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समाचार पत्रों की यात्रा के उतार-चढ़ाव और संघर्ष पर वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री बलबीर दत्त से खास बातचीत

भारत में समाचार पत्रों का इतिहास लगभग 250 वर्ष का है. 1780 में ‘बंगाल गजट’ से शुरू हुई यात्रा स्वर्णिम रही है. आज लगभग एक लाख अखबार देश में रजिस्टर्ड हैं. समाचार पत्रों ने अपनी यात्रा के कई उतार-चढ़ाव और संघर्ष देखे हैं. इसी संघर्ष की बदौलत समाचार पत्रों ने अपनी विश्वसनीयता हासिल की है.

भारत में समाचार पत्रों का इतिहास लगभग 250 वर्ष का है. 1780 में ‘बंगाल गजट’ से शुरू हुई यात्रा स्वर्णिम रही है. आज लगभग एक लाख अखबार देश में रजिस्टर्ड हैं. समाचार पत्रों ने अपनी यात्रा के कई उतार-चढ़ाव और संघर्ष देखे हैं. इसी संघर्ष की बदौलत समाचार पत्रों ने अपनी विश्वसनीयता हासिल की है. आज इस बदलते दौर में जब कई तरह के तकनीकी बदलाव हो रहे हैं और मीडिया में नए-नए आयाम जुड़ रहे हैं, ऐसे में भी समाचार पत्रों की साख बरकरार है. सुबह की शुरुआत के साथ अगर इंसान किसी चीज की ओर हाथ बढ़ाता है, तो वो है अखबार. उसके साथ गरमा-गरम चाय. हिंदी पत्रकारिता में बलबीर दत्त एक बड़ा नाम हैं. पिछले छह दशकों से इन्होंने अपनी लेखनी से हिंदी पत्रकारिता को सींचा है. झारखंड की राजधानी रांची में 1963 से रांची एक्सप्रेस में संपादक की भूमिका निभाई, पद्मश्री सहित कई सम्मानों से बलबीर दत्त नवाजे गए हैं. साथ ही उन्होंने दर्जनों पुस्तकें भी लिखी हैं. आज भारतीय समाचार पत्र दिवस पर इस विषय पर हमने पद्मश्री बलबीर दत्त से बातचीत की. पूरा वीडियो आप भी देखें.

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