बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में हर महीने आइवीएफ (Test Tube Baby) के जरिये औसतन 400 बच्चे का जन्म हो रहा है. हर साल शहर के आइवीएफ सेंटरों में निसंतान दंपत्तियों की संख्या बढृती जा रही है. महिलाओं में बढ़ रहा बांझपन दंपत्तियों को आइवीएफ का माध्यम अपनाने के लिये मजबूर कर रहा है. शहर में चल रहे 12 आइवीएफ सेंटर के आंकड़े बताते हैं कि जिले के 350 से 400 दंपत्ति बच्चे के लिये इस तकनीक का सहारा ले रहे हैं.
महिलाओं में बांझपन में हुई बढ़ोतरी इस बात से समझी जा सकती है कि वर्ष 2013 में उत्तर बिहार का पहला आइवीएफ सेंटर शहर में खुला था. उस समय उत्तर बिहार के सात जिलों से हर महीने 15 से 20 निसंतान संपत्ति सेंटर में आते थे. अब जबकि सभी शहरों में आइवीएफ की सुविधा उपलब्ध हो गयी है तो हर महीने जिले के 400 परिवार आइवीएफ के जरिये बच्चे की चाहत पूरी कर रहे हैं. निसंतान दंपत्तियों की बढ़ती संख्या देखते हुए जिले के अधिकतर मैटरनिटी सेंटर अब आइवीएफ की सुविधा भी देने लगे हैं. प्रत्येक सेंटर में हर महीने 35 से 40 दंपत्तियों का इलाज किया जा रहा है.
लड़कियों की अधिक उम्र में शादी से बढ़ रहा बांझपन
डॉक्टरों का कहना है कि लड़कियों की अधिक उम्र में शादी के कारण बांझपन बढ़ रहा है. आज के दौर में उच्च शिक्षा और नौकरी के कारण अधिकतर लड़कियों की शादी अधिक उम्र में हो रही है. जबकि लड़कियों के अंडाशय में अंडे बनने की औसत उम्र 30 वर्ष है. इसके बाद से अंडे कमजोर होने लगते हैं और लड़कियां गर्भधारण नहीं कर पातीं. इसके अलावा स्वच्छता का ध्यान नहीं रखने के कारण अंडाशय में ट्यूबरक्लोसिस और पॉलीसिस्टिक बीमारी है. महिलाओं के हार्मोन में असंतुलन और नियमित मासिक स्राव नहीं होने के कारण भी महिलाएं गर्भधारण करने में सक्षम नहीं हो पाती. इसके अलावा अधिक वजन और फास्ट फूड का सेवन भी अंडों को कमजोर बनाता है. ऐसे समय में संतान प्राप्ति के लिये आइवीएफ ही एकमात्र माध्यम होता है.
आइवीएफ से कैसे होता है इलाज
आइवीएफ के लिये दंपत्ति की कई तरह की पैथोलॉजिकल जांच होती है. यदि महिलाओं में अंडे नहीं बन रहे हैं तो दवा के जरिये अंडा बनाया जाता है. फिर उसमें से एक दो अंडे को सूई के जरिये निकाल कर एक परखनली में रखा जाता है. पुरुष के स्पर्म को परखनली में रखा जाता है. फिर कृत्रिम रूप से निषेचन कराया जाता है. निषेचन के बाद भ्रूण को महिला के गर्भाशय डाल दिया जाता है. फिर सामान्य रूप से गर्भवती महिला की की तरह उसकी देखाभाल की जाती है.
वर्ष 2015 में पहले आइवीएफ बच्चे का जन्म
शहर में वर्ष 2015 में पहले आइवीएफ बच्चे का जन्म हुआ था. उस वक्त यहां के एक आइवीएफ सेंटर में अत्याधुनिक मशीनें कोलकाता से मंगवायी गयी थीं. इसके बाद से आइवीएफ सेंटर में निसंतान दंपत्तियों की संख्या बढ़ने लगी. उत्तर बिहार के विभिन्न जिलों के निसंतान लोग इलाज के लिये यहां पहुंचने लगे. इसके बाद यहां की स्त्री रोग विशेषज्ञों ने आइवीएफ का ब्रांच खोलना शुरू किया.
दस दंपत्ति में दो पुरुष बांझपन के शिकार
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक देश में महिला और पुरुष बांझपन 3.9 से 16.8 फीसदी तक है. शहर के आइवीएफ सेंटरों का आंकड़ा बतात है कि दस निसंतान दंपत्तियों में दो फीसदी पुरुष बांझपन के मामले आते हैं. इसका कारण पुरुषों में हार्मोन का असंतुलन, मोबाइल और लैपटॉप का रेडियेशन, अधिक घूम्रपान या शराब का सेवन करना, प्रदूषण, जीवन शैली, फास्ट फूड, फलों व सब्जियों में पड़ने वाले कीटनाशक, बचपन में गलशोध बीमारी से पीड़ित होने वाले बच्चे और आनुवांशिक बीमारी के कारण पुरुषों में स्पर्म नहीं बनते. यदि बनते भी हैं तो वे कमजोर रहते हैं. ऐसे पुरुषों को दवा के माध्यम से स्पर्म बनाने का प्रयास किया जाता है. यदि स्पर्म निषेचन लायक नहीं बनते तो दंपत्ति की स्वीकृति से पटना के स्पर्म बैंक से स्पर्म लेकर निषेचन कराया जाता है.
आइवीएफ निसंतान दंपत्तियों पर मुस्कुराहट लौट रही
आइवीएफ के सहारे निसंतान दंपत्तियों के चेहरे पर मुस्कुराहट लौट रही है. पिछले 12 वर्षों से यह काम कर रही हूं. पहले की अपेक्षा महिलाओं में बांझपन की समस्या काफी बढ़ गयी है. यह चिंता की बात है. लड़कियों की शादी अधिक उम्र में होना और खानपान के साथ स्वच्छता का ध्यान नहीं रखना, मासिक अनियमित होने के बाद भी डॉक्टर से परामर्श नहीं लेना बांझपन का एक बड़ा कारण है. कई दंपत्तियों की जांच में अब पुरुष बांझपन का मामला भी पहले अधिक मिल रहा है.
– डॉ प्राची सिंह, आइवीएफ एक्सपर्ट