देवघर : सारठ प्रखंड क्षेत्र में रहने वाले लोगों के पेयजल से संबंधित समस्या होने पर उसका निदान नहीं होता है, यह कहना है कि यहां के लोगों का. ग्रामीण कहते हैं कि पेयजल एवं स्वच्छता विभाग का अवर प्रमंडल कार्यालय इस क्षेत्र में कागजों पर चल रहा है, जिसके कारण इस क्षेत्र के सैकड़ों गांवों में पेयजल की समस्या है. लोगों को पानी की इतनी समस्याएं झेलनी पड़ती है, जिसका दर्द प्रखंड क्षेत्र के निवासी ही जानते हैं. मिली जानकारी के अनुसार प्रखंड में पेयजल व स्वच्छता विभाग की ओर से जल जीवन मिशन के तहत करोड़ों की योजनाएं शुरू की गयीं हैं. हर घरों में नल से जल पहुंचाने की योजना पर भी लाखों-करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाया गया है. ग्रामीणों का कहना है कि विभागीय कार्यालय नहीं होने से न तो योजनाओं की मानिटरिंग हो पाती है और न ही योजनाओं में सही काम हो पाता है, जिस कारण इस क्षेत्र की अधिकतर योजनाएं ठप हैं. लोगों का आरोप है कि विभाग योजना लागू करने में सक्रियता से कार्य करने का दावा जरूर करता है. लेकिन विभाग के अधिकारी क्षेत्र में नजर नहीं आते हैं. कागजों पर विद्यमान अवर प्रमंडल कार्यालय में वर्तमान में सहायक अभियंता आशुतोष कुमार की पोस्टिंग है. वहीं एक एक कनीय अभियंता प्रभार में हैं. बावजूद सारठ में पेयजल एवं स्वच्छता विभाग का अवर प्रमंडल कार्यालय कहा चल रहा है, यहा के स्थानीय लोगों को पता ही नहीं है. ग्रामीणों का कहना है कि राज्य बनने के समय से ही यह कार्यालय कागजों पर स्थित है. लोग बताते हैं कि सारठ डाकबंगला के पीछे बंद पड़ी जलमीनार के नीचे स्थित एक कमरे के बाहर वर्षो से अवर प्रमंडल कार्यालय, पेयजल एवं स्वच्छता विभाग पेंट से लिखा हुआ देखने को मिलता था, जो समय के साथ अब मिट चुका है. लोगों का कहना है कि सारठ क्षेत्र में जल जीवन मिशन के तहद करोड़ो की सारठ व पालाजोरी वृहत जलापूर्ति योजना का कार्य चल रहा है. पूर्व में में भी कई बड़ी-बड़ी ग्रामीण जलापूर्ति योजनाओं का कार्य शुरू भी हुआ और बंद भी हो चुका है. ऐसे में विभाग के अवर प्रमंडल कार्यालय का कागजों में चलना जांच का विषय है.
20 सूत्री सदस्य सह झामुमो नेता परिमल कुमार सिंह उर्फ भूपेन सिंह ने कहा कि कई वर्षों से क्षेत्र में इतने अहम विभाग के कार्यालय का कागजों पर चलना गंभीर मामला है. उन्होंने आरोप लगाया कि इसके लिए विभाग के अधिकारियों के साथ ही स्थानीय विधायक भी जिम्मेदार है. क्षेत्र में जलापूर्ति की कितनी योजना शुरू की गयी है, जिसमें कई योजनाओं में न तो काम सही से हुआ और सैकड़ों गांवों में लोगों के घरों में पानी तक नहीं पहुचा, जबकि अधिकतर योजनाएं करोड़ों लागत की थी. कार्यालय होने से योजनाओं की मानिटरिंग होती और अधिकारी सही काम करते. ताकि योजना का लाभ आम लोगों को मिलता. कार्यालय क्यो नहीं संचालित किया जा रहा था और इस पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई इसकी जांच जरूरी है. क्षेत्र में संचालित करोड़ों की योजनाओं के ठप होने की जांच की जानी चाहिए.
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