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आचार्य विद्यासागर जी का सान्निध्य असीम शांति व अनंत ऊर्जा प्रदान करता था, इंदर चंद जैन ने सुनाया संस्मरण

आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज से प्रतिवर्ष मिलते थे चास के स्वतंत्रता सेनानी 98 वर्षीय इंदर चंद जैन. अमरकंटक प्रवास के दौरान महाराज जी की प्रेरणा से उनके जीवन में कई बदलाव आये.

बोकारो, सुनील तिवारी : चास के स्वतंत्रता सेनानी 98 वर्षीय इंदर चंद जैन संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज से प्रतिवर्ष मिलते थे. पर्यूषण पर्व (12 दिन) विद्यासागर जी के सान्निध्य में ही गुजरता था. जैन समाज के वरिष्ठतम सदस्य इंदर चंद जैन बोकारो के सेक्टर टू डी स्थित जैन मंदिर व जैन मिलन केंद्र के संस्थापक हैं. उनके पुत्र श्याम सुंदर जैन बोकारो जैन मिलन केंद्र व जैन समाज के महामंत्री हैं. वह 1964 में बोकारो आये थे.

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श्री जैन आचार्यश्री को याद करते हुए कहते हैं कि अमरकंटक प्रवास के दौरान महाराज जी की प्रेरणा से उनके जीवन में कई बदलाव आये. उन्होंने महामुनिराज से जुड़े संस्मरण सोमवार को प्रभात खबर से साझा किया. श्री जैन ने विद्यासागर जी से जुड़ा एक रोचक संस्मरण सुनाया, “लगभग 20-25 साल पहले अमरकंटक प्रवास के दौरान महाराज जी के साथ सुबह-सुबह निकलता था. आते-जाते समय वह धर्म-अध्यात्म की बात करते थे. उसका मेरे जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा.

मैंने रात्रि भोजन का त्याग कर दिया. प्रतिदिन देवदर्शन व शास्त्र अध्ययन करने लगा. उनकी प्रेरणा को अपने जीवन में समाहित कर लिया. इससे जीवन में सुख, शांति व समृद्धि मिली. उनका ब्रह्मलीन होना देश के लिए अपूरणीय क्षति है. आध्यात्मिक जागृति के लिए उनके बहुमूल्य प्रयास सदैव स्मरण किये जायेंगे.”

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आचार्यश्री के सामने आते ही प्रेरणा से भर उठता था हृदय

इंदर चंद जैन कहते हैं, “विद्यासागर जी महाराज जीवनपर्यंत गरीबी उन्मूलन के साथ-साथ स्वास्थ्य व शिक्षा को बढ़ावा देने में जुटे रहे. यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे निरंतर उनका आशीर्वाद मिलता रहा. समाज के लिए उनका अप्रतिम योगदान देश की हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा. ओजस्वी ज्ञान से देश को पल्लवित करने वाले विद्यासागर जी महाराज को युग-युगांतर तक स्मरण किया जायेगा. मेरे जीवन में आचार्यश्री का गहरा प्रभाव रहा. उनका मुझे भरपूर आशीर्वाद मिला. आचार्य श्री के सामने आते ही हृदय प्रेरणा से भर उठता था. उनका आशीर्वाद असीम शांति व अनंत ऊर्जा प्रदान करता था.”

निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक

श्याम सुंदर जैन कहते हैं, “आचार्य विद्यासागर संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं जैसे हिंदी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते थे. उन्होंने हिंदी और संस्कृत में काफी रचनाएं की हैं. 100 से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य काे ले मास्टर्स और डॉक्टरेट किया है. उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं. उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है. विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिंदी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है. वह कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं. उनका जीवन त्याग और प्रेम का उदाहरण है.”

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