जल संसाधन विभाग अंतर्गत लघु सिंचाई योजना के तहत मोदीबांध तालाब जीर्णोद्धार योजना छह वर्षो में भी पूरी नहीं हो रही है. योजना पूरी नहीं होने के पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि बिना सहमति के निजी तालाब में योजना की स्वीकृति दी गयी, जिसके बाद शुरू हुआ विवाद खत्म नहीं हो पाया. योजना का शिलान्यास तत्कालीन कृषि मंत्री ने एक फरवरी 2018 को किया था. योजना की स्वीकृति मिलने के समय से ग्रामीण इसका विरोध कर रहे है कि बिना उनकी सहमति के निजी बांध के जीर्णोद्धार योजना की स्वीकृति विभाग ने कैसे दे दी. योजना का शिलान्यास के वक्त भी ग्रामीणों ने संवेदक का पुरजोर विरोध किया था. ग्रामीणों ने विभाग, विधायक व संवेदक के बीच गठजोड़ का आरोप लगाते हुए कहा कि उनके विरोध के बावजूद योजना में जीर्णोद्धार कार्य शुरू किया गया था. ग्रामीणों के मुताबिक उस दौरान विभाग को शिकायत पत्र भी भेजा गया था. बहरहाल छह वर्ष बीत जाने के बाद भी ग्रामीणों की शिकायत का निराकरण आज तक नही हो सका है न ही तालाब जीर्णोद्धार कार्य को पूरा किया गया हैं. ग्रामीणों का कहना है कि विभाग उनकी जमाबंदी तालाब के गलत दस्तावेज दिखाकर खास बांध दिखा रहा है, जो एक तरह का अपराध है. ग्रामीणों ने कहा है कि अगर विभाग ने काम कराया और संवेदक को भुगतान किया. तो वे सभी हाइकोर्ट की शरण मे जायेंगे.
ग्रामीणों का आरोप, विभाग ने गलत दस्तावेज के आधार शुरू किया था काम
शिकायतकर्ता ग्रामीणों ने बताया था कि गलत दस्तावेज तैयार कर विभाग ने खास बांध दिखा कर उनकी निजी बांध का ठेका अम्बे विष्णु वर्धन कंस्ट्रक्शन कंपनी को दे दिया. बताया कि मोदीबांध गांव की जमाबंदी नंबर सात, दाग नंबर 73 निजी बांध है, जिसका रकवा 6.36 एकड़ है. खतियान में उक्त निजी बांध जमाबंदी रैयत रघुनाथ झा वगैरह के नाम से दर्ज है और उक्त तालाब में मछली पालन से उन लोगों की अच्छी आमदनी हो जाती है. शिकायत है कि रैयत के बिना सहमति के गलत दस्तावेज बना कर जमाबंदी तालाब को खास बांध दिखा कर 55 लाख की योजना की स्वीकृति दे दी गयी.