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झारखंड : हाइकोर्ट से मिली मियाद खत्म, नहीं तय हो सकी नगर निकाय चुनाव की तारीख

इसी साल चार जनवरी को झारखंड हाइकोर्ट ने राज्य में नगर निकायों के चुनाव की तारीखों का ऐलान तीन हफ्ते के भीतर करने का आदेश दिया था. बावजूद इसके न्यायालय के आदेश का पालन राज्य सरकार के लिए अब तक संभव नहीं हो सका है.

हाइकोर्ट द्वारा झारखंड में निकाय चुनाव की तारीख घोषित करने के लिए दी गयी तीन सप्ताह की मियाद 25 जनवरी को समाप्त हो गयी. हालांकि, अब तक राज्य सरकार ने चुनाव कराने से संबंधित कोई फैसला नहीं किया. राज्य सरकार न्यायालय के फैसले के विरुद्ध अपील में भी नहीं गयी है. इसी वर्ष चार जनवरी को झारखंड हाइकोर्ट ने राज्य में नगर निकायों के चुनाव की तारीखों का ऐलान तीन हफ्ते के भीतर करने का आदेश दिया था. कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि चुनाव नहीं करा राज्य सरकार ने संवैधानिक और स्थानिक ब्रेकडाउन किया है. बावजूद इसके न्यायालय के आदेश का पालन राज्य सरकार के लिए अब तक संभव नहीं हो सका है.

पिछड़ा वर्ग आयोग शुरू करेगा ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया

सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में पारित आदेश के मुताबिक ओबीसी आरक्षण का निर्धारण ट्रिपल टेस्ट के माध्यम से किया जाना है. राज्य सरकार ट्रिपल टेस्ट नहीं कराने पर ओबीसी आरक्षण के बगैर निकाय चुनाव कराने का फैसला ले सकती है. परंतु, ऐसा कर राज्य सरकार ओबीसी वर्ग को नाराज नहीं करना चाहती है. पिछड़ा वर्ग आयोग के माध्यम से ट्रिपल टेस्ट कराने का निर्णय पूर्व में ही लिया जा चुका है. दो दिन पहले हुई कैबिनेट की बैठक में पूर्व विधायक योगेंद्र प्रसाद का मनोनयन पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के रूप में कर लिया गया है. अब जल्द ही राज्य में ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया शुरू की जायेगी.

फंस गया है 15वें वित्त आयोग से मिलनेवाला 1600 करोड़ का अनुदान

राज्य में नगर निकाय चुनाव में विलंब का खामियाजा विकास कार्यों पर पड़ रहा है. नगर निकाय चुनाव नहीं होने की वजह से 15वें वित्त आयोग की ओर से मिलनेवाले अनुदान से राज्य को वंचित होना पड़ रहा है. 15वें वित्त आयोग से झारखंड सरकार को लगभग 1600 करोड़ रुपये का अनुदान फंस गया है. यह राशि राज्य के शहरों के विकास व नागरिक सुविधाएं विकसित करने के लिए राज्य को मिलनी है. मालूम हो कि राज्य के 13 नगर निकायों में तीन वर्षों से अधिक समय से और शेष निकायों में गत साल अप्रैल महीने से नगर निकाय चुनाव लंबित है. वर्तमान में नगर निकायों का संचालन जनप्रतिनिधियों की जगह प्रशासनिक पदाधिकारियों के माध्यम से कराया जा रहा है. जिससे निकाय प्रशासन में जनता की कोई भागीदारी सुनिश्चित नहीं हो पा रही है.

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