करीब साढ़े पांच महीने पहले बेंगलुरु में इंडिया गठबंधन की बैठक में घटक दलों के बीच आम सहमति नहीं बन पायी और वहीं से बिहार के दो बड़े दल जदयू और राजद की दूरियां बढ़ने लगी थीं. जदयू की चाहत 23 जून, 2023 को पटना में हुई पहली बैठक से ही तेजी से सीटों के बंटवारा होने, संयोजक तय होने और साझा चुनाव प्रचार किये जाने की थी. लेकिन, कांग्रेस और उसके मित्र दलों की गैर इच्छा और ढ़ीलापन से बात बिगड़ती गयी. बेंगलुरु के बाद 31 अगस्त और एक सितंबर को मुंबई में इंडिया की बैठक हुई. यहां भी कोई बड़ा निर्णय नहीं हो पाया. मुख्यमंत्री कई बार कह चुके थे कि उन्हें किसी पद की इच्छा नहीं है. इसके बाद भी कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ.
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जदयू को ऐसा लगने लगा था कि कांग्रेस के इस टालू रवैये के पीछे कुछ दूसरे मित्र दल काम कर रहे हैं. जदयू के लोगों ने खुल कर तो कुछ नहीं कहा, लेकिन शक की सूई राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद की ओर जा रही थी. हालांकि, लालू प्रसाद ने खुल कर कभी किसी का विरोध नहीं किया, लेकिन रही सही कसर दिल्ली की बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को प्रधानमंत्री का दावेदार बताकर पूरी कर दी.
कई दलों ने ममता के प्रस्ताव को समर्थन नहीं दिया, लेकिन जदयू को यह समझते देर नहीं लगी कि उनकी भावनाओं की इंडिया गठबंधन तवज्जो नहीं दे रहा. पार्टी के राष्ट्रीय सलाहकार केसी त्यागी ने खुलकर इसके लिए कांग्रेस पर हमला बोला. जदयू को यह प्रतीत हो रहा था कि इंडिया के बीच सीटों के बंटवारे पर औपचारिक फैसले के बाद ही राहुल गांधी अपनी यात्रा आरंभ करें. लेकिन, कांग्रेस को यह गवारा नहीं हुआ. राहुल बिना किसी बात पर फैसला हुए ही अपनी यात्रा पर निकल पड़े. त्यागी का यह कथन कि कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी को भारत जोड़ो न्याय यात्रा की शुरुआत करने के पहले इन बातों पर सोचना चाहिए था, इसकी पुष्टि करता है.
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इसके बाद नीतीश कुमार का इंडिया से बाहर आकर एनडीए के साथ जाने का फैसला लोकसभा चुनाव के लिए दूरगामी प्रभाव वाला साबित होगा. यह गठबंधन पूर्व से टेस्टेड है. 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को 40 में 39 सीटें मिली थीं. सीट बंटवारे को लेकर एकबार फिर से एनडीए के भीतर फाॅर्मूला बदल सकता है. इसमें जदयू व भाजपा दो बड़े दल होंगे. लोजपा, उपेंद्र कुशवाहा और हम भी हिस्सेदार होग