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चीन और पाकिस्तान को छोड़ दें, तो अन्य दक्षिण एशियाई देशों के साथ भारत के संबंध लगातार बेहतर हुए हैं.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि देश की सुरक्षा नीति और विदेश नीति स्पष्ट है तथा भारत सभी देशों के साथ मित्रता का आकांक्षी है, पर सीमा और नागरिकों की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं हो सकता. उन्होंने यह भी रेखांकित किया है कि पहले विदेश नीति का दबाव सुरक्षा नीति पर रहता था, जिसके कारण आंतरिक सुरक्षा से संबंधित कई समस्याएं पैदा हुईं. भारत की नीतिगत स्पष्टता का सम्मान अन्य देशों ने भी किया है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण जी-20 के शिखर सम्मेलन में भारत की अध्यक्षता में संयुक्त घोषणा पर सभी सदस्यों का सहमत होना है. आज दुनिया दो खेमों में विभाजित है तथा अमेरिका तथा रूस एवं चीन के बीच शीत युद्ध चल रहा है. ऐसे वातावरण में घोषणा पर सहमति एक बड़ी उपलब्धि है. रूस-यूक्रेन युद्ध, इस्राइल-हमास संघर्ष, लाल सागर में तनाव जैसे भू-राजनीतिक टकरावों में सभी संबद्ध पक्षों ने भारत की राय को मान दिया है. एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत वैश्विक मंचों पर ग्लोबल साउथ के देशों का नेतृत्व कर रहा है तथा बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के लिए प्रयासरत है, वहीं चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश भारत के विरुद्ध आक्रामक रवैया अपनाये हुए हैं. विदेश मंत्री एस जयशंकर पहले कह चुके हैं कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जब तक अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति बहाल नहीं होगी, तब तक भारत और चीन के संबंध सामान्य नहीं हो सकते.

चीन ने पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के आंतरिक मामलों पर भी कई बार टिप्पणी की है. तनाव के बावजूद भारत दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों की बैठकों में भाग लेता रहा है. इससे इंगित होता है कि भारत संबंध सुधारने का पक्षधर है. अब यह चीन पर निर्भर करता है कि वह भारत के साथ कैसा संबंध रखना चाहता है. लंबे समय से पाकिस्तान की सरकार और सेना द्वारा वैसे आतंकी गिरोहों और सरगनाओं को पनाह व मदद मुहैया कराया जाता रहा है, जो भारत को अस्थिर करना तथा अलगाववाद को बढ़ावा देना चाहते हैं. ऐसे में पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने का कोई आधार नहीं है. फिर भी अपने पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान से संबंध सुधारने का पूरा प्रयास किया था. कुछ दिन पहले गृह मंत्री अमित शाह ने म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने की बात कही थी ताकि उधर से घुसपैठ को रोका जा सके. चीन और पाकिस्तान को छोड़ दें, तो अन्य दक्षिण एशियाई देशों के साथ भारत के संबंध लगातार बेहतर हुए हैं. विदेश और सुरक्षा नीति के सामंजस्य का ही परिणाम है कि जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर और वामपंथी उग्रवाद प्रभावित इलाकों में हिंसा में भारी कमी आयी है.

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