भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने यूपी की राज्यसभा की खाली हुई सीटों पर होने वाले चुनाव के लिए अपने 7 प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी है. बीजेपी ने यूपी से जिन्हें प्रत्याशी घोषित किया है, उनमें आरपीएन सिंह, डॉ. सुधांशु त्रिवेदी, चौधरी तेजवीर सिंह, साधना सिंह, अमरपाल मौर्य, डॉ. संगीता बलवंत और नवीन जैन का नाम शामिल है. यूपी के 10 सीटों पर राज्यसभा चुनाव होना है, उनमें से अभी बीजेपी के खाते में 9 सीटें हैं. वहीं, एक सीट समाजवादी पार्टी के खाते में है. अप्रैल में भाजपा से अशोक वाजपेयी, अनिल जैन, अनिल अग्रवाल, कांता कर्दम, सकलदीप राजभर, जीवीएल नरसिम्हा राव, सुधांशु त्रिवेदी, हरनाथ सिंह यादव और विजय पाल तोमर का कार्यकाल खत्म हो रहा है. वहीं, समाजवादी पार्टी की राज्यसभा सांसद जया बच्चन का कार्यकाल भी खत्म हो रहा है.
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संगीता बलवंत मूलरूप से गाजीपुर की रहने वाली हैं. विधानसभा चुनाव 2022 से पहले योगी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में मंत्री डॉ. संगीता बलवंत को जगह मिली थी. उन्हें सहकारिता राज्य मंत्री बनाया गया था. डॉ. संगीता बलवंत के पिता स्व. राम सूरत बिंद रिटायर्ड पोस्टमैन थे. छात्र जीवन से ही उनको राजनीति का शौक रहा है. डॉ. संगीता राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक लेखक भी हैं और साहित्य में रुचि रखती हैं. इसके साथ उन्हें पढ़ाई और कविता का भी बहुत शौक रहा. डॉ. संगीता स्थानीय पीजी कॉलेज, गाजीपुर छात्र संघ की उपाध्यक्ष भी रही हैं. इनका विवाह जमानियां कस्बा में डॉ. अवधेश से हुआ है, जो पेशे से होम्योपैथिक डॉक्टर हैं. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में डॉ. संगीता बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ी और निर्वाचित घोषित हुई थी. डॉ. संगीता बिंद ओबीसी वर्ग से आती हैं और पूर्वांचल में ये वोट बैंक काफी संख्या में है. संगीता जमानियां क्षेत्र से निर्दल जिला पंचायत सदस्य रह चुकी हैं. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक संगीता को टिकट दिए जाने की वजह पिछड़ी जाति के बिंद बिरादरी से है. गाजीपुर में बिंद बिरादरी के वोटर 2 लाख से अधिक हैं.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव के पीडीए (पिछड़ा दलित आदिवासी) के नारे का सबसे अधिक प्रभाव गाजीपुर में पड़ सकता है. उसे देखते हुए बीजेपी ने पिछड़ी जाति की संगीतो को राज्यसभा के लिए टिकट देकर एक बड़ी आबादी को साधने का काम किया है. मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, भदोही, मिर्जापुर और सोनभद्र में भी बिंद वोटर्स की संख्या काफी ज्यादा है. ऐसे में इन सीटों पर भी प्रभाव डालने की कोशिश होगी. गाजीपुर लोकसभा सीट पर बीजेपी जीत चाहती है. स्थानीय नेताओं के सहारे इसकी तैयारी शुरू कर दी गई है. जिले के वो नेता जिनका राजनीतिक क्षेत्र कहीं और भी है. उन्हे गाजीपुर पर विशेष फोकस के लिए कहा गया है. इनमें दिनेश लाल यादव निरहुआ सांसद आजमगढ़. महेंद्र नाथ पांडेय सांसद चंदौली. दयाशंकर मिश्र दयालु, यूपी सरकार में राज्यमंत्री समेत कुछ और अहम नाम शामिल हैं. खासकर मनोज सिन्हा को जम्मू कश्मीर का राज्यपाल बनाये जाने के बाद जिले में भाजपा खालीपन के दौर में थी. ऐसे में बेहद जमीनी नेता संगीता बलवंत को राज्यसभा में लाकर बीजेपी खुद को बड़े स्तर पर यहां मजबूत करेगी.
