बीरभूम, मुकेश तिवारी : पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में एक और शख्स को चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजा जायेगा. कांथा सिलाई करनेवाली तकदीरा बेगम (Takdeera begum) को पद्मश्री के लिए चुना गया है. बोलपुर के जामबनी की रहनेवाली तकदीरा बेगम कांथा सिलाई में माहिर हैं. इस हुनर को देखते हुए उन्हें केंद्र सरकार ने पद्मश्री देने का फैसला किया है. इसका पता चलते ही राज्य के सूक्ष्म, लघु व मध्यम और वस्त्र मामलों के मंत्री चंद्रनाथ सिन्हा ने तकदीरा बेगम के घर जाकर उन्हें सम्मानित किया. गुरुवार को कपड़ा मंत्रालय से फोन कर उन्हें यह खुशखबरी दी गयी. पहले तो वह हैरान हुईं. हालांकि, अपने 30 साल के काम को केंद्र से मान्यता पाकर उनकी आंखें नम हो गयीं. अल्पसंख्यक परिवार की इस महिला ने कांथा सिलाई के अपने हुनर की बदौलत खुद को विकसित किया है.
कांथा सिलाई से हुई कमाई से उन्होंने अपनी तीन बेटियां ब्याही हैं. उनके वालिद का मूल घर श्रीकृष्णपुर था. बाद में उनके वालिद जयकृष्णपुर में आकर रहने लगे. 10वीं तक तकदीरा की पढ़ाई आउसग्राम के भेदिया गर्ल्स स्कूल में हुई. पांचवीं कक्षा में जब वह थीं, तो सिलाई-कढ़ाई के काम की ओर आकर्षित हुईं. फिर मां के कांथा सिलाई कार्य ने उन्हें पारंपरिक शिक्षा से परे सुई के काम की ओर खींचा. तकदीरा ने कई युवतियों के आत्मनिर्भर बनने के सपने को पूरा किया है. उन्होंने पुराने कांथा सिलाई को आधुनिक डिजाइन में रूपायित किया. इस परिवर्तन पर उन्हें राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मान मिले हैं. तकदीरा बेगम के मुताबिक उन्हें 1995 में नेशनल मेरिट अवॉर्ड, 1996 में नेशनल अवॉर्ड और 2009 में शिल्पगुरु अवॉर्ड मिले हैं.
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अल्पसंख्यक रूढ़िवादी परिवार की लड़कियां भी अब घर से बाहर निकल कर आत्मनिर्भर हो रही हैं. तकदीरा भी स्वभाव से धार्मिक हैं. वह तीन बार हज कर चुकी हैं. उन्होंने कहा, चेहरे पर घूंघट डाल कर काम करने में उन्हें कभी दिक्कत नहीं हुई. वह देश के कई स्थानों पर व्यापार मेले में भी गयी हैं. कभी बखेड़ा नहीं हुआ. किसी भी अधिकारी ने उनसे कभी चेहरे का घूंघट(बुर्का) हटाने को नहीं कहा. तकदीरा बेगम को पद्मश्री मिलने की खबर से इलाके के लोगों में खुशी है. जिले में रतन कहार, विश्वभारती की पूर्व छात्रा रिजवाना चौधरी बान्या के साथ तकदीरा बेगम को पद्मश्री सम्मान मिलने पर जिलेभर में उत्साह है.