देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री और भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न दिया जाएगा. इस बात की जानकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया के माध्यम से दी. जिसके बाद बिहार भाजपा के कार्यालयों में जश्न का माहौल है. वहीं, लोगों को एक बार फिर से 22 अक्टूबर 1990 का वो दिन याद आ गया. जब देर रात समस्तीपुर सर्किट हाउस से लालू प्रसाद यादव की सरकार द्वारा उन्हें गिरफ्तार किया गया था. जिसके बाद भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा खूब हंगामा भी किया गया था.
तारीख थी 22 अक्टूबर 1990 और जगह थी 1 अणे मार्ग, पटना. इस बंगले में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव रहा करते थे. सुबह हो चुकी थी और एक-एक करके कई सफेद एंबेसेडर कारें वहां पहुंचीं. कुछ देर बाद पुलिस मुख्यालय में पदस्थापित डीआइजी (मुख्यालय) रामेश्वर उरांव और वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राजकुमार सिंह (तत्कालीन निबंधक-सहकारिता) को भी बुलाया गया. सात महीने पहले ही लालू यादव ने बिहार की सत्ता संभाली थी. विश्वनाथ प्रताप सिंह भारत के प्रधान मंत्री थे. विश्वनाथ प्रताप सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे. केंद्र में नेशनल फ्रंट की सरकार थी. उसे भारतीय जनता पार्टी का समर्थन हासिल था. लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी के अध्यक्ष थे और अटल बिहारी वाजपेयी लोकसभा में बीजेपी संसदीय दल के नेता.
आडवाणी जी ने निकाली थी रथ यात्रा
तब बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा निकाली थी. 25 सितंबर से शुरू हुई रथयात्रा 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचने वाली थी. लालू यादव ने इसी रथयात्रा को रोकने की योजना बनाई थी. इसके लिए उन्हें लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करना था. पटना के मुख्यमंत्री आवास में इसी के मद्देनजर हाई-लेवल मीटिंग चल रही थी. डीआइजी रामेश्वर उरांव और आईएएस आरके सिंह इसी वजह से वहां तलब किए गए. अंदर अधिकारियों के साथ बैठे मुख्यमंत्री लालू यादव उनका इंतजार कर रहे थे.
गिरफ़्तारी की योजना रखी गई थी गोपनीय
जब 23 अक्टूबर को आडवाणी की रथ समस्तीपुर से गुजर रही थी, उस वक्त तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव उनकी गिरफ्तारी की व्यूह रचना तैयार कर चुके थे. उन्होंने सारी योजना रामेश्वर उरांव, राजकुमार सिंह सहित सीएम आवास पर मौजूद लोगों को बताई. अधिकारियों को कहा गया कि बिना हिंसा के काम को पूरा करना है. आडवाणी जी को समस्तीपुर में गिरफ्तार करने के बाद दुमका ले जाना है और वहां से मसानजोर. यह योजना गोपनीय रखी गई थी. इसकी जानकारी सिर्फ उन्हीं अफसरों को दी गई, जिन्हें इस आपरेशन के लिए चुना गया था.
शाम होने के बाद रामेश्वर उरांव और आरके सिंह को समस्तीपुर निकलना था. चीफ पायलट अविनाश बाबू को लालू जी ने खुद अपने विश्वास में लिया था. पटना एयरपोर्ट पर रात में उड़ान के लिए जरूरी लाइटिंग का इंतजाम किया गया क्योंकि वहां रात में उड़ान की व्यवस्था नहीं थी. देर शाम हेलिकाप्टर ने उड़ान भरी. समस्तीपुर में सर्किट हाउस के बगल में स्थित पटेल मैदान में हेलिकाप्टर की लैंडिंग हुई.
गिरफ़्तारी से पहले टेलिफ़ोन एक्सजेंच किया गया था डाउन
गिरफ्तारी से पहले आधी रात में अधिकारियों की बैठक हुई, टेलिफ़ोन एक्सजेंच को डाउन कराया गया ताकि कोई फ़ोन नहीं कर सके. रात धीरे-धीरे बीत रही थी. आपरेशन लीक नहीं हो इसके लिए सतर्कता बरती जा रही थी. इधर आडवाणी जी रात ढाई बजे सर्किट हाउस पहुंच कर थाके होने के कारण सो चुके थे.
आडवाणी जी की गिरफ़्तारी
रामेश्वर उरांव और राजकुमार सिंह ने 23 अक्टूबर की सुबह पौने पांच बजे आडवाणी जी के कमरे का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने खुद ही दरवाजा खोला. उन्होंने पूछा आप लोग कौन हैं. सभी ने अपना परिचय देने के बाद उनकी गिरफ़्तारी के वारंट की बात बताई. आडवाणी जी ने पंद्रह मिनट का समय मांगा, ताकि वे तैयार हो सकें. अधिकारियों ने उनसे कहा कि अगर आप किसी को साथ ले चलना चाहें, तो ले चल सकते हैं. हमें सरकार से निर्देश मिला था कि आडवाणी जी को यह सुविधा देनी है. हमारे प्रस्ताव पर आडवाणी जी ने प्रमोद महाजन को साथ ले जाने की इच्छा ज़ाहिर की. इसके बाद उनकी विधिवत गिरफ़्तारी हुई.
मसानजोर गेस्ट हाउस में रखा गया था आडवाणी जी को
इसके बाद आडवाणी जी और प्रमोद महाजन को एक गाड़ी से पटेल मैदान लेकर जाया गया. वहां हेलिकाप्टर इंतजार में खड़ा था. हेलिकॉप्टर ने दुमका की उड़ान भरी. दुमका डीसी को पहले ही सूचना दी गई थी. करीब एक घंटे बाद सभी दुमका पहुंचे. वहां से आडवाणी जी को गाड़ी से मसानजोर गेस्ट हाउस ले जाया गया.
बड़ी चुनौती थी आडवाणी की गिरफ़्तारी
गिरफ़्तारी से पहले लालकृष्ण आडवाणी धनबाद, रांची, हजारीबाग, नवादा होते हुए पटना पहुंचे थे. गांधी मैदान में उन्हें सुनने के लिए करीब तीन लाख लोगों की भीड़ थी. लोग जय श्रीराम और सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे जैसे नारे लगा रहे थे. उस मीटिंग के बाद आडवाणी जी समस्तीपुर पहुंचे थे. वहां भी उन्होंने लोगों को संबोधित किया. जय श्रीराम के नारे लगे. उनके साथ करीब 50 हज़ार लोगों की भीड़ थी, जो समस्तीपुर में कहीं-कहीं रुकी थी. ऐसे में उनकी गिरफ़्तार बड़ी चुनौती थी. हिंसा भड़कने का ख़तरा था लेकिन आपरेशन की गोपनीयता के कारण बगैर किसी हिंसा के उन्हें गिरफ़्तार किया गया था.
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