संगीता बलवंत मनोज सिन्हा की करीबी मानी जाती है. अन्य जातियों में भी उनका खासा प्रभाव है. विपक्षी किसी बिंद नेता पर डोरे डाले उससे पहले संगीता के सहारे इस आबादी को साधने की कोशिश की गई है. गाजीपुर जिले को भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व कितनी गंभीरता से लेता है इस बात को भी समझना होगा. इसी साल 20 जनवरी को बीजेपी ने मिशन 2024 के तहत अभियान शुरू किया. जिसका नाम था ‘लोकसभा प्रवास’ इस कार्यक्रम में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा खुद गाजीपुर पहुंचे. उन्होने आईटीआई मैदान में एक जनसभा को संबोधित किया था. जीत की संभावनाओं को मजबूती देने के लिए कार्यकर्ताओं में जोश भरा था. इस दौरान उन्होने पूर्व सैनिकों के सम्मान कार्यक्रम में भी हिस्सा लिया था.
चंदौली के मुगलसराय विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर 2014 में विधायक चुने जाने के पहले साधना सिंह चंदौली जिले के व्यापार मंडल की नेता के रूप में जानी जाती हैं. उन्होंने साल 2000 में राजनीति में कदम रखा. साधना सिंह ने जिला पंचायत सदस्य के रूप में भी चंदौली से जीत हासिल की थी. 2017 में साधना सिंह विधायक चुनी गईं. जनवरी 2019 में साधना सिंह बसपा सुप्रीमो मायावती पर अभद्र भाषा का उपयोग करके चर्चा में आ गई थीं. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक चंदौली जिले में साधना सिंह की छवि एक बोल्ड नेता की है. अपने धारदार तर्क और संगठन के लिए विपक्ष से आमने सामने टकराती रहीं हैं. कभी बसपा प्रमुख मायावती के खिलाफ बयान देकर चर्चा में आईं साधना सिंह जिले में सपाईयों से भी मोहड़ा लेने में देर नहीं करतीं. ऐसे समय में जब भाजपा के चारों सीटों के विधायक लखनऊ या वाराणसी रहते हैं उस समय साधना सिंह को राज्यसभा का टिकट देना काफी अच्छी पहल है.
चंदौली में बीजेपी को किसी ऐसे नेता की जरूरत खल रही है जो जमीन पर उतरकर काम कर सके. साधना को भी इस मौके की जरूरत थी. साधना सिंह ने जिला पंचायत सदस्य से राजनीति की शुरुआत की. उसके बाद लंबे समय तक जिला व्यापार मंडल में रहकर काम किया. महिला मतदाताओं के साथ ही मुस्लिम मतदाताओं में भी उनकी बेहतर पैठ मानी जाती है. ऐसे में पार्टी को इस बाद का अंदेशा है कि साधना को जिम्मेदारी मिलने से बड़े स्तर पर इसका लाभ संगठन को भी मिल सकेगा. जिले के कई राजनीतिक जानकार साधना सिंह के बगावती तेवर का भी जिक्र करते हैं. बतातें हैं कि साधना सिंह के मन में टिकट न मिलने का मलाल 2022 से ही था. हालांकि उन्होने शांति बनाई और पार्टी के लिए काम करतीं रहीं. लेकिन पिछले कुछ समय से वो लगातार चंदौली लोकसभा में सक्रिय हो गईं थीं. सभी विधानसभा में लोगों के यहां जाना और मिलना जुलना शुरू कर दिया था. साधना सिंह के हाव भाव से माना जा रहा था कि पार्टी की तरफ से टिकट मिले या न मिले वो चंदौली लोकसभा से मैदान में उतर सकती हैं. ऐसे में पार्टी ने अंदरखाने इस बात को भांप लिया और साधना को साधकर राज्यसभा में भेजने का फैसला कर लिया.
डॉ. सुधांशु त्रिवेदी का जन्म लखनऊ में हुआ था. उन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद मैकेनिकल इंजीनियरिंग से पीएचडी किया. इसके अलावा वो कई यूनिवर्सिटीज में स्पीकर के तौर पर भी गए. गणित उनका पसंदीदा विषय था. बताते हैं कि वो इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते थे. साल 2014 के आम चुनाव में सुधांशु त्रिवेदी की अहम भूमिका बताई जाती है. वो इस चुनाव के दौरान मीडिया एंड कम्युनिकेशन की कोर टीम का हिस्सा थे. टीम में रहते हुए उन्होंने सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, वर्तमान गृहमंत्री और तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के लिए प्रचार किया. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें राजस्थान की जिम्मेदारी भी दी गई थी. वर्तमान में भी वो बीजेपी के प्रवक्ता हैं. अपने कई बयानों से वो चर्चा में रह चुके हैं. उन्हें भाजपा दूसरी बार राज्यसभा भेज रही है. इससे पहले केंद्रीय मंत्री रहे अरुण जेटली के निधन के बाद खाली हुई सीट से उन्हें राज्यसभा सदस्य भेजा गया था.
