोर हो गया. केंद्र सरकार के फैसले पर कर्पूरी ठाकुर के बेटे जेडीयू सांसद रामनाथ ठाकुर ने कहा कि यह 34 साल की तपस्या का फल है. उन्होंने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी थी.

बेटे की आंखें झलकी

कर्पूरी के गांव में लोग खुशी से झूम उठे. कर्पूरी ठाकुर का परिवार भावुक हो गया. छोटे बेटे डॉक्टर वीरेंद्र कुमार ठाकुर की आंखे झलक उठीं तो बहू ससुर को याद कर खिस्से सुनाने लगी. इस फैसले को लेकर स्थानीय पत्रकारों से बात करते हुए कर्पूरी ठाकुर की पोती डॉ. जागृति ने कहा कि मैंने दादा को नहीं देखा. मेरे पास उनकी कोई निशानी नहीं है. लेकिन मैंने घर और बाहर दोनों जगहों पर दादाजी के बारे में बहुत सुना पढ़ा है. मुझे उनके जीवन संघर्ष पर बहुत गर्व महसूस हो रहा है.

पोती को है दादा के संघर्ष पर गर्व

डॉ. जागृति ने कहा कि दादा जी को भारत रत्न मिलने पर उन्हें बहुत अच्छा लग रहा है. उन्होंने कहा कि वो बहुत ही गौरवान्वित महसूस कर रही हैं कि वो इस परिवार से ताल्लुक रखती हैं. डॉ. जागृति ने कहा कि मैं उनकी पोती हूं, यह मेरा सबसे बड़ा परिचय है. हमने अपने दादाजी को देखा नहीं है. माता-पिता ने हमें उनके बारे में बताया है कि वे जन-जन के नायक थे। वे गरीबों, असहायों के थे. उनकी बहुत सारी कहानियां मैंने सुनी और पढ़ी हैं. उनका जीवन संघर्ष हमसब के लिए प्रेरणादायक है.

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दादा जी के साथ मेरी कोई यादें नहीं

डॉ. जागृति ने कहा कि दादा जी के साथ मेरी कोई यादें नहीं हैं, लेकिन उनके विचार हमारे मार्गदर्शक है. घर में सब बताते हैं कि पहले घर में बहुत गरीबी थी. परिवार में लोग बहुत पढ़े लिखे नहीं थे. उस जमाने में गरीबों के बच्चे पढ़ नहीं पाते थे. अंग्रेजी में कमजोर होते थे, इस वजह से वे फेल हो जाते थे. उन बच्चों के लिए दादाजी ने काम किया. उनको आगे लाया. उनमें आत्मविश्वास जगाया. दादाजी ने हमेशा शिक्षा को महत्व दिया. वो चाहते थे कि हर गरीब का बच्चा पढ़े और बेहतर जीवन जीये.

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