पश्चिम बंगाल के सांतरागाछी झील (Santragachi Lake) में प्रदूषण के मामले पर राष्ट्रीय हरित अदालत (एनजीटी) ने राज्य के मुख्य सचिव की कड़े शब्दों में भर्त्सना की. साथ ही रेलवे के खिलाफ भी नाराजगी जतायी. अदालत का मानना है कि मुख्य सचिव वास्तविक स्थितियों को लेकर तथ्य संग्रह करने में पूरी तरह से विफल हैं. उनके अधीन संस्था ठीक से काम कर रही है या नहीं, इसकी जानकारी भी उन्हें नहीं है. रेलवे के वकील को लेकर अदालत ने कहा कि यह बहुत ही दुखद है कि मामले की फाइल बिना पढ़े ही वह अदालत में हाजिर हुए हैं.
सांतरागाछी झील में प्रदूषण कम करने को लेकर राज्य सरकार एवं रेलवे के बीच पिछले सात साल से खींचतान चल रही है. प्रदूषण कम करने के लिए गत अक्तूबर में राज्य के मुख्य सचिव के नेतृत्व में व रेलवे प्रतिनिधियों को लेकर कमेटी गठन करने का निर्देश हरित अदालत ने दिया था. नवंबर में कमेटी की पहली बैठक में कई फैसले लिये गये थे. लेकिन फैसले के लागू होने को लेकर अदालत ने संशय जाहिर किया. अदालत ने कहा कि यह देखा जा रहा है कि सभी पक्ष एक दूसरे खिलाफ बोल रहे हैं. काम का जिम्मा एक से दूसरे विभाग को सौंप दिया जा रहा है. अदालत के कड़े रुख का बाद उनकी आखें खुलेंगी या नहीं, यह देखना होगा.
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बता दें कि नवंबर में मुख्य सचिव के नेतृत्व में गठित कमेटी की बैठक में यह फैसला लिया गया था कि झील में पड़े तरल अपशिष्ट को निकालने के लिए निकासी परिशोधन प्लांट के लिए रेलवे जमीन देगी. जमीन को लेकर नवंबर में ही कोलकाता मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (केएमडीए) ने रेलवे के ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से आवेदन किया था, इसे लेकर तीन फरवरी को राज्य सरकार ने हलफनामा देकर अदालत को जानकारी दी थी. लेकिन इस आवेदन के बाद का घटनाक्रम क्या है, इसका उल्लेख हलफनामे में नहीं है. इसे लेकर अदालत ने नाराजगी जतायी. रेलवे को दायित्व दिया था, उसका पालन हुआ कि नहीं, इसका भी उल्लेख नहीं है. अदालत ने दो सप्ताह में मुख्य सचिव से मौजूदा स्थिति को लेकर रिपोर्ट जमा देने का निर्देश दिया गया है. मामले की अगली सुनवाई 16 मार्च को होगी.