आरपीएन सिंह का पूरा नाम कुंवर रतनजीत प्रताप नारायण सिंह है. इन्हें पडरौना में राजा साहब और भैया जी कहा जाता है. आरपीएन सिंह का जन्म 25 अप्रैल, 1964 को पडरौना के राजपरिवार में हुआ था. पडरौना को लेकर माना जाता है कि ये वही जगह है जहां गौतमबुद्ध ने आखिरी बार भोजन किया था. आरपीएन सिंह के पिता सीपीएन सिंह को राजनीति में इंदिरा गांधी लेकर आई थीं. सीपीएन सिंह कुशीनगर से लोकसभा सांसद थे. वो 1980 में इंदिरा गांधी की सरकार में रक्षा राज्यमंत्री भी रहे थे. सीपीएन सिंह के राजनीतिक कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इमरजेंसी के बाद 1980 के लोकसभा चुनाव का प्रचार इंदिरा गांधी ने पडरौना से ही शुरू किया था. इस चुनावी रैली का आयोजन सीपीएन सिंह ने ही करवाया था. मनमोहन सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे आरपीएन सिंह ने जनवरी, 2022 में बीजेपी में शामिल होने हुए थे. आरपीएन सिंह कुशीनगर पडरौना से 3 बार विधायक रहे हैं. वह 2009 में कुशीनगर से लोकसभा सांसद बने. हालांकि, 2014 और 2019 के चुनाव में हार गए थे.
बीजेपी ने पूर्व सांसद चौधरी तेजवीर सिंह को भी राज्यसभा का टिकट दिया है. चौधरी तेजवीर सिंह मथुरा से लगातार तीन बार सांसद रहे हैं. साल 1996 से 97 तक पहला कार्यकाल, 1998 से 99 दूसरा कार्यकाल और 199 से 2004 तक उनका तीसरा कार्यकाल रहा. इसके बाद पार्टी ने उन्हें यूपी कोऑपरेटिव का अध्यक्ष भी बनाया. भाजपा से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले तेजवीर सिंह सहकारिता की राजनीति में भी अच्छा पकड़ रखते हैं. उन्हें एक स्वच्छ छवि का नेता माना जाता है. राजनीतिक समीकरणों के लिहाज से मथुरा में जाटों का बाहुल्य है. ऐसे में एक तरफ जयंत चौधरी से बन रही नजदीकियां, दूसरी तरफ चौधरी तेजवीर सिंह को राज्यसभा का टिकट देकर भाजपा ने मथुरा ही नहीं प्रदेश भर में जाट वोटों को अपनी ओर करने का बड़ा दांव खेला है.
नवीन जैन आगरा के सबसे बड़े कारोबारियों में आते हैं. भाजपा में उनकी अच्छी पकड़ है. वो कई बड़े नेताओं के करीबी भी माने जाते हैं. 2017 में जब उन्होंने आगरा महापौर चुनाव लड़ा था. उस वक्त उन्होंने अपनी संपत्ति 400 करोड़ रुपए घोषित की थी. नवीन जैन 2017 में नगर निगम चुनाव लड़ने वाले सबसे अमीर प्रत्याशी थे. इस बार भी आगरा मेयर सीट पर उनकी दावेदारी पक्की मानी जा रही थी, लेकिन ये सीट एससी महिला के लिए आरक्षित हो गई थी. इसलिए इस बार मेयर चुनाव नहीं लड़ पाए थे.
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अमरपाल मौर्य मूलरूप से रायबरेली की ऊंचाहार के रहने वाले हैं. वह उत्तर प्रदेश भाजपा संगठन में महामंत्री हैं. अमरपाल मौर्य आरएसएस के प्रचारक रहे हैं. इसके अलावा वह दूसरी बार यूपी भाजपा की कमेटी में महामंत्री बनाए गए हैं. अमरपाल मौर्य ने ऊंचाहार विधानसभा से 2022 के चुनाव में लड़ा था, मगर हार गए थे.