जमीन घोटाला मामले में हेमंत सोरेन पर ईडी का सिकंजा कसे जाने से सोरेन ने झारखंड के सीएम पद से 31 जनवरी को इस्तीफा दे दिया. इसके बाद चंपाई सोरेन को झारखंड का मुख्यमंत्री बनाया गया. मुख्यमंत्री बनने के बाद चंपाई सोरेन ने सोमवार को विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश किया जिसमें वो पास हो गए. इन तमाम उथल पुथल के बीच लोग जानना चाहते हैं कि आखिर विश्वास प्रस्ताव क्या होता है. इसके इतर अविश्वास प्रस्ताव क्या है, ये भी लोग जानना चाहते हैं. तो आइये हम बताते हैं कि आखिर ये होता क्या है और कब सरकार को इसे पेश करना पड़ता है. इस बार को मिलाकर झारखंड में 11 वीं बार फ्लोर टेस्ट हुआ जिसमें सरकार ने 9 बार अपना बहुमत साबित किया है.
विश्वास प्रस्ताव या मत अगर पास नहीं हो पाता है तो सरकार गिर जाती है. इसके बाद प्रधानमंत्री तथा मुख्यमंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना होता है. केंद्र सरकार की बात हो तो विश्वास मत या प्रस्ताव प्रधानमंत्री के द्वारा लोकसभा में पेश किया जाता है. राज्य सरकार में विश्वास मत विधान सभा में मुख्यमंत्री के द्वारा पेश किया जाता है. विश्वास प्रस्ताव को दो परिस्थितियों में लाया जाता है. पहला तब जब चुनाव के बाद नयी सरकार का गठन होने के समय बहुमत परीक्षण होता है. दूसरी परिस्थिति तब होती है जब सहयोगी दल अपना समर्थन वापस लेने की घोषणा कर देते है, उस समय राष्ट्रपति या राज्य पाल के द्वारा बहुमत साबित करने के लिए कहा जाता है. सरकार बहुमत साबित करने के लिए विश्वास मत या प्रस्ताव को पेश करती है.
अविश्वास प्रस्ताव विपक्षी दल के द्वारा पेश किया जाता है. विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव को पेश करके सरकार को गिराने का प्रयास तब करती है जब विपक्ष को यह अनुमान हो जाता है कि सरकार के सहयोगी दलों में किसी प्रकार की समस्या है. सबसे पहले इसे स्पीकर के सामने पेश किया जाता है. इसे पेश करने के बाद स्पीकर की अनुमति से मतदान होता है. अगर अविश्वास प्रस्ताव पास हो जाता है तो सरकार गिर जाती है.
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अविश्वास प्रस्ताव विपक्षी दल के द्वारा पेश किया जाता है तो वहीं विश्वास प्रस्ताव सरकार द्वारा पेश की जाती है.इन दोनों तरीकों से बहुमत को जांचा जाता है, चाहे लो पक्ष के पास हो या विपक्ष के पास हो.अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष द्वारा 6 महीने के अंतराल पर ही लाया जा सकता है जबकि विश्वास प्रस्ताव सरकार कभी भी ला सकती है.